आगरा के पंचकुइयाँ कब्रिस्तान की जमीन पर 100 परिवारों के 250 से अधिक लोग बसे हुए हैं। इसको लेकर खुलासा हुआ है कि इनमें से सिर्फ 25 लोग ही भारतीय नागरिक हैं। रिपोर्ट में दावा किया है कि जिन लोगों के पास भारतीय नागरिकता नहीं है, उनमें से अधिकांश बांग्लादेशी या रोहिंग्या घुसपैठिए हो सकते हैं।
पंचकुइयाँ कब्रिस्तान को एशिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान कहा जाता है। इस कब्रिस्तान में दफन किए गए लोगों के परिजनों द्वारा अवैध अतिक्रमण की कई बार शिकायत की गई थी। इसके बाद कब्रिस्तान प्रबंधन समिति ने हाल ही में घोषणा की कि वे अब कब्रों पर स्थायी ढाँचे का निर्माण नहीं होने देंगे।
कब्रिस्तान समिति के सचिव मोहम्मद ज़हरुद्दीन बाबर सैफी का कहना है, “हमने तय किया है कि किसी को भी सीमेंटेड कब्रिस्तान बनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और हमने लोगों से पुराने सीमेंटेड कब्रिस्तानों को भी जल्द से जल्द ध्वस्त करने के लिए कहा है।”
दरअसल, करीब 100 परिवारों कब्रिस्तान की इस जमीन पर अवैध रूप से रह रहे हैं। हालाँकि, वक्फ बोर्ड की नोटिस के बाद स्थानीय खुफिया इकाइयों (LIU) ने मामले की जाँच शुरू कर दी है। इसके साथ ही प्रशासन भी जल्द ही कार्रवाई कर सकता है।
इस कब्रिस्तान में अस्थायी झोपड़ियाँ बनाकर रहने वाले लोग गुब्बारे बेचते हैं और रेस्टोरेंट में खाना बनाने जैसे कम वेतन वाले काम करते हैं। इन परिवारों के बच्चे अक्सर सड़कों पर भीख माँगते हुए देखे जाते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स में यह बताया गया है कि यहाँ रहने वाले सिर्फ 20-25 लोगों के पास ही आधार कार्ड है, जबकि शेष अन्य लोगों के पास अपनी पहचान या नागरिकता साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। यही नहीं, इनमें से कई परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने कब्रिस्तान की जमीन पर अवैध निर्माण किया है।
इस मामले में महफूज संगठन के कॉ-ऑर्डिनेटर चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट नरेश पारस को बंगलादेशी घुसपैठियों के बारे में जानकारी मिली थी। इसके बाद उन्होंने इन घुसपैठियों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए मुख्यमंत्री और आगरा के जिलाधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने अधिकारियों से मामले में तत्काल कार्रवाई करने की अपील की है।
झोंपड़ी पाने के लिए हिंदुओं को मुस्लिम के रूप में पेश किया गया
दैनिक भास्कर ने नरेश पारस के हवाले से कहा है कि कई हिंदू परिवारों ने कब्रिस्तान की जमीन पर झोपड़ियाँ बनवाने के लिए खुद को मुस्लिम के रूप पेश किया है। उन्होंने कहा है, “यहाँ कई परिवार ऐसे भी हैं, जो हिंदू हैं। नाम बदलकर मुस्लिम बन कर रह रहे हैं। कमेटी ने निजी स्वार्थ के चलते सालों से यहाँ अवैध बस्ती बसा कर रखी है।”
एसएसपी के आदेश पर एलआईयू (स्थानीय खुफिया इकाइयों) की टीम मामले की जाँच कर रही है। वहीं, जिनके पास पहचान पत्र नहीं हैं या जो लोग अपनी पहचान छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, वे बांग्लादेशी घुसपैठिए या रोहिंग्या हो सकते हैं। इस बारे में जाँच पूरी होने के बाद प्रशासन उचित कदम उठाएगा।
शुक्रवार को चलेगा अतिक्रमण विरोधी अभियान
गत 13 अक्टूबर 2022 को एसीएम पंचम व अन्य अधिकारियों की टीम ने कब्रिस्तान का दौरा किया था। निरीक्षण के बाद उन्होंने यहाँ रहने वाले लोगों को चेतावनी दी थी कि दस्तावेज नहीं दिखाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस निरीक्षण के बाद वक्फ बोर्ड की एक टीम ने भी रविवार (18 अक्टूबर 2022) को इस कब्रिस्तान का दौरा करते हए नोटिस चस्पा किया है। यहाँ रहने वाले लोगों को तीन दिनों के भीतर पहचान दस्तावेज जमा करने के बाद कब्रिस्तान की जमीन पर रहने की अनुमति देने को कहा गया है।
इस मामले में एडीएम सिटी अंजनी श्रीवास्तव का कहना है, “कब्रिस्तान समिति ने पत्र लिखा है। शिकायत के आधार पर मामले की जाँच की जा रही है। जाँच पूरी होने के बाद प्रशासन उचित कार्रवाई करेगा। जिनके पास पहचान पत्र हैं वे कब्रिस्तान समिति की अनुमति से रह सकते हैं।” वहीं, कब्रिस्तान समिति के सचिव मौलाना जुबैर ने कहा है, “यहाँ रहने वाले लोग बेहद गरीब हैं। प्रशासन जो भी फैसला करेगा, हम उसका सम्मान करेंगे।”
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने ही कई बार भारत में अवैध घुसपैठियों की समस्या को लेकर आगाह किया है। हाल ही में ऑपइंडिया ने नेपाल के निकट सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती जनसंख्या पर रिपोर्ट्स की एक सीरीज जारी की थी। इन रिपोर्ट्स से यह सामने आया था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का एक बड़ा वर्ग अवैध घुसपैठिया हो सकता है।