सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में एडवोकेट कमिश्नर द्वारा सर्वे पर लगाई गई रोक को और आगे बढ़ा दिया है। यह रोक इलाहाबाद हाई कोर्ट के सर्वे को अनुमति देने वाले निर्णय पर लगाई गई थी। अब इस पर अप्रैल में फैसला होगा। अप्रैल में इससे जुड़ी अन्य याचिकाओं की सुनवाई भी होगी।
यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपंकर दत्ता कर रहे थे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से सम्बंधित अन्य याचिकाओं की भी सुनवाई की। यह याचिकाएँ उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमिटी ने डाली थी। वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक निर्णय के खिलाफ अपील की थी।
मई 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह विवादित ढाँचे से जुड़े जमीन विवाद को लेकर दाखिल किए गए मुकदमे अपने पास हस्तांतरित कर दिए गए थे। यह याचिका इसी के विरुद्ध डाली गई थी। वहीं शाही ईदगाह विवादित ढाँचा की मस्जिद कमिटी ने दिसम्बर 2023 के एक आदेश को चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करके सर्वे किए जाने के जिला अदालत के निर्णय को बरकरार रखा था। इन सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने अब अप्रैल 2024 में सुनने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा सर्वे को लेकर दी गई अनुमति पर रोक को भी आगे बढ़ा दिया। यह सर्वे अब अप्रैल तक नहीं हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह रोक 16 जनवरी, 2024 को अग्रिम सुनवाई तक लगाई थी। यह रोक शाही ईदगाह मस्जिद कमिटी की याचिका के आधार पर लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले से सम्बंधित याचिकाएँ यहाँ लंबित हैं इसलिए सर्वे को अनुमति नहीं दी जा सकती।
श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर खड़ा किया गया ढाँचा
बता दें कि मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर लम्बे समय से विवाद चलता आया है। यहाँ मुकदमा लड़ रहे हिन्दू पक्ष का कहना है कि मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बगल में बनी शाही ईदगाह ढाँचा को जबरन वहीं बना दिया गया, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। हिन्दू पक्ष का कहना है कि इस जगह पर कब्जा करके ढाँचा बनाया गया है। यहाँ अभी भी कई ऐसे सबूत हैं जो कि यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ पहले मंदिर हुआ करता था।
हिन्दू पक्ष का दावा है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था और यह जन्मस्थान शाही ईदगाह के वर्तमान ढाँचे के ठीक नीचे है। सन् 1670 में मुगल आक्रांता औरंगज़ेब ने मथुरा पर हमला कर दिया था और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके उसके ऊपर शाही ईदगाह ढाँचा बनवा दिया था और इसे मस्जिद कहने लगे।
मथुरा का मुद्दा नया नहीं है। इस मामले में अदालत में कई याचिकाएँ दाखिल की गई हैं और उन पर सुनवाई हो रही है। लगभग 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए हिन्दू पक्ष यहाँ से शाही ईदगाह ढाँचे को हटाने की लगातार माँग करते रहे हैं। सन 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के हिन्दू राजा को इसकी भूमि के अधिकार सौंपे थे।