काशी स्थित ज्ञानवापी ढाँचे की ASI रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद मुस्लिम पक्ष पर नैतिक दबाव बन गया है। रिपोर्ट में हिंदुओं की धार्मिक चिह्नों, कलाकृतियों और देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ मिलने की बात सामने आई है। अब विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने साफ शब्दों में कहा है कि मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए।
विश्व हिंदू परिषद अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा कि ज्ञानवापी ढाँचे से ASI द्वारा जुटाए गए सबूत से पुष्टि होती है कि मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद बनवाया गया है। उन्होंने कहा कि मंदिर की प्राचीन संरचना का एक हिस्सा आज भी मौजूद है।
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— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) January 27, 2024
आलोक कुमार ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उस पूरे ढाँचे का वैज्ञानिक और पूरी गहराई से अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में ASI ने ढाँचे से सारे प्रमाण इकट्ठा किए हैं और उन सबका अध्ययन करके वे इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि एक मंदिर को तोड़ करके उसके ऊपर ये मस्जिद बनाई गई थी।
आलोक कुमार ने कहा कि उस मंदिर का एक हिस्सा, खासकर पश्चिमी दिवार, मस्जिद बनाने में इस्तेमाल की गई है और पुराने मंदिर के पिलर्स एवं अन्य चीजों को उस मस्जिद को बनाने में लगाया गया है। उन्होंने ज्ञानवापी ढाँचे में मिले शिवलिंग की पूजा करने की भी अनुमति माँगी है। बता दें कि जिस जगह पर शिवलिंग मिला है, उसे मुस्लिम पक्ष वजूखाना कहता है।
विश्व हिंदू परिषद के अनुसार, ज्ञानवापी सर्वे में जो शिलालेख मिले हैं, उनमें जनार्दन, रुद्र, उमेश्वर आदि नाम लिखे हुए मिले हैं। इसलिए ज्ञानवापी की प्रकृति अभी भी एक मंदिर की है। आलोक कुमार ने आगे कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्सिप ऐक्ट कहता है कि धार्मिक स्थान की जो प्रकृति होगी वो बदली नहीं जाएगी और ASI रिपोर्ट से साबित हो चुकी है कि उस स्थान की प्रकृति एक मस्जिद की नहीं, अभी भी एक मंदिर की है।
आलोक कुमार ने हिंदू समाज को कथित वजूखाने में मिले शिवलिंग की सेवा और पूजा की अनुमति करने के साथ ही मुस्लिम पक्ष से ज्ञानवापी को हिंदुओं को सौंपने की माँग की। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह मुस्लिम पक्ष जमीन लेकर दूसरी जगह अपनी मस्जिद बना लें।
आलोक कुमार ने कहा, “हम मस्जिद इंतजामिया कमिटी से आग्रह करते हैं कि सब प्रमाण सामने आने के बाद अच्छा होगा कि वे स्वयं ये कहें कि इस मस्जिद को किसी दूसरे एवं उपयुक्त स्थान पर आदरपूर्वक स्थानांतरित करने के लिए तैयार हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो भारत के दोनों समुदायों के बीच में एक सदभावना का निर्माण होगा, शांति स्थापित होगी और मस्जिद भी अपने विस्थापित स्थान पर आदरपूर्वक रह सकेगी।”