Friday, November 22, 2024
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न मदरसों की मान्यता रद्द होगी, न सरकारी स्कूलों में बच्चे होंगे ट्रांसफर: NCPCR के निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने किया था विरोध

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह अंतरिम आदेश एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।

उन मदरसों की मान्यता रद्द नहीं होगी जो शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 का पालन नहीं कर रहे। न ही गैर मान्यता प्राप्त मदरसों से गैर मुस्लिम छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर किया जाएगा। इस संबंध में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। जमीयत-उलमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने अंतरिम आदेश जारी किया है। केंद्र और राज्य सरकारों को NCPCR के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई नहीं करने को कहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह अंतरिम आदेश एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। NCPCR के निर्देशों को चुनौती देते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि यह अल्पसंख्यकों के अनुच्छेद 30 के तहत शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।

NCPCR ने सरकार को मदरसों को लेकर दिए थे ये निर्देश

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने 7 जून 2024 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि जो मदरसे RTE अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनकी मान्यता वापस ली जाए। इसके बाद 25 जून 2024 को NCPCR ने शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार को निर्देश दिया कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मौजूद मदरसों का निरीक्षण किया जाए और जो मदरसे RTE के मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनकी मान्यता और UDISE कोड तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए।

NCPCR ने यह भी सुझाव दिया कि मदरसों के लिए एक अलग श्रेणी का यूनिफ़ाइड डिस्ट्रिक्ट इंफ़ॉर्मेशन सिस्टम फ़ॉर एजुकेशन (UDISE) कोड बनाया जाए, ताकि मान्यता प्राप्त, गैर-मान्यता प्राप्त और अवैध मदरसों की जानकारी एकत्र की जा सके।

इसके बाद, 26 जून 2024 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे राज्य में सरकारी अनुदान प्राप्त और मान्यता प्राप्त मदरसों का विस्तृत जाँच-पड़ताल करें, जो गैर-मुस्लिम बच्चों को प्रवेश दे रहे हैं, और सुनिश्चित करें कि सभी बच्चों को स्कूलों में तुरंत दाखिला दिया जाए। इसी प्रकार का निर्देश त्रिपुरा सरकार द्वारा 28 अगस्त 2024 को भी जारी किया गया था। 10 जुलाई 2024 को केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को NCPCR के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया।

इन निर्देशों को मजहबी अल्पसंख्यकों के शिक्षा देने के अधिकार (अनुच्छेद 30) के उल्लंघन के रूप में देखते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अनुच्छेद 30 भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार देता है। इस मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR के 7 जून 2024 और 25 जून 2024 के निर्देशों और उत्तर प्रदेश सरकार के 26 जून 2024 के आदेश और केंद्र सरकार के 10 जुलाई 2024 के निर्देशों पर रोक लगा दी। इसी तरह त्रिपुरा सरकार के 28 अगस्त 2024 के निर्देशों पर भी रोक लगाई गई।

इंदिरा जयसिंह ने जमीयत का रखा पक्ष

जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में मौखिक रूप से यह अनुरोध किया कि याचिका में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया जाए। अदालत ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को अनुमति दी कि वे सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस याचिका में पक्षकार बनाएँ। इस रिट याचिका को अधिवक्ता फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी द्वारा दायर किया गया था। जमीयत उलमा-ए-हिंद बनाम राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और अन्य के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि फिलहाल NCPCR और विभिन्न राज्यों द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर किसी भी मदरसे के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम के तहत निजी और सरकारी स्कूलों को निर्धारित मानकों का पालन करना होता है। NCPCR का यह निर्देश इसी अधिनियम के तहत उन मदरसों पर लागू होता है जो मान्यता प्राप्त हैं या जिनकी शिक्षा प्रणाली UDISE (Unified District Information System for Education) कोड से जुड़ी है।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि NCPCR और सरकार के इन आदेशों से मजहबी अल्पसंख्यकों के शिक्षा संस्थानों की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने दावा किया कि इस प्रकार के आदेश न केवल मजहबी अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन करते हैं, बल्कि यह भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों के भी विपरीत है, जो सभी नागरिकों को मजहबी स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी पक्षों की दलीलों को सुना और यह अंतरिम आदेश पारित किया कि अगली सुनवाई तक कोई भी राज्य या केंद्र सरकार NCPCR के निर्देशों पर कार्रवाई नहीं करेगी। इस मामले में कोर्ट द्वारा जारी अंतरिम आदेश के बाद फिलहाल उन मदरसों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी जो RTE अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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