Thursday, May 9, 2024
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बिहार में मृत्युभोज को लेकर हत्या, सोशल मीडिया में राजस्थान के एक्ट पर बहस: जानिए क्या है मौत के बाद भोजन कराने की परंपरा, क्या कहता है कानून

इस विषय में कानून भले ही 1960 में ही बन गया हो, लेकिन वर्ष 2020 से पहले तक राजस्थान में इस कानून का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा था। इस कानून को कड़ाई से पालन करवाने की शुरुआत हुई 2020 में जब कोरोना महामारी आई।

62 साल के कमलेश्वरी मंडल को पहले बाँधकर पीटा। फिर गर्दन मरोड़कर हत्या कर दी। मंडल ने अपने जीजा की मृत्यु के बाद भोज का आयोजन अपने घर पर किया था, क्योंकि उनकी बहन मायके में रहती थी। कथित तौर पर इससे उनके जीजा के परिजन और रिश्तेदार नाराज थे।

बिहार के पूर्णिया में मृत्युभोज को लेकर हत्या की यह खबर ऐसे समय में आई है, जब सोशल मीडिया में राजस्थान के मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस की शुरुआत 13 दिसम्बर 2023 को राजस्थान पुलिस के एक सोशल मीडिया पोस्ट से हुई।

एक्स/ट्विटर पर इस कानून के बारे में बताते हुए राजस्थान पुलिस ने लिखा है, “मृत्युभोज करना और उसमें शामिल होना कानूनन दंडनीय है। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है। आइए मिलकर इस कुरूति को समाज से दूर करें, इसका विरोध करें।”

इसके बाद राजस्थान पुलिस की आलोचना होने लगी। इसे कई पोस्ट में परंपराओं में गैर जरूरी दखल बताया और कुछ लोगों ने इस पोस्ट के भाजपा के नई सरकार के गठन से ठीक पहले किए जाने पर प्रश्न उठाए।

लोगों ने कहा कि मृत्युभोज में लोग अपने पितरों के मोक्ष के लिए करते हैं। कुछ यूजर्स ने पूछा कि इसे कुरीति कैसे कहा जा सकता है? लोगों ने राजस्थान पुलिस को औपनिवेशिक दिमाग वाला बाबू बताते हुए चोरों को पकड़ने की हिदायत दी। एक यूजर ने कहा कि एकाएक राजस्थान पुलिस इस विषय पर क्यों पोस्ट कर रही है, जबकि इस सम्बन्ध में कानून 1960 से ही है।

क्या राजस्थान पुलिस इस विषय में पहली बार पोस्ट कर रही है?

ऐसा पहली बार नहीं है जब राजस्थान की पुलिस ने मृत्युभोज और इससे सम्बंधित कानून पर पोस्ट किया हो। इससे पहले 2020, 2021, 2022 और 2023 में भी पोस्ट कर चुकी है। राजस्थान पुलिस के जिला स्तर के हैंडल भी इस विषय में ट्वीट करती आई है। हालाँकि 2020 से पहले का कोई पोस्ट नहीं है और इसका एक कारण है।

राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट
राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट
राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट
राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट
राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट
राजस्थान पुलिस द्वारा पूर्व में की गई पोस्ट

इस विषय में कानून भले ही 1960 में ही बन गया हो, लेकिन वर्ष 2020 से पहले तक राजस्थान में इस कानून का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा था। इस कानून को कड़ाई से पालन करवाने की शुरुआत हुई 2020 में जब कोरोना महामारी आई।

राजस्थान सरकार ने कोरोना महामारी में लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई थी। इस दौरान राजस्थान सरकार ने आदेश दिए कि कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन ना होने पाए और मृत्युभोज जैसे आयोजन ना किए जाएँ, क्योंकि इनमें लोग इकट्ठा होते हैं। इस संबंध में कई शिकायतें भी आई थीं। इसके बाद कुछ मामले भी दर्ज हुए और जुर्माना भी लगा।

मृत्युभोज और मृत्युभोज कानून क्या है?

राजस्थान के सभी इलाकों और विशेष कर ग्रामीण अंचलों में यह परम्परा रही है कि किसी की मृत्यु के निश्चित दिनों के बाद उसके परिजन मृत्युभोज का आयोजन करते हैं। यह भारत में अन्य प्रदेशों में भी होता है। इस आयोजन में परिजनों के अलावा मृतक का परिवार अपने सम्बन्धियों तथा गाँव-मोहल्ले और समाज के लोगों को आमंत्रित करता है।

इसका उद्देश्य यह होता है कि जिस भी घर में मृत्यु हुई है, उसके यहाँ से आना-जाना पुनः सामान्य हो गया है और शोक का काल समाप्त हो गया है। हालाँकि, इस रीति में समस्या तब आई जब यह समाज में दबाव डाल कर करवाया जाने लगा। ऐसे में जो परिवार इस आयोजन में सक्षम नहीं थे उन पर कभी-कभी कर्जे का भी बोझ चढ़ जाता था। यह भी कहा गया कि जो व्यक्ति मृत्युभोज नहीं करवाते उनको समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था।

हालाँकि, ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं में ही मृत्युभोज का आयोजन होता है, मुस्लिमो में चेहल्लुम का आयोजन किया जाता है। यह मृतक की मौत के 40 दिन के बाद आयोजित होता है जिसमें लोगों को खाने पर बुलाया जाता है।

इसको लेकर राजस्थान में राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम वर्ष 1960 में आया। इसके अंतर्गत नुक्ता, मोसर और चेहल्लुम जैसे आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालाँकि, इसके अंतर्गत परिजनों, अपने जानने वालों और अन्य लोगों को भोज करवाने पर रोक नहीं थी।

राजस्थान मृत्युभोज निवारण कानून
राजस्थान मृत्युभोज निवारण कानून

इस कानून के तहत मृत्युभोज का आयोजन करने और उसमें भाग लेने, दोनों को गैरकानूनी घोषित किया गया। इसके उल्लंघन पर ₹1,000 और एक वर्ष तक सजा का प्रावधान किया गया। इस कानून में मृत्युभोज या अन्य ऐसे ही किसी आयोजन में कितने लोग शामिल हों, उसकी संख्या नहीं बताई गई है। राजस्थान सरकार का ही एक अन्य कानून कहता है कि 100 लोगों से अधिक के भोज का आयोजन नहीं किया जा सकता।

हालाँकि, यह कानून किसी भी तरह से लोगों को इस बात से नहीं रोकता कि वह अंतिम संस्कार से सम्बंधित रीति-रिवाजों में कोई बदलाव करें। इसका उद्देश्य यह था कि मृत्युभोज के कारण किसी परिवार पर आर्थिक बोझ ना पड़े। या किसी को कोई इसके लिए मजबूर न कर सके।

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Anurag
Anurag
B.Sc. Multimedia, a journalist by profession.

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