सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (अप्रैल 15, 2021) को केरल के वैज्ञानिक नम्बी नारायणन पर 1994 में लगे देशद्रोह के आरोप और उसके बाद हुई उनकी प्रताड़ना के मामले में CBI जाँच के आदेश दिए हैं। नारायणन ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)’ के वैज्ञानिक हुआ करते थे। उनका शुरू से मानना रहा है कि इस मामले में पुलिस की साजिश के कारण उन्हें फँसाया गया। वरिष्ठ वैज्ञानिक ने देश की सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा कि वो इस फैसले से खुश हैं, क्योंकि देश को क्रायोजेनिक तकनीक पाने में जो देरी हुई, उसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश थी और इसके तहत ही उन्हें फँसाया गया। तिरुवनंतपुरम में रह रहे नम्बी नारायणन ने कहा कि वो इस मामले में किसी केंद्रीय एजेंसी की जाँच चाहते थे। विदेशी ताकतों के लिए जासूसी का आरोप लगा कर नारायणन को देशद्रोही बताया गया था। इस मामले में गठित हाई लेवल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने भी याचिका लगा कर पुलिसकर्मियों द्वारा जाँच में गलती की गुंजाइश से इनकार नहीं किया है। ऐसे में इस मामले में पहले ही निर्दोष करार दिए जा चुके नम्बी नारायणन को राहत मिली है। कोर्ट ने केरल सरकार को पहले ही आदेश दिया था कि वो बतौर मुआवजा उन्हें 50 लाख रुपए सौंपे। केंद्र सरकार ने 5 अप्रैल को इस मामले की त्वरित सुनवाई की अपील की और इसे राष्ट्रीय मुद्दा बताया।
जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ ने हाई लेवल कमिटी की रिपोर्ट को स्वीकार किया और CBI को आगे इस मामले की जाँच करने को कहा। इस मामले में मालदीव की दो महिलाओं और भारत के 2 वैज्ञानिकों पर गुप्त दस्तावेजों को विदेश भेजे जाने का आरोप लगा था। सितम्बर 14, 2018 को जाँच पैनल का गठन किया गया था। कोर्ट ने माना था कि नम्बी नारायणन इस दौरान अत्यधिक अवमानना से गुजरे।
ISRO espionage case: Vindication for Nambi Narayan after 27 years; SC transfers case to CBI.
— TIMES NOW (@TimesNow) April 15, 2021
‘Erring officials identified … Reports to be kept in a sealed cover until CBI completes the probe’, says SC.
Harish Nair with details. pic.twitter.com/wCgxZWF8Jl
इस मामले में असीम प्रताड़ना देने के लिए कोर्ट ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश भी दिया था। न्यायालय ने माना था कि वरिष्ठ वैज्ञानिक की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाया गया और उनके मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिरासत में लिए जाने के बाद उन्हें जिस ‘कुटिल घृणा’ का सामना करना पड़ा, उसके लिए केरल के बड़े पुलिस अधिकारी जिम्मेदार थे। अब इस मामले की जाँच CBI करेगी।
इससे कई साल पहले 1996-97 में ही CBI ने पाया था कि इस मामले की जाँच करने वाले केरल पुलिस के अधिकारियों ने ही सारी गड़बड़ी की है। CBI ने उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी केरल सरकार को लिखा था। CPI (M) के ईके नायनार तब केरल के मुख्यमंत्री थे। वामपंथी सरकार ने उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के इंतजार का बहाना बनाया। सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आने के बाद भी एक दशक तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।