नोएडा की सूरजपुर जिला और सत्र अदालत (Surajpur District and Sessions Court) ने मंगलवार (30 अगस्त 2022) को ‘डिजिटल रेप’ (Digital Rape) के दोषी 65 साल के अकबर अली को उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।
बताया जा रहा है कि यह देश का पहला मामला है, जब किसी आरोपित को 3 साल की बच्ची के साथ ‘डिजिटल रेप’ का दोषी करार देते हुए POCSO अधिनियम के साथ-साथ IPC की धारा 375 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह घटना नोएडा के सेक्टर-39 थाना क्षेत्र के सलारपुर गाँव (Salarpur Village) की है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में अकबर अली की उम्र 75 साल बताई गई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अकबर अली मूल रूप से पश्चिम बंगाल का रहने वाला है। वह साल 2019 में अपनी शादीशुदा बेटी से मिलने नोएडा के सेक्टर-45 स्थित सलारपुर गाँव आया था। यहाँ उसने पड़ोस में रहने वाली तीन साल की बच्ची को टॉफी का लालच दिया और उसे अपने घर ले आया। अकबर अली की हरकतों से डरी-सहमी बच्ची अपने घर पहुँची और माता-पिता को पूरी बात बताई। उसके बाद परिजनों ने थाने पहुँचकर शिकायत दर्ज कराई।
पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नितिन बिश्नोई (Nitin Bishnoi) ने बताया कि 2019 में बच्ची के माता-पिता की शिकायत के आधार पर अकबर अली के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। मेडिकल जाँच में रेप की पुष्टि होने के बाद अकबर अली को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद से वह जेल में बंद है। उसने सत्र न्यायालय और हाई कोर्ट में अंतरिम जमानत की अर्जी दाखिल की थी, लेकिन उसकी अपील खारिज कर दी गई थी। 30 अगस्त 2022 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिल कुमार सिंह ने अकबर अली को परिस्थितिजन्य साक्ष्य, मेडिकल रिपोर्ट, डॉक्टरों, जाँच अधिकारियों, परिजनों और पड़ोसियों की गवाही पर दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
क्या होता है ‘डिजिटल रेप’
‘डिजिटल रेप’ डिजिटल या वर्चुअल रूप से किया गया यौन अपराध नहीं है। आसान शब्दों में समझे तो ‘डिजिटल रेप’ का मतलब रिप्रोडक्टिव ऑर्गन की जगह किसी की मर्जी के बिना उँगलियों या हाथ-पैर के अँगूठे से या फिर किसी अन्य वस्तु जैसे खिलौने का प्रयोग कर जबरन सेक्स करना है। यहाँ अंग्रेजी में डिजिट शब्द का अर्थ उँगली, हाथ-पैर के अँगूठे जैसे शरीर के अंगों से है।
बता दें कि दिल्ली के निर्भया कांड (Nirabhaya rape case) के बाद देश की संसद में नए बलात्कार कानून (Rape Law) को पेश किया गया था। 2013 में पहली बार ‘डिजिटल रेप’ को मान्यता देते हुए इसे धारा 375 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की श्रेणी में रखा गया। इससे पहले देश में ऐसा कोई कानून नहीं था, जिससे ‘डिजिटल रेप’ पीड़िता को न्याय मिल सके।