Sunday, November 17, 2024
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इरफान, महबूब, अहमद ने कर लिया था परमार वंश के राजमहल पर कब्जा: अब वहाँ के नीलकंठेश्वर मंदिर का अतिक्रमण साफ

काजी सैयद इरफान अली, महबूब अली और अहमद अली ने दीवार पर एक साइन बोर्ड टाँग कर लिख दिया था - 'निजी संपत्ति, खसरा नंबर-822, वार्ड नंबर-14' - लेकिन झूठ कब तक टिकता? अब नीलकंठेश्वर मंदिर जाने के लिए...

मध्य प्रदेश के उदयपुर स्थित प्राचीन नीलकंठेश्वर मंदिर तक पहुँचने का रास्ता अब लगातार ठीक होता जा रहा है, क्योंकि निर्माण कार्य ने गति पकड़ ली है। जो रास्ता आज से 2 हफ्ते पहले तक मात्र 10 फ़ीट का था, वो अब 30 फ़ीट का हो गया है। मार्ग को सुगम बनाने में न सिर्फ प्रशासन, बल्कि स्थानीय लोगों ने भी खासी रुचि दिखाई और योगदान दिया। लोगों ने स्वेच्छा से अपने घरों को 10-15 फ़ीट खोद डाला और सड़क व नाली के लिए रास्ता दे दिया।

रास्ते की चौड़ाई के लिए काम शुरू

इस बीच लोगों का कारोबार भी प्रभावित हुआ लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि विकास कार्य पहले है और उसमें कोई बाधा नहीं पहुँचाएगा। उदयपुर महल को भी प्रशासन ने अतिक्रमण मुक्त कर दिया है। इसके बाद नीलकंठेश्वर मंदिर तक सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य प्रारंभ किया गया। वहाँ जितने भी कब्जाधारी थे, प्रशासन ने सबको समझाया कि वो खुद अतिक्रमण किए गए जगहों को छोड़ दें। हालाँकि, किसी मकान को तोड़ने की नौबत नहीं आई।

लोगों ने खुद ही सड़क-नाले पर किए अतिक्रमण तोड़ डाले

‘पत्रिका’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, कुछ लोगों ने पहले ही लिखित में अपनी सहमति प्रशासन को दे दी थी और कुछ ने नायब तहसीलदार दौजीराम अहिरवार के साथ मंदिर परिसर में हुई बैठक में इसका निर्णय लिया। एक मोहम्मद हामिद का बयान दिया गया है, जिन्होंने कहा कि प्रशासन के 10 फ़ीट जगह माँगने की एवज में 15 फ़ीट दिया गया है। उन्होंने कहा कि उदयपुर के बेहतर विकास के लिए सभी प्रयासरत हैं।

स्थानीय नागरिकों ने प्रशासन का दिया भरपूर साथ

प्रशासन का प्रयास है कि महाशिवरात्रि तक सारे कार्य पूरे हो जाएँ, ताकि श्रद्धालु नए सुगम रास्ते से महादेव के दर्शन के लिए जाएँ। नालियों के लिए खुदाई चालू है और जल्द ही यहाँ नई नालियाँ और सड़कें दिखने लगेंगी। अधिकारियों ने इससे पहले कई बार इलाके का दौरा कर के लोगों को कानून का महत्व समझाते हुए अतिक्रमण हटाने की अपील की थी। साथ ही सामुदायिक शांति बनाए रखने को भी कहा गया।

जो रास्ता कभी सिर्फ 10 फीट चौड़ा था, वो अब काफी चौड़ा हो गया है

मध्य प्रदेश के विदिशा शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर उदयपुर एक प्राचीन नगर है। आठ हजार आबादी की इस बस्ती में हजार-बारह सौ साल की इमारतें आज भी काफी हद तक बची हुई हैं। यहाँ परमार राजवंश के वास्तुशिल्प के अनुसार दीवार-दरवाजे, मंदिर, महल, तालाब, बावड़ी, कमरे, दीवारें और गलियाँ हैं। इस जगह की प्रसिद्धि नीलकंठेश्वर मंदिर से है, जो राजा भोज के बाद की पीढ़ी में हुए महाराज उदयादित्य ने बनवाया था। 

अतिक्रमण हटने से दूर से ही नजर आ जाता है नीलकंठेश्वर मंदिर

बता दें कि महल की एक दीवार को तोड़कर सीमेंट और लोहे का दरवाजा लगा दिया गया था और पुरानी दीवार पर एक साइन बोर्ड टाँग दिया गया था- ‘निजी संपत्ति, उदयपुर पैलेस, खसरा नंबर-822, वार्ड नंबर-14।’ इस पर काजी सैयद इरफ़ान अली, महबूब अली और अहमद अली का नाम लिखा था।

नोट: ऑपइंडिया के लिए यह लेख विजय मनोहर तिवारी ने लिखा है।

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