शिक्षा और नौकरी में कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा? इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मराठा रिजर्वेशन से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान जानना चाहा। 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार (मार्च 19, 2021) को इस पर सुनवाई की।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि आरक्षण पर कैपिंग रखने के मंडल कमेटी के फैसले पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है। इस दौरान कोर्ट ने सवाल उठाया कि कितनी पीढ़ियों तक शिक्षा और नौकरी में ये आरक्षण जारी रहेगा। कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि यदि 50% आरक्षण हटा दिया जाए तो संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिलने वाला समानता का अधिकार तो प्रभावित नहीं होगा।
बता दें कि 5 जजों की संवैधानिक पीठ में न्यायाधीश अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और एस.रवीन्द्र भट्ट शामिल हैं। ये पीठ महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसके तहत मराठा के लिए 16% आरक्षण किया गया था।
मंडल फैसले पर दोबारा विचार हो: मुकुल रोहतगी
अदालत में आरक्षण कानून के पक्ष में बहस करते हुए रोहतगी ने मंडल जजमेंट के कई आयामों पर बात की। उन्होंने कहा कि 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने वाले केंद्र सरकार के फैसले ने 50% कैप को भंग कर दिया। उन्होंने कहा कि कई कारणों से मंडल कमेटी के फैसले पर दोबारा से गौर करने की जरूरत है, जिसे 1931 की जनगणना पर आधारित तैयार किया गया था, लेकिन आज जनसंख्या 135 करोड़ पहुँच गई है।
कोर्ट ने रोहतगी की दलीलों पर सवाल पूछा, “अगर आरक्षण पर कोई कैप नहीं रहेगी, तो समानता की कोई बात ही नहीं रह जाएगी। घूम-फिरकर फिर उसी चीज से निपटना होगा। इससे जो नई असमानता पैदा होगी, उस पर आपका क्या कहना है? हम इसे (आरक्षण को) आखिर कितनी पीढ़ियों तक जारी रखने वाले हैं?”
पीठ ने यह भी कहा कि आजादी के 70 साल बीत चुके हैं, और राज्यों को कई लाभकारी योजनाएँ चल रही हैं, और ‘क्या हम स्वीकार कर सकते हैं कि कोई विकास नहीं हुआ है, कोई भी पिछड़ी जाति आगे नहीं बढ़ी है?’
इस पर रोहतगी ने कहा, “हम बिल्कुल आगे बढ़े हैं। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि देश में आज पिछड़ी श्रेणियों की संख्या 50 से घटकर 20 फीसदी हो गई है। मैं ये नहीं कह रहा कि पिछले नियम ख़राब थे। मैं बस ये कह रहा कि देश की आबादी काफी बढ़ चुकी है और मुमकिन है कि पिछड़े वर्ग की आबादी भी बढ़ गई। इसलिए आरक्षण के नियमों पर दोबारा विचार की ज़रूरत है।”
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 8 मार्च को भी सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी करके पूछा था कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से ज़्यादा बढ़ाया जाना चाहिए? इसका मकसद दो सवालों के जवाब तलाशने हैं। पहला, क्या इंद्रा साहनी जजमेंट (मंडल कमीशन केस) पर पुनर्विचार की जरूरत है? 1992 के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय की थी। दूसरा, क्या 102वाँ संवैधानिक संशोधन राज्यों की विधायी क्षमता को प्रभावित करता है। यानी, क्या राज्य अपनी तरफ से किसी वर्ग को पिछड़ा घोषित कर आरक्षण दे सकते हैं या 102वें संशोधन के तहत अब यह अधिकार केवल संसद को है?
क्या है मराठा आरक्षण विवाद?
साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने पढ़ाई और नौकरी में मराठा आरक्षण को 16% कर दिया था। 2019 में बॉम्बे उच्च-न्यायालय ने मराठा आरक्षण को बरकरार रखा, लेकिन आरक्षण को घटा कर नौकरी में 13 प्रतिशत और उच्च शिक्षा में 12 प्रतिशत कर दिया।बॉम्बे हाईकोर्ट की याचिका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि यह आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी मामले में दिए गए फैसले का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि मराठा आरक्षण 2020-21 में लागू नहीं होगा।