62 साल के कमलेश्वरी मंडल को पहले बाँधकर पीटा। फिर गर्दन मरोड़कर हत्या कर दी। मंडल ने अपने जीजा की मृत्यु के बाद भोज का आयोजन अपने घर पर किया था, क्योंकि उनकी बहन मायके में रहती थी। कथित तौर पर इससे उनके जीजा के परिजन और रिश्तेदार नाराज थे।
बिहार के पूर्णिया में मृत्युभोज को लेकर हत्या की यह खबर ऐसे समय में आई है, जब सोशल मीडिया में राजस्थान के मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस की शुरुआत 13 दिसम्बर 2023 को राजस्थान पुलिस के एक सोशल मीडिया पोस्ट से हुई।
एक्स/ट्विटर पर इस कानून के बारे में बताते हुए राजस्थान पुलिस ने लिखा है, “मृत्युभोज करना और उसमें शामिल होना कानूनन दंडनीय है। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है। आइए मिलकर इस कुरूति को समाज से दूर करें, इसका विरोध करें।”
मृत्यु भोज करना व उसमें शामिल होना कानूनन दंडनीय है।
— Rajasthan Police (@PoliceRajasthan) December 13, 2023
मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है।
आइए मिलकर इस कुरूति को समाज से दूर करें, इसका विरोध करें।#RajasthanPolice#MrityuBhojAct1960 pic.twitter.com/3zP8DPIPrH
इसके बाद राजस्थान पुलिस की आलोचना होने लगी। इसे कई पोस्ट में परंपराओं में गैर जरूरी दखल बताया और कुछ लोगों ने इस पोस्ट के भाजपा के नई सरकार के गठन से ठीक पहले किए जाने पर प्रश्न उठाए।
The law has been in place in Rajasthan since 1960. Rajasthan Police rarely posts about it. But what made it post today when a new BJP CM has been declared and the cabinet is going to take oath in a couple of days.
— Shubhendu (@BBTheorist) December 13, 2023
Who (which agency) is running various handles of Rajasthan Police? https://t.co/1e16SLrTIa
लोगों ने कहा कि मृत्युभोज में लोग अपने पितरों के मोक्ष के लिए करते हैं। कुछ यूजर्स ने पूछा कि इसे कुरीति कैसे कहा जा सकता है? लोगों ने राजस्थान पुलिस को औपनिवेशिक दिमाग वाला बाबू बताते हुए चोरों को पकड़ने की हिदायत दी। एक यूजर ने कहा कि एकाएक राजस्थान पुलिस इस विषय पर क्यों पोस्ट कर रही है, जबकि इस सम्बन्ध में कानून 1960 से ही है।
When did the job of the police become to fix “kuritis.” It’s not your business colonial babus. Catch some thieves.
— Sankrant Sanu सानु संक्रान्त ਸੰਕ੍ਰਾਂਤ ਸਾਨੁ (@sankrant) December 13, 2023
It is our right to offer food to others for the moksha of our pitrs , and no one can stop us from doing it. The best time to change this disgraceful law is right now. @RajCMO https://t.co/9H98i82EuS
— Amit Thadhani (@amitsurg) December 13, 2023
क्या राजस्थान पुलिस इस विषय में पहली बार पोस्ट कर रही है?
ऐसा पहली बार नहीं है जब राजस्थान की पुलिस ने मृत्युभोज और इससे सम्बंधित कानून पर पोस्ट किया हो। इससे पहले 2020, 2021, 2022 और 2023 में भी पोस्ट कर चुकी है। राजस्थान पुलिस के जिला स्तर के हैंडल भी इस विषय में ट्वीट करती आई है। हालाँकि 2020 से पहले का कोई पोस्ट नहीं है और इसका एक कारण है।
इस विषय में कानून भले ही 1960 में ही बन गया हो, लेकिन वर्ष 2020 से पहले तक राजस्थान में इस कानून का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा था। इस कानून को कड़ाई से पालन करवाने की शुरुआत हुई 2020 में जब कोरोना महामारी आई।
मृत्युभोज निषेध 🚫 है एवं कानूनन दंडनीय।
— Alwar Police (@AlwarPolice) July 8, 2020
न मृत्युभोज का आयोजन करें व न ही उसमें शामिल होवें।
मृत्युभोज का बहिष्कार करें,#कोरोना पर प्रहार करें।#COVIDー19 #जागरूक_राजस्थान@ashokgehlot51 @RajCMO@RajGovOfficial @DIPRRajasthan pic.twitter.com/yDfp0ZVUdx
राजस्थान सरकार ने कोरोना महामारी में लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई थी। इस दौरान राजस्थान सरकार ने आदेश दिए कि कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन ना होने पाए और मृत्युभोज जैसे आयोजन ना किए जाएँ, क्योंकि इनमें लोग इकट्ठा होते हैं। इस संबंध में कई शिकायतें भी आई थीं। इसके बाद कुछ मामले भी दर्ज हुए और जुर्माना भी लगा।
मृत्युभोज और मृत्युभोज कानून क्या है?
राजस्थान के सभी इलाकों और विशेष कर ग्रामीण अंचलों में यह परम्परा रही है कि किसी की मृत्यु के निश्चित दिनों के बाद उसके परिजन मृत्युभोज का आयोजन करते हैं। यह भारत में अन्य प्रदेशों में भी होता है। इस आयोजन में परिजनों के अलावा मृतक का परिवार अपने सम्बन्धियों तथा गाँव-मोहल्ले और समाज के लोगों को आमंत्रित करता है।
इसका उद्देश्य यह होता है कि जिस भी घर में मृत्यु हुई है, उसके यहाँ से आना-जाना पुनः सामान्य हो गया है और शोक का काल समाप्त हो गया है। हालाँकि, इस रीति में समस्या तब आई जब यह समाज में दबाव डाल कर करवाया जाने लगा। ऐसे में जो परिवार इस आयोजन में सक्षम नहीं थे उन पर कभी-कभी कर्जे का भी बोझ चढ़ जाता था। यह भी कहा गया कि जो व्यक्ति मृत्युभोज नहीं करवाते उनको समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था।
हालाँकि, ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं में ही मृत्युभोज का आयोजन होता है, मुस्लिमो में चेहल्लुम का आयोजन किया जाता है। यह मृतक की मौत के 40 दिन के बाद आयोजित होता है जिसमें लोगों को खाने पर बुलाया जाता है।
इसको लेकर राजस्थान में राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम वर्ष 1960 में आया। इसके अंतर्गत नुक्ता, मोसर और चेहल्लुम जैसे आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालाँकि, इसके अंतर्गत परिजनों, अपने जानने वालों और अन्य लोगों को भोज करवाने पर रोक नहीं थी।
इस कानून के तहत मृत्युभोज का आयोजन करने और उसमें भाग लेने, दोनों को गैरकानूनी घोषित किया गया। इसके उल्लंघन पर ₹1,000 और एक वर्ष तक सजा का प्रावधान किया गया। इस कानून में मृत्युभोज या अन्य ऐसे ही किसी आयोजन में कितने लोग शामिल हों, उसकी संख्या नहीं बताई गई है। राजस्थान सरकार का ही एक अन्य कानून कहता है कि 100 लोगों से अधिक के भोज का आयोजन नहीं किया जा सकता।
हालाँकि, यह कानून किसी भी तरह से लोगों को इस बात से नहीं रोकता कि वह अंतिम संस्कार से सम्बंधित रीति-रिवाजों में कोई बदलाव करें। इसका उद्देश्य यह था कि मृत्युभोज के कारण किसी परिवार पर आर्थिक बोझ ना पड़े। या किसी को कोई इसके लिए मजबूर न कर सके।