पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद से ही जारी ‘व्यापक हिंसा’ को देखते हुए एनजीओ ‘इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट’ ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (4 मई) को एक याचिका दायर की। इसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने, केंद्रीय बलों की तैनाती और शीर्ष अदालत के एक रिटायर्ड जज द्वारा जाँच की माँग की गई है।
2 मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी की तीसरी बार सत्ता में वापसी के बाद से ही राज्य भर से बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा की खबरें आ रही हैं। इसी को देखते हुए इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट ने पश्चिम बंगाल में संवैधानिक ढांचे के ध्वस्त होने का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति शासन की माँग की है।
अब सवाल उठता है कि किसी राज्य में संविधान के जिस अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, वह क्या है और उसे किन-किन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है? आइए जानें अनुच्छेद 356 से जुड़े हर एक सवाल का जवाब।
क्या है आर्टिकल 356
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है। भारत में राष्ट्रपति शासन का अर्थ किसी राज्य सरकार को हटाए जाने और राज्य में केंद्र सरकार का शासन लागू होना होता है। इसे ‘राज्य आपातकाल’ या ‘संवैधानिक आपातकाल’ भी कहा जाता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, यदि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में असमर्थ है, तो केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुमति देता है। ऐसा होने पर राष्ट्रपति की अनुमित से केंद्र सरकार राज्य मशीनरी का प्रत्यक्ष नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है।
कब लागू होता है अनुच्छेद 356
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, केंद्र सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य की सरकार को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार है। साथ ही राष्ट्रपति शासन तब भी लागू किया जा सकता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल न हो।
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, “यदि वह (राष्ट्रपति) संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य नहीं कर रही है।”
अनुच्छेद 356 के अनुसार, यदि राज्य के संवैधानिक मशीनरी या विधायिका संवैधानिक मानदंडों का पालन करने में विफल रहती है तो राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट मिलने पर केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देता है।
राज्य में संवैधानिक मशीनरी के ध्वस्त होने का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय किया जा सकता है, राज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त होने पर, या स्वत: संज्ञान लेकर।
इन परिस्थितियों में लागू होता है राष्ट्रपति शासन
- राज्य में संवैधानिक ढांचा पूरी तरह से ध्वस्त हो गया हो
- राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह करने में विफल रहे
- राज्य सरकार शांति-व्यवस्था बनाए रखने (दंगे रोकने) में विफल रहे
- विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न हासिल हुआ हो
- सबसे बड़ा दल सरकार बनाने से इनकार कर दे
- सत्तारूढ़ गठबंधन बिखर जाए और सदन में अपना बहुमत खो दे
- युद्ध, महामारी या प्राकृतिक आपदाओं जैसे अपरिहार्य कारणों से चुनाव स्थगित हो जाएँ
- विधानसभा गवर्नर द्वारा तय समय में मुख्यमंत्री के तौर पर किसी नेता को न चुन पाए
- पूरे भारत में या राज्य के किसी भी हिस्से में पहले से ही एक राष्ट्रीय आपातकाल हो
- चुनाव आयोग प्रमाणित करे कि राज्य में चुनाव नहीं हो सकते
अनुच्छेद 356 लागू होने पर होता है किसका शासन
आर्टिकल 356 लागू होने के बाद राज्य का शासन विधानसभा के बजाय राज्यपाल के हाथों में आ जाता है, जिसे केंद्र की सलाह पर राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। यानी राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद केंद्र के प्रतिनिध के तौर पर राज्यपाल राज्य का शासन चलाता है।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य में मुख्यमंत्री का पद खाली हो जाता है और निर्वाचित मंत्रिमंडल कोई भी काम नहीं कर सकता है। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद गवर्नर के पास उनकी सहायता के लिए अन्य प्रशासकों को नियुक्त करने का अधिकार होता है। ये प्रशासक आमतौर पर निष्पक्ष रिटायर्ड सिविल सेवक होते हैं।
कब तक लागू रह सकता है अनुच्छेद 356
यदि दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित हो तो राष्ट्रपति शासन 6 महीने तक जारी रह सकता है। इसे संसद की मँजूरी के साथ अधिकतम तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।