उत्तर प्रदेश में एक समय माफियाओं का इतना बोल बाला था था कि कलेक्टर तक कार्रवाई करने से डरते थे। अगर माफिया मुख्तार अंसारी हो तो यह डर कई गुना और बढ़ जाता था। वोट और अन्य समीकरणों की वजह से उन पर सत्ताधारी पार्टी का दबाव होता था। अधिकारी लाचार और जनता भय से त्रस्त होकर चुप्पी साध लेती थी।
बता 1990 के दशक की है। गाजीपुर जनपद के युसूफपुर मुहम्मदाबाद का रहने वाला जेल में बंद गैंगस्टर मुख्तार अंसारी मऊ को अपना अड्डा बना लिया था। यहीं से वह तमाम गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता था। इस दौरान वह मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) में शामिल हो गया और साल 1996 में विधायक भी बन गया। साल 2002 में फिर विधायक बना और उसके तीन साल बाद 2005 के कुख्यात मऊ दंगे की शुरुआत की।
कहा जाता कि इस दंगे में लगभग एक महीने तक मऊ जलता रहा। कितने ही हिंदुओं की हत्याएँ की गईं। कितनों के घर जला दिए गए। दुकान और व्यवसाय नष्ट कर दिए गए। जमीनों और मकानों पर कब्जा कर लिए गए। प्रशासन लाचार बना रहा और शहर जलता रहा। इस दंगे की आग इतनी भीषण थी कि इतिहास में पहली बार रेलवे ने मऊ से अपना संचालन बंद कर दिया। साल 1988 में पहली अपराध की दुनिया में सामने आया मुख्तार अंसारी इस दंगे का मास्टरमाइंड बताया जाता है।
इस घटना की भयावहता के बारे में मऊ के सामाजिक कार्यकर्ता छोटेलाल गाँधी ने विस्तार से बताया। ऑपइंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “अक्टूबर 2005 में एक सुनियोजित तरीके से मुख्तार अंसारी ने दंगा कराया। ये मुसलमान कहते थे कि विधायक जी अगर तीन दिन का छूट मिल जाता तो हम लोग (हिंदुओं को) चटनी बना देते। शाही कटरा के मैदान में भरत मिलाप के दिन 14 अक्टूबर 2005 को तार तोड़वाया। तार तोड़वाने के बाद एक सुनियोजित तरीके से दंगा हुआ।”
दंगे में मुख्तार की भूमिका को लेकर छोटेलाल ने बताया, “उस दौरान मुख्तार अंसारी एक खुली जीप में बैठकर जा रहा था। उस समय लगभग 9:30 बज था। जब वह तलहा बाग मोड़ के पास पहुँचा तो उस समय फायरिंग और आगजनी हो रही थी। वह (मुख्तार अंसारी) पिस्टल लेकर दौड़ा और एक आदमी की वहीं पर हत्या हुई। जिस यादव की हत्या हुई, उसके भाई को पकड़ कर रात में पकड़कर मुख्तार और उसका भाई अफजाल अंसारी लखनऊ ले गए। वहाँ उस आदमी मुलायम सिंह के बगल में बैठकर कह रहा है कि विधायक मुख्तार अंसारी तो शांतिदूत बनकर सबको अपील कर रहे थे कि मऊ में शांति बनाए रखें।”
छोटेलाल कहते हैं, “मुख्तार के बिना यह दंगा ही नहीं होता। यह तो मऊ में गोधरा कांड से बड़ा कांड कराना चाहता था। मऊ के पुलिस स्टेशन का दारोगा एक खान था। जुमा के बहाने वह सारा बंदूक बंद करके चला गया था। वो तो सेना का एक जवान था, जो अपने परिवार के साथ उस समय घूम रहा था। उसने दो पुलिस वालों से कहा कि रोको तो पुलिसवाले बोले कि 5000 आदमी है, लूट लेगा सब। इसके बाद सेना का वह जवान बंदूक छीनकर मारा तो एक आदमी मरा और एक घायल हुआ तो दंगा से मऊ बचा।”
छोटेलाल ने ऑपइंडिया से कहा कि जब मुस्लिम हिंदुओं के घरों को जला रहे थे तो उन्होंने डीएम से कई बार बात की थी। तब अमर यादव डीएम थे। छोटेलाल कहते हैं, “डीएम से हम कहते थे कि साहब यहाँ दंगा हो रहा है, सब जला रहे हैं तो वे कहते थे- लड़ने लायक हो तो लड़ो नहीं तो मर जाओ सालों… हम क्या करें। कहाँ-कहाँ पुलिस लगाएँ। डीएम एकदम पंगु था मुख्तार के सामने।”
छोटेलाल के अनुसार, दंगों के दौरान मुख्तार ने मऊ बाजार में हिंदुओं की कीमतों दुकानों को जलवा दिया था। उनकी कीमत दो-दो करोड़ रुपए तक थी। वह चाहता था कि हिंदुओं से पूरी मार्केट खाली हो जाएगा और वहाँ सिर्फ मुस्लिम दुकानदार रहें। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्तार अंसारी पर तब मुलायम सिंह यादव का हाथ था। इसलिए पुलिस-प्रशासन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता था।