उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने लुईस खुर्शीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है। वे कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और मनमोहन सरकार में मंत्री रहे सलमान खुर्शीद की बीवी हैं। मामला डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट में 71 लाख रुपए के गबन से जुड़ा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, फर्रुखाबाद के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रवीण कुमार त्यागी ने लुईस खुर्शीद और एक अन्य आरोपित अतहर फारूकी के खिलाफ ट्रस्ट में वित्तीय गड़बड़ी करने के आऱोप में गैर जमानती वारंट जारी किया है। फारूकी ट्रस्ट के सचिव हैं।
कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 की सरकार के दौरान मार्च 2010 में लुईस खुर्शीद की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट को उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में दिव्यांगों को व्हीलचेयर, ट्राइसाइकिल और सुनने की मशीन देने के लिए 71 लाख रुपए का अनुदान दिया गया था। जब सलमान खुर्शीद यूपीए कैबिनेट में मंत्री थे तो उसी दौरान वर्ष 2012 में ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और जालसाजी करने का मामला सामने आया था। हालाँकि, उस दौरान खुर्शीद दंपती ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
इसके बाद साल 2017 में आर्थिक अपराध शाखा ने मामले की जाँच शुरू की और लुईस खुर्शीद व अतहर फारूकी के खिलाफ फर्रुखाबाद के कायमगंज पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई। जाँच एजेंसियों ने 30 दिसंबर 2019 को इस मामले में आरोप-पत्र दाखिल किया। इसमें आरोप लगाया गया था कि अभियुक्तों ने दिव्यांगों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के हस्ताक्षर और मुहरों में जालसाजी की थी।
इस मामले में ट्रस्ट ने दावा किया था कि उसने उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, कासगंज, मैनपुरी, अलीगढ़, शाहजहाँपुर, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, गौतम बौद्ध नगर, रामपुर, संत कबीर नगर और प्रयागराज में दिव्यांग बच्चों और व्यक्तियों को व्हीलचेयर, ट्राई साइकिल देने के लिए शिविर आयोजित किए थे। दावा किया गया था कि मई 2010 में लुईस खुर्शीद के नेतृत्व में दिव्यांग बच्चों को उपकरण वितरित किए गए थे। हालाँकि, बाद में यह पता चला कि ऐसा कोई शिविर आयोजित ही नहीं किया गया था, बल्कि दिव्यांगों के लिए शिविर केवल कागज पर हुए थे।