सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण जिला स्तर पर नहीं किया जा सकता, ये राज्य स्तर पर होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पहले भी ये कहा जा चुका है कि अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्य स्तर पर किया जाना चाहिए। देवकीनंदन ठाकुर की याचिका पर जस्टिस यूयू ललित और रवींद्र भट्ट की पीठ ने सुनवाई की। इस याचिका में राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के निर्धारण को चुनौती दी गई थी। अब सितंबर के पहले सप्ताह में इस पर सुनवाई होगी।
1993 की एक अधिसूचना में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम, सिख, जैन और बौद्ध और पारसी समाज को अल्पसंख्यक घोषित किया था। याचिका में इसे जिला स्तर पर तय किए जाने की माँग की गई थी। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट जिला एवं प्रखंड स्तर पर अल्पसंख्यकों के निर्धारण की माँग को ख़ारिज करते हुए इसे राज्य स्तर पर करने को कह चुका है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सबूत लेकर आने को कहा था, जिससे पता चले कि किन राज्यों में जनसंख्या कम होने के बावजूद हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है।
एक अन्य याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने भी 9 राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा और इसके तहत फायदे देने की माँग की है। हालाँकि, अदालत ने ये भी कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर या किसी स्तर पर अल्पसंख्यकों का निर्धारण करना कोर्ट का काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप सीधे कह रहे हैं कि हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया जाए, हम ऐसी घोषणा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका कारण है कि उसके पास सभी क्षेत्रों के इस तरह के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
During the hearing, the Advocate Ashwini Upadhyay pointed out that there are hindu minorities in some states.@AshwiniUpadhyay
— Brij Dwivedi (@Brij17g) August 8, 2022
अश्विनी उपाध्याय की सहमति के बाद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले के साथ लिस्ट कर दिया। हालाँकि, जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों के निर्धारण को सुप्रीम कोर्ट ने 11 जजों की पीठ द्वारा दिए गए एक पुराने फैसले के खिलाफ बताया। याचिकाकर्ता ने बताया कि लद्दाख में जहाँ 1% हिन्दू हैं, मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4%, नागालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% हिन्दू हैं।