गोवा के नेता सुभाष वेलिंगकर द्वारा ईसाई संत फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों के डीएनए परीक्षण कराने की माँग करने के बाद पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। प्रदर्शन को देखते हुए गोवा पुलिस ने शनिवार (5 अक्टूबर 2024) को कहा कि वेलिंगकर फरार हैं और उन्हें खोजने के लिए छापेमारी की जा रही है। विवाद की पीछे की वजह जानने से पहले आइए जानते हैं कि मामला क्यक है।
गोवा के ईसाई समुदाय का आरोप है कि वेलिंगकर द्वारा फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों के डीएनए परीक्षण कराने की माँग करके उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई गई है। इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि इस तरह का बयान देकर सांप्रदायिक सद्भाव को भी नुकसान पहुँचाई गई है। पूर्व RSS नेता वेलिंगकर के खिलाफ गोवा भर में कम से कम आधा दर्जन शिकायतें दर्ज कराई गई हैं।
आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक क्रूज सिल्वा की शिकायत के आधार पर शुक्रवार (4 अक्टूबर) की रात उत्तरी गोवा के बिचोलिम पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई। वेलिंगकर पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।
एफआईआर के अनुसार, वेलिंगकर ने दुर्भावनापूर्ण इरादे से सेंट फ्रांसिस जेवियर के खिलाफ अपमानजनक भाषण दिया, जिससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची। सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार (4 अक्टूबर) की रात पुलिस की एक टीम वेलिंगकर के घर गई थी, लेकिन वे वहाँ नहीं मिले। बता दें कि वेलिंगकर को साल 2016 में आरएसएस ने संगठन से निकाल दिया था।
वेलिंगकर की गिरफ्तारी की माँग को लेकर शुक्रवार (4 अक्टूबर 2024) को राज्य के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुए। मडगाँव में 300 से अधिक लोग पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गए। विरोध करने वाले लोगों में कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी के कई नेता भी शामिल थे। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
वहीं, शनिवार (5 अक्टूबर 2024) को प्रदर्शनकारियों ने मडगाँव, अंजुना और ओल्ड गोवा में सड़कें जाम कीं। प्रदर्शनकारियों ने गोवा पुलिस को चेतावनी दी कि अगर आरोपित वेलिंगकर की जल्दी गिरफ्तारी नहीं हुई तो वे जुआरी पुल को जाम कर देंगे। प्रदर्शन को देखते हुए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने लोगों से शांति बनाए रखने और सड़कें जाम नहीं करने की अपील की।
प्रमोद सावंत ने कहा, “फादर बोलमैक्स के खिलाफ जो भी कार्रवाई की गई थी, वैसी ही कार्रवाई वेलिंगकर के खिलाफ भी की जाएगी।” दक्षिण गोवा के चिकालिम स्थित सेंट फ्रांसिस जेवियर चर्च के पादरी फादर बोलमैक्स परेरा पर पिछले साल छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में अपमानजनक टिप्पणी कर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने को लेकर एक मामला दर्ज किया गया था।
गोवा के संरक्षक फ्रांसिस जेवियर नहीं, परशुराम हैं: वेलिंगकर
इस सप्ताह की शुरुआत में सुभाष वेलिंगकर ने गोवा के संरक्षक कहे जाने वाले सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों की डीएनए जाँच की माँग की थी। उन्होंने कहा कि सेंट जेवियर को ‘गोएंचो साईब’ (गोवा का संरक्षक) नहीं कहा जा सकता। इससे पहले साल 2022 में भी उन्होंने ऐसा ही बयान दिया था। उस वक्त भी उनके बयान का विरोध हुआ था।
साल 2022 में वेलिंगकर ने कहा था कि सेंट फ्रांसिस जेवियर को ‘गोएंचो साईब’ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि ‘द गोवा फाइल्स’ नामक एक अभियान शुरू किया जाएगा, ताकि जागरूकता पैदा की जा सके। सुभाष वेलिंगकर का कहना है कि गोएंचो साईब सेंट फ्रांसिस जेवियर नहीं, बल्कि हिंदुओं के पौराणिक भगवान परशुराम ‘गोएंचो साईब’ हैं।
बता दें कि सेंट फ्रांसिस जेवियर स्पेनिश जेशूइट मिशनरी थे। वे 1542 में गोवा पहुँचे थे। उस समय गोवा पुर्तगाल का उपनिवेश था। साल 1552 में चीन के ग्वांगडोंग प्रांत के तट पर स्थित सैन्सियन द्वीप पर उनकी मृत्यु हो गई थी। उनका अवशेष पुराने गोवा में ‘बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस’ में रखे हैं। उनके अवशेषों की प्रदर्शनी 21 नवंबर 2024 से 5 जनवरी 2025 तक गोवा में आयोजित की जाएगी।
वेलिंगकर ने भी थाने में दी है शिकायत
वेलिंगकर ने गुरुवार (3 अक्टूबर 2024) को ओल्ड गोवा पुलिस स्टेशन में कुछ एक्टिविस्ट ग्रुप के खिलाफ शिकायत दी। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा, “मैंने हाल ही में गोवा इंक्विजिशन के बारे में एक बयान दिया, जो गोवा के इतिहास का एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है। यह पुर्तगाली शासन के दौरान हुआ था, जबकि इतिहास ईसाई धर्म के प्रसार में सेंट फ्रांसिस जेवियर के योगदान की बात करता है।”
उन्होंने आगे कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि गोवा इंक्विजिशन ने कई गैर-ईसाइयों के लिए आतंक का शासन बनाया। मैं नफरत और आतंक फैलाने वाले इनक्विजिशन की कार्रवाइयों और संतत्व की सच्ची भावना के बीच तुलना करता हूँ। मेरा मानना है कि इतिहास को फिर से देखने, अतीत की कार्रवाइयों की जांच करने और संतत्व के सही अर्थ पर विचार करने का समय आ गया है।”
वेलिंगकर ने आगे कहा, “इंक्विजिशन के दौरान या किसी अन्य ऐतिहासिक अवधि में नफरत या उत्पीड़न को बढ़ावा देने वाले कार्यों को पवित्र नहीं माना जा सकता। यह बयान किसी धर्म को बदनाम करने के लिए नहीं, बल्कि उन ऐतिहासिक घटनाओं को उजागर करने के लिए दिया गया है, जिन्होंने अनगिनत गोवावासियों के अनुभवों को आकार दिया।”
सुभाष वेलिंगकर ने अपने बयान के पीछे बौद्ध समुदाय के लोगों की माँगों का भी तर्क दिया। उन्होंने कहा, “मेरे बयान लिखित इतिहास की बात करते हैं, न कि मेरे व्यक्तिगत विचारों की। श्रीलंका और विश्व भर के बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों की पहचान सत्यापित करने के लिए डीएनए जाँ की माँग जोर पकड़ रही है।”
क्या है बौद्ध समुदाय के लोगों की माँग
श्रीलंका सहित दुनिया भर के बौद्ध गोवा के सेंट फ्रांसिस जेवियर की रखे गए अवशेषों की जाँच की माँग करते रहते हैं। उनका कहना है कि जिन अवशेषों को फ्रांसिस जेवियर का बताया जाता है, वह बौद्ध आचार्य राहुल थेरो के अवशेष हैं। साल 2014 में श्रीलंका के एक्विस्ट समूह ने भारत के मोदी सरकार और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम महिंदा राजपक्षे को संबोधित एक खुला पत्र लिखा गया था।
दिसंबर 2014 को अपने पिटिशन में बौद्ध समुदाय के लोगों ने कहा था, “हम हस्ताक्षरकर्ता भारत और श्रीलंका तथा शेष विश्व के चिंतित और सही सोच वाले नागरिकों के रूप में आपसे अनुरोध करते हैं कि भारत के गोवा में एक चर्च में काँच के ताबूत में रखे एक शव के अवशेषों की वास्तविक पहचान के संबंध में लंबे समय से चले आ रहे विवाद को सुलझाने में कृपया हस्तक्षेप करें।”
इसमें कहा गया था, “श्रीलंका में विशेष रूप से बौद्ध लोगों के बीच यह व्यापक मान्यता है कि विचाराधीन शव श्रीलंका के एक अत्यंत सम्मानित साहित्यिक दिग्गज और विद्वान भिक्षु आचार्य वेन. थोटागामुवे श्री राहुला थेरो (1409-91) का है, जबकि कैथोलिकों को विश्वास दिलाया गया है कि यह फ्रांसिस जेवियर का शव है, जो एक विवादास्पद ईसाई जेसुइट मिशनरी था और उस पर कुख्यात गोवा इंक्विजिशन शुरू करके मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगा था।”
पिटिशन में आगे कहा गया था, “हमारा मानना है कि दोनों परिवारों के वंशजों का डीएनए परीक्षण या रक्त का नमूना की जाँच सदियों से चली आ रही बहसों और सिद्धांतों को संतोषजनक ढंग से समाप्त कर देगा। हमारी माँग है कि गोवा में पड़े शव को फ्रांस को लौटा दिया जाए और विवादास्पद अवशेषों को अब गोवा में न रखा जाए क्योंकि न तो गोवा और न ही भारत विदेशी देशों का उपनिवेश है।”
पिटिशन में कहा गया है कि गोवा को भारत ने 1961 में आजाद कराया था। वास्तव में गोवा इंक्विजिशन (पहली बार फ्रांसिस जेवियर द्वारा प्रस्तावित) के कोंकणी ईसाई पीड़ितों के वंशजों ने एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है और भारत सरकार से भी अपील की है। इस संबंध में ऐतिहासिक डेटा और तथ्यात्मक तर्क के आधार लेख के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। इसलिए इसकी जाँच कराई जाए।
फ्रांसिस जेवियर के शव को लेकर श्रीलंकाई पत्रकार डब्ल्यू टीजेएस कविरत्ने ने फरवरी 2014 में एक लेख भी लिखा था। इस लेख में उन्होंने दावा किया था कि बौद्ध भिक्षुओं और श्रीलंकाई भक्तों के एक वर्ग का कहना है कि सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेष 15वीं शताब्दी के बौद्ध भिक्षु श्री राहुला थेरो के हैं। हालाँकि, उन्होंने यह कहा था कि लोगों की इन विचारों की पुष्टि के लिए डीएनए परीक्षण जरूरी है।
ईसाइयों ने किया था जेवियर के अवशेषों की प्रदर्शनी का विरोध
साल 2014 में पहली बार गोवा के ईसाई समुदाय के लोगों ने फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों के सार्वजनिक प्रदर्शन को लेकर विरोध किया गया था। जेवियर को एक संत और चमत्कारी व्यक्ति बताया जाता है। यह सार्वजनिक प्रदर्शनी पिछले 500 वर्षों में पहली प्रदर्शन होने वाला था। इसके लिए 22 नवंबर 2014 से 4 जनवरी 2015 तक गोवा तक समय प्रस्तावित किया गया था।
उस समय ईसाई समुदाय के एक वर्ग ने फ्रांसिस जेवियर के अत्याचारों के कोंकणी ईसाई पीड़ित नामक एक समूह बनाया था। उन्होंने इस प्रदर्शनी के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दी थी कि वे जेवियर के अत्याचारों के पीड़ितों के वंशज हैं। उनकी माँग थी कि जेवियर के शव को उनके गृह देश फ्रांस वापस भेजा दिया जाए। इस माँग को लेकर उन्होंने राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया था।
खुद को पीड़ितों के वंशज मानने वाले लोगों का कहना था कि गोवा में पुर्तगाली शासन समाप्त हुए 53 साल हो चुके हैं। इसलिए, भारत में जेवियर के शव को संरक्षित रखना भारत का अपमान है और इसे जल्द से जल्द पुर्तगाल भेजा जाना चाहिए। पीड़ितों ने गोवा सरकार और केंद्र सरकार से याचिका दायर करने की भी योजना बनाई थी।
भारत के बौद्ध संगठन भी DNA जाँच के पक्ष में
फ्रांसिस जेवियर और बौद्ध प्रबुद्ध राहुल थेरो के अवशेषों को लेकर जो विवाद जन्मा है, इसको लेकर भारत के बौद्ध समुदाय के लोग एवं संगठन भी DNA परीक्षण कराए जाने के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि जिस बात को लेकर विवाद हो जाए, उसका वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण करके समाधान निकालना ही शांति के पक्ष में है।
बिहार के बोधगया स्थित बौद्ध धर्म के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक महाबोधि मंदिर के प्रबंधन समिति के सदस्य धम्मा धीरू उर्फ प्रेमा फंते ने इस संबंध में ऑपइंडिया से बात की। उन्होंने कहा कि भारत के बौद्ध समुदाय के लोग भी चाहते हैं कि गोवा में संरक्षित कथित फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों का परीक्षण कराया जाए।
प्रेमा भंते ने कहा कि राहुल थेरो बौद्ध धर्म के एक महान संत थे और उनके अवशेषों को लेकर जाँच की माँग की जा रही है तो इसे की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के बौद्ध समुदाय के संगठन के बीच इसको लेकर राय-मशविरा किया जाएगा और इस संबंध में जरूरत पड़ी प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति को ज्ञापन भी सौंपा जाएगा।
कौन हैं बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध संत राहुल थेरो
थोटागामुवे श्री राहुला थेरो श्रीलंका के साहित्य जगत में एक साहित्यिक दिग्गज थे। उन्होंने 1430 से 1440 की अवधि के दौरान बुद्धगज्जया, वुर्थमाला संदेसाया, परवी संदेसाया, सेलाहिनी संदेसाया, काव्यासेकराय, पंचिका प्रदीपया, बुद्दीपसदिनिया, गिरा संदेसाया, साकसकाडा और मावुलु संदेसाया जैसी प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाएँ लिखीं।
राहुल थेरो का जन्म 9 जून 1409 को राजा पराक्रमबाहु 6वें के शासनकाल में हुआ था। वे सन 1429 में भिक्षु बने। इसके बाद उन्हें वच्चिश्वर के नाम से जाना जाता था। राहुल थेरो 6 भाषाओं में पारंगत थे और एक प्रतिष्ठित लेखक, अनुभवी ज्योतिषी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में पारंगत थे। इन तीनों क्षेत्रों से लेकर आध्यात्म तक में उन्होंने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी हैं।
वे राजा पराक्रमबाहु द्वारा संगराजा का पद पाने वाले पहले भिक्खु बने। वह राजा विजयबाहु प्रथम द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित शिक्षा संस्थान थोटागामुवे विजयबा पिरिवेना के मुख्य पदाधिकारी और प्रधानाचार्य भी थे। विजयबा पिरिवेना और रथपथ विहार, दोनों को 1580 ईस्वी में थोम डीसूजा ने नष्ट कर दिया था। इसके कुछ ग्रेनाइट स्तंभ ही बचे थे। मंदिर का पुनर्निर्माण 1765 में वेन. पल्लट्टारा थेरो द्वारा किया गया था।
श्री राहुला थेरो का 27 सितंबर 1491 को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद गाँव के लोग विजयबा पिरिवेना पहुँचे और उनके शरीर (बढ़ते बालों और नाखूनों के साथ) को सुरक्षा के लिए एल्पिटिया के पास अंबाना इंदुरुगिरी गुफा में रख दिया। ऐसा कहा जाता है कि राहुला थेरो ने एक औषधि (सिद्धलोक रस) का सेवन किया था, जिससे उनका शरीर वर्ष 4230 तक अपरिवर्तित रहा था।
उनके शरीर के इस अपरिवर्तन की बात उनकी मृत्यु से पहले ताँबे की शीट पर एक श्लोक में उकेरा गया था। जब पुर्तगाली श्रीलंका पहुँचे तो उन्होंने उनके शरीर को अपने कब्जे में ले लिया और उसे गोवा भेज दिया। कहा जाता है कि राहुल थेरो के शरीर को गोवा ले जानेे का काम ईसाई मिशनरी फ्रांसिस जेवियर को सौंपा गया था। यात्रा के दौरान फ्रांसिस जेवियर की समुद्र में मृत्यु हो गई और राहुल थेरो के शरीर को फ्रांसिस जेवियर का बता दिया गया।
कौन थे सेंट फ्रांसिस जेवियर
इसाई मिशनरी धर्म प्रचारक सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर (Francis Xavier) पुर्तगाली काफिले के साथ वर्ष 1542 में भारत आया था। उसने भारत पहुँचकर ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। वह ‘सोसायटी ऑफ जीसस’ से जुड़ा था। इन्हीं सोसायटी ऑफ़ जीसस वालों को जेसुइट्स कहा जाता है।
सेंट फ्रांसिस जेवियर के आने के बाद 1559 तक गोवा में 350 से अधिक हिन्दू मंदिरों को बंद कर दिया गया था। इस दौरान हिन्दुओं के मूर्ति पूजा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। सारे प्रयास किए गए कि वह हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाईयत अपना लें। इसके बाद भी सेंट जेवियर ने देखा कि उसके हिन्दुओं के बलात धर्म परिवर्तन के प्रयास पूरी तरह से कामयाब नहीं हो रहे थे।
उसे समय रहते यकीन होता गया कि सनातन धर्म की आस्था अक्षुण्ण है। यदि वह मंदिरों को नष्ट करता है तो लोग घरों में ही मंदिर बना लेते हैं। उसने देखा कि लोगों को धारदार हथियारों से काटने, उनके हाथ और गर्दन रेतने और असीम यातनाको देने के बाद भी फेनी (सस्ती शराब) और सनातन धर्म में से लोग सनातन धर्म को ही चुनते और मौत को गले लगा लेते।
निराश होकर जेवियर ने रोम के राजा को पत्र लिखा जिसमें उसने हिन्दुओं को एक अपवित्र जाति बताते हुए उन्हें झूठा और धोखेबाज लिखा उसने कहा कि उनकी मूर्तियाँ काली, बदसूरत और डरावनी होने के साथ ही तेल की गंध से सनी हुई होती हैं। इसके बाद हिन्दुओं पर यातनाओं का सबसे बुरा दौर आया। फ्रांसिस जेवियर ने गोवा का पूर्ण अधिग्रहण किया।
हिन्दुओं के दमन के लिए एक धार्मिक नीतियाँ बनाई और यीशु की कथित सत्ता में यकीन ना करने वाले ‘नॉन-बिलीवर्स’ को दंडित किया जाने लगा। इस घटना के बारे में लिखने वाले इतिहासकारों को भी सख्त यातनाएँ दी गईं। उन्हें या तो गर्म तेल में डालकर जलाया जाता या फिर जेल भेज दिया जाता। ऐसे ही कुछ लेखकों में फिलिपो ससेस्ती, चार्ल्स देलोन, क्लाउडियस बुकानन आदि के नाम शामिल थे।
इतिहास में पहली बार हिन्दू भागकर बड़े स्तर पर प्रवास करने को मजबूर हो गए। सेंट फ्रांसिस जेवियर ने मात्र भारत ही नहीं बल्कि मलय प्रायद्वीप, श्रीलंका, जापान और चीन तक में ईसाइयत का प्रचार करने गया था। उसकी चीन के द्वीप पर बुखार से मौत हो गई थी। बताते हैं कि उसने अपने जीवन में कम से कम 30,000 लोगों को ईसाई बनाया था।
सेंट फ्रांसिस जेवियर जिस सोसायटी ऑफ़ जीसस या ‘जेसुइट्स’ का हिस्सा था वह बड़े स्तर पर लोगों को गुलाम बनाते थे। जेसुइट्स ने अमेरिका में स्थानीय आदिवासियों को गुलाम बनाया था। उनके पास एक समय में 20,000 से अधिक गुलाम थे और उन्हें खेतों तथा अन्य कामों में लगाया जाता था। गुलामों को रखने, उन पर अत्याचार करने को कई बार सही भी बताया गया था। इसे ईसाईयत के विरुद्ध नहीं माना गया था।