दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर की गई चार्जशीट में उमर खालिद को लेकर कहा गया है कि उसने केवल नास्तिक होने का ढोंग किया, वस्तुत: वह कट्टर मुस्लिम है जो भारत को तोड़ना चाहता था। उमर ऐसा मानता था कि हिंसक राजनीतिक इस्लाम (violent political Islam) को फ्रंटल पॉलिटिकल पार्टियों के साथ मिलना चाहिए ताकि भारत को अपने हिस्से में लिया जा सके।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, ये दावा खालिद के ख़िलाफ दायर हुई सप्लीमेंट्री चार्जशीट में किया गया है। इस चार्जशीट में जेएनयू छात्र शरजील इमाम और फैजान खान का भी नाम है। इमाम पर इल्जाम है कि उसने खालिद का साथ दिया और फैजान खान ने उन सिम कार्ड्स को दिलवाने में मदद की, जिसे बाद में जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी और सीएए का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों व कार्यकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल किया गया।
पुलिस ने खालिद पर आरोप लगाया कि उसने साल 2016 में भारत के विचार को एक ऐसे प्लान के साथ स्वीकारा, जिसमें साल 2020 तक भारत को तोड़ने की योजना थी और जिसकी सारी अवधारणा सेकुलर और राष्ट्रीय पहचान के विनाश के साथ सिर्फ उम्माह पर आधारित थी।
यहाँ बता दें कि इमाम और खालिद के वकीलों ने भी इन आरोपों पर अपनी टिप्पणी देने से इंकार कर दिया है। यह चार्जशीट रविवार को अतिरिक्त सत्र के न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत में दायर की गई है।
इसमें यूएपीए एक्ट के तहत तीनों आरोपितों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। इन तीनों को गैर-कानूनी बैठकें, आपराधिक साजिश, हत्या, दंगे भड़काने, धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने, आदि का आरोपित बनाया गया है। कोर्ट ने इस चार्जशीट पर मंगलवार को संज्ञान लिया।
इस चार्जशीट में बताया गया कि खालिद को मालूम था कि भारतीय मुस्लिम इस्लाम की विकृत परिभाषा से नहीं जुड़ेंगे। लेकिन उसके लिए राष्ट्रीय राजधानी में रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या अप्रवासी ऐसे लोग थे, जिनका इस्तेमाल करना आसान था।
इस आरोप पत्र में खालिद को ऐसा कन्वर्जेंस बिंदु बताया गया, जिसने पैन-इस्लाम और अल्ट्रा लेफ्ट अनार्किजम को उकसाया, पोषित किया और उसका प्रचार किया।
पुलिस ने कहा कि खालिद के पास दो विचारों की परस्पर मजबूत रेखाएँ हैं। इसमें एक उसे अपने पिता से विरासत में मिली और दूसरी अल्ट्रा लेफ्ट विचारधारा, जिसमें वह योगेंद्र यादव की पसंदों के अनुरूप मिलान करने की कोशिश करता है।
शरजील इमाम- एक साम्प्रदायिक बीज
ऐसे ही शरजील इमाम के ख़िलाफ़ आरोप पत्र में कहा गया है कि शाहीन बाग विरोध स्थल से उसकी वापसी एक क्लासिकल माओवादी रणनीति यानी आंदोलन को बड़े पैमाने पर आधारित रखने और व्यक्तिवाद को प्राप्त करने के बहाने से हुई थी।
पुलिस ने इमाम के लिए कहा कि उसकी गिरफ्तारी के बाद मुख्य षड्यंत्रकारियों ने उसकी रिहाई के लिए बड़े पैमाने पर प्रेस का उपयोग किया और इस साम्प्रदायिक बीज (कम्यूनउल सीड) को लोकतंत्र का फूल बताया। पुलिस ने चार्जशीट में शरजील इमाम के ख़िलाफ़ दायर मुकदमों पर बात करते हुए खुलासा किया कि इमाम ने अपने भाई से कहा था, “हम दोनों हैं मास्टरमाइंड।”
पुलिस के मुताबिक उसकी इसी मजहबी कट्टरता का प्रयोग खालिद द्वारा किया गया। पुलिस ने खालिद पर घोर साम्प्रदायिक होने का इल्जाम लगाया और कहा कि उसके लिए इमाम एक ऐसा चेहरा था, जिसका इस्तेमाल दंगों की साजिश रचने के लिए इस्तेमाल किया जाना था।