इस्लाम छोड़ने वाले केरल (Kerala) के अस्कर अली (Askar Ali) एक बार फिर चर्चा में हैं। हाल ही में उन्होंने अपने रिश्तेदारों पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने से कुछ घंटे पहले ही उनका अपहरण करने का आरोप लगाया था। उन्हें इस्लाम छोड़ने के बाद से कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। यहाँ तक कि परिवार वालों और रिश्तेदारों ने भी उनका साथ नहीं दिया। वे कहते हैं, “मैंने इस्लाम का विस्तार से अध्ययन करने के बाद इस मजहब को छोड़ दिया। जब मैं (हुदावी) कोर्स कर रहा था उस दौरान मेरे पास इस्लाम से संबंधित सामग्री के अलावा अन्य सामग्रियों को पढ़ने का अवसर काफी कम था। लॉकडाउन के दौरान मुझे अन्य विषयों को पढ़ने को मिला, जिससे मेरी आँखें खुल गईं।”
अस्कर ने इस बात इस बात को प्रमुखता से उठाया कि मुस्लिम समुदाय के जो लोग अपना मजहब छोड़ते हैं, उन्हें उनके परिवार के सदस्य ‘नीच प्राणी’ के रूप में देखते हैं। अली को इस्लाम का त्याग करने के बाद उन्मादी मुस्लिम भीड़ के हमलों का सामना भी करना पड़ा था, जैसे उन्होंने इस्लाम छोड़कर बहुत बड़ा पाप कर दिया हो।
हालाँकि, अस्कर अली एकमात्र पूर्व मुस्लिम नहीं हैं, जिन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है। हाल ही में साहिल नाम के एक और मजहब त्यागने वाले को इस्लामिक मौलवी ने लाइव टीवी पर धमकाया था। मौलाना ने बार-बार उस व्यक्ति को मुर्तद (मजहब छोड़ने वाला) (Murtad) कहकर संबोधित किया और उसे फटकारा। मौलवी ने कहा “एक मुर्तद (धर्म त्यागी) को इस्लाम के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। चुप रहो, तुम एक शब्द भी नहीं बोल सकते।” इसके बाद मौलवी ने शो में मजहब त्यागने वालों को बुलाने पर न्यूज एंकर के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया।
मौलाना ने अपनी धमकियों के साथ जारी रखा और चिल्लाते हुए कहा, “यह इस्लाम के खिलाफ एक साजिश है। भारत के मुस्लिम आपको, आपकी जगह दिखाएँगे।”
More threats to Anchor and Ex Muslim. pic.twitter.com/75fAsZuVhx
— Divya Kumar Soti (@DivyaSoti) May 22, 2022
एक मजहब त्यागने वाले को लाइव टीवी पर धमकाने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार इस तरह की असहिष्णुता वाली घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। इस्लाम को त्यागने वाले व्यक्तियों को अक्सर उनके समुदाय के लोगों द्वारा जान से मारने की धमकी दी जाती है।
कुरान और हदीसों के माध्यम से धर्म त्यागना
क्या मजहब त्यागने वालों के प्रति इस तरह का व्यवहार मजहबी फरमानों से प्रभावित है? इसके लिए कुरान और हदीसों को करीब से जानने की जरूरत है। अध्याय 9 (अत-तौबा) कुरान की आयत 66 कहती है, “कोई बहाना मत बनाओ! आपने अपना विश्वास खो दिया है। यदि हम आप के एक समूह (पश्चाताप करने वालों) को क्षमा कर दें, तो हम दूसरों को उनकी दुष्टता के लिए कैसे दंडित करेंगे।”
अध्याय 16 (अन-नहल) कुरान की आयत 106 कहती है, “जो कोई अपने ईमान के बाद अल्लाह पर कुफ़्र करता है, उन लोगों को नहीं जो मजबूर हैं, बल्कि वे जो पूरे दिल से कुफ़्र को गले लगाते हैं। उन्हें अल्लाह द्वारा दोषी ठहराया जाएगा और उन्हें एक बहुत बड़ी सजा मिलेगी।”
अध्याय 88 (अन-ग़शियाह) कुरान की आयत 22-24 कहता है: “आप उन्हें विश्वास करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। लेकिन जो कोई अल्लाह पर विश्वास करने से इनकार करेगा, अल्लाह उन्हें बड़ी सजा देगा।”
सहीह अल-बुखारी (6 प्रमुख हदीस संग्रहों में से एक) खंड 9, पुस्तक 84, हदीस 57 में कहता है:
इकरीमा: कुछ ज़ानादिक़ा (नास्तिकों) को जब अली के पास लाया गया तो उन्होंने उन्हें जला दिया। इस घटना की खबर, इब्न अब्बास तक पहुँची। इस पर उन्होंने कहा, “अगर मैं उनकी जगह होता, तो मैं उन्हें नहीं जलाता, जैसा कि अल्लाह के रसूल ने यह कहते हुए मना किया था, “किसी को भी अल्लाह की सजा (आग) से दंडित न करें।’ मैं उन्हें अल्लाह के रसूल के अनुसार, ‘जिसने अपना इस्लामी धर्म बदल दिया, उसे मार डालता।”
यह खंड 9, पुस्तक 84, हदीस 58 में आगे कहता है- एक व्यक्ति ने इस्लाम अपना लिया और फिर वापस यहूदी धर्म में लौट आया। मुआद बिन जबल आया और उसने अबू मूसा के साथ उस आदमी को देखा। मुआद ने पूछा, “इस (आदमी) में क्या गलत है?” अबू मूसा ने उत्तर दिया, “उसने इस्लाम अपनाया और फिर यहूदी धर्म में वापस चला गया।” मुआद ने कहा, “मैं तब तक नहीं बैठूँगा, जब तक आप उसे अल्लाह और उसके रसूल के फैसले के अनुसार मार नहीं देते।”
‘मजहब का त्याग’ करने को लेकर इस्लामी विद्वानों की राय
पाकिस्तानी इस्लामिक स्कॉलर डॉ इसरार अहमद (1932-2010) के अनुसार, इस्लाम त्यागने की सजा मौत है। कोई भी मुस्लिम जो अपने ईमान को छोड़कर जमात से बाहर जाता है। यानी मुर्तद बन जाता है, उसे मौत की सजा दी जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर जो भी अपने धर्म को बदलने के लिए इच्छुक हैं। उनको लेकर इस्लामी विद्वानों का तर्क है कि धर्मत्यागियों को तभी मारा जाना चाहिए, जब वे इस्लामिक स्टेट को उखाड़ फेंकने की साजिश रचें।
असिम अल हकीम नाम के एक अन्य इस्लामी विद्वान ने टिप्पणी की, “क्या दूसरों को मारना उचित है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहाँ से आ रहे हैं। यदि आप मुस्लिम हैं, तो उसके लिए एक निर्धारित सजा है।” उन्होंने आगे बताया कि इस्लाम को स्वीकार करने के बाद छोड़ना बहुत बड़ा पाप है।
हदीसों और इस्लामी विद्वानों की बातों के साथ-साथ कुरान की आयतों की बारीकी से जाँच करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिम के रूप में पैदा हुए लोगों के लिए इस्लाम छोड़ना आसान विकल्प नहीं है। ‘धर्मत्याग के लिए मौत’ की सजा के अलावा और भी कई तरह की प्रताड़ना दी जाती है। यह केवल भारत तक ही सीमित नहीं है।
ह्यूमनिस्ट यूके के अनुसार, दुनिया में 13 देश ऐसे हैं जो ईशनिंदा या मजहब छोड़ने के लिए मौत की सजा देते हैं। इन देशों में अफगानिस्तान, ब्रुनेई, ईरान, कतर, सऊदी अरब, सोमालिया, संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया, मालदीव, मॉरिटानिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान और यमन शामिल हैं।
इस्लाम में मजहब छोड़ने की सजा मौत
इस्लाम में मजहब छोड़ने पर मौत की सजा है। साल 2014 में आठ मुस्लिम बहुल देशों में एक मुस्लिम द्वारा इस्लाम के त्याग करने की सजा मृत्युदंड थी। जानकारी के मुताबिक, तेरह देशों में इस्लाम छोड़ने पर कई तरह की सजा दी जाती थी। इसके तहत उन्हें जेल में डाल दिया जाता है या जुर्माना लगाया जाता है। इतना ही नहीं, इसके तहत उनके बच्चे की कस्टडी भी छीन ली जाती है। कुछ दशक पहले, अधिकांश शिया और सुन्नी कानूनविदों का मानना था कि इस्लाम छोड़ना अपराध के साथ-साथ पाप भी है।