सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई 2024) को कहा कि सीबीआई की सामान्य सहमति रद्द करने के बावजूद पश्चिम बंगाल में एफआईआर दर्ज करने को लेकर पश्चिम बंगाल की याचिका सुनवाई योग्य है। इस मामले में ममता बनर्जी वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसका केंद्र सरकार ने विरोध किया था।
केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल राज्य की शिकायत में कार्रवाई का कारण बताया गया है। पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दी गई इस दलील को भी खारिज कर दिया कि राज्य ने शिकायत में महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया है।
दरअसल, मामला साल 2018 का है। उस दौरान बंगाल की सरकार ने CBI जाँच के लिए दी गई सामान्य सहमति वापस ले लिया था। इसके बाद भी एजेंसी पश्चिम बंगाल में अपराधों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना जारी रखी। कोर्ट ने कहा कि सामान्य सहमति वापस लेने के बाद एजेंसी जाँच जारी नहीं रख सकती थी।
वहीं, बंगाल की सरकार ने तर्क दिया कि CBI केंद्र सरकार के अधीन काम कर रही है। खंडपीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि यह मुकदमा सुनवाई योग्य है। कोर्ट ने कहा, “वर्तमान मुकदमा कानूनी मुद्दा उठा रहा है कि क्या सामान्य सहमति वापस लेने के बाद CBI एफआईआर दर्ज करना और DSPE Act की धारा 6 का उल्लंघन करने वाले मामलों की जाँच करना जारी रख सकती है।”
यह मुकदमा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत भारत सरकार के खिलाफ दायर किया गया था। इसमें राज्य सरकार ने तर्क दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 के तहत CBI का गठन किया गया है। राज्य ने कहा कि सहमति रद्द करने के बावजूद सीबीआई ने राज्य में हुए अपराधों के संबंध में एफआईआर दर्ज करना जारी रखा।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 131 संघ और राज्यों के बीच विवाद को खत्म करने के लिए है। यह CBI पर ये लागू नहीं होता है, क्योंकि यह केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं है। इसलिए यह दायर मुकदमा केंद्र सरकार के खिलाफ है।