शाहीन बाग़ के विरोध प्रदर्शन के बारे में अब तक आपको पता चल गया होगा कि किस तरह इस विरोध प्रदर्शन के कारण भारी ट्रैफिक जाम लग रहा है, दफ्तर आने-जाने वालों को परेशानी हो रही है और बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। इस पूरे आंदोलन के पीछे हाथ है जेएनयू के छात्र रहे शरजील इमाम का, जो इसे संगठित रूप से आयोजित कर रहा है। परदे के पीछे से वो पूरी साज़िश रच रहा है और कैमरे के सामने आकर वो भारत के टुकड़े करने की बातें कर रहा है। अँग्रेजों को अपना दोस्त बताने वाला शरजील भारतीय संविधान, न्यायपालिका और महात्मा गाँधी को समुदाय विशेष का दुश्मन बताता है। वामपंथियों और कॉन्ग्रेस से भी उसको दिक्कत है।
शरजील इमाम उस समय भी जेएनयू में मौजूद था, जब वहाँ वामपंथी गुंडों ने एबीवीपी के छात्रों को चुन-चुन कर मारा था। शरजील इमाम देश को तोड़ कर पूरे उत्तर-पूर्व को भारत से अलग करने की बातें करता है। विदेश में बैठे देश के दुश्मन भी यही सोच रखते हैं। शरजील इमाम जिस तरह से ज़हर उगलता है, उसकी एक बानगी देखते हैं। उसके ताज़ा ज़हरीले बयानों की चर्चा चारों तरफ है लेकिन ये जानने वाली बात है कि यह सब अचानक नहीं हुआ है। वो पहले से ही ऐसी ही सोच रखता है। इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर ऐसा व्यक्ति भ्रमित मुस्लिमों के किसी आंदोलन का ‘नायक’ बन कर उभर आया हो।
जेएनयू के छात्रों को सम्बोधित करते हुए शरजील इमाम ने कहा था, “मुस्लिमों को पूरी दिल्ली में चक्का-जाम करना चाहिए। देश के जिस भी शहर में मुस्लिम हैं, वहाँ चक्का-जाम किया जाना चाहिए। मुस्लिमों को देश के 500 शहरों में चक्का-जाम किया जाना चाहिए।” उसने मुस्लिमों को भड़काते हुए कहा था कि क्या मुस्लिमों की इतनी आबादी और हैसियत भी नहीं कि वो पूरे देश में चक्का-जाम कर सकें? हिंदुस्तान का अधिकतर मुस्लिम अपने शहर को बंद कर सकता है। उसने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि जो तुम्हें अपने घर से निकाले, उसे अपने घर से निकाल दो।
शरजील इमाम जो द वायर में एक स्तंभकार भी है। जिस किसी ने भी जिन्ना के सन्दर्भ में प्रकाशित उसके लेख को पढ़ा होगा, तो उसे शरजील के बयानों पर कोई हैरानी नहीं होगी।
इससे पहले कि हम द वायर पर प्रकाशित उस लेख के बारे में बात करें, आइये पहले एक नज़र उसके फेसबुक पोस्ट पर डालते हैं, जिससे पाठकों को अंदाज़ा हो जाएगा कि वो हमेशा से भारत में ज़हर फैलाने की कोशिश करता रहा है। 2015 में, उसने याकूब मेमन और अफ़ज़ल गुरु जैसे आतंकियों की क्षमायाचना को लेकर पैरवी की थी। उसके अनुसार, भारत में इस दो खूंखार आतंकियों को फाँसी की सज़ा देने से मुस्लिम लोग देश के प्रति अपना विश्वास खो देंगे।
इसके अलावा, फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के दौरान भी शरजील की टिप्पणी हैरान कर देने वाली थी। अपनी फेसबुक पोस्ट में उसने लिखा कि हिन्दुस्तान भी मेरी है, और पाकिस्तान भी मेरा है, लेकिन इन दोनों मुल्क़ों में अमेरिका का डेरा है। इसके आगे उसने लिखा कि F-16, राफ़ेल आदि के तमाशे में अमेरिका और वेस्टर्न वर्ल्ड का कंट्रोल जगज़ाहिर है। मगर एक और चीज़ हमें अमेरिका ने सिखाई है कि मजहबी आदमी आसानी से आतंकवादी बन जाते हैं। वो इस बात को भी आसानी से प्रूफ भी कर देते हैं, इराक़ को बर्बाद किया और कहा कि देखो आतंकवादी बन गए सब।
शरजील किस कदर हिंदू घृणा में डूबा हुआ है, जरा देखिए, “हमें हिन्दुओं का साथ नहीं चाहिए, सिर्फ़ मुस्लिम बिना हिन्दुओं की अनुमति के सब कुछ कर सकते हैं। 70 साल का इतिहास याद करो, संविधान फासिस्ट है। बार-बार मुस्लिमों को फेल करने वाला संविधान कभी भी मुस्लिम की आख़िरी उम्मीद नहीं हो सकता।” शरजील इमाम मानता है कि दिल्ली राजधानी है, इसीलिए यहाँ अराजकता फैलाने से अंतरराष्ट्रीय ख़बर बनेगी। उसने मुस्लिमों को लाठी खाने की आदत विकसित करने की सलाह दी क्योंकि सरकार उन्हें पिटवाएगी। शरजील का पूरा जोर है कि सभी राजनीतिक दलों व संविधान को किनारे कर के मुस्लिम अपने हाथ में सब कुछ लें और संगठित रूप से काम करें।
शरजील इमाम की बातों को सुनें तो पता चलता है कि कॉन्ग्रेस, वामपंथ, भाजपा या केजरीवाल की पार्टी, उसे सभी राजनीतिक दलों से सिर्फ़ इसलिए दिक्कत है क्योंकि ये संविधान और लोकतंत्र के बने-बनाए ढर्रे पर चलते हैं। शरजील की सोच का पोस्टमॉर्टम करें तो पता चलता है कि उसे मुस्लिमों का किसी भी ऐसी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने से आपत्ति है, जिसमें हिन्दुओं का नेतृत्व हो। वो सभी दलों को इसीलिए एक चश्मे से देखता है क्योंकि सब में बड़े पदों पर कोई हिन्दू काबिज है। वो संविधान, लोकतंत्र, न्यायपालिका और सरकार- इनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं करता।
अब बात करते हैं जिन्ना वाले लेख के बारे में। शरलीन जिन्ना के बारे में कहता है, “मैं जितना अधिक जिन्ना पत्रों को पढ़ता हूँ, उतना ही मुझे इस बात का एहसास होता है कि जिन्ना ने अपना राजनीतिक करियर एक अल्पसंख्यक समुदाय के नेता के रूप में बिताया। उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय को विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के लिए संगठित किया। इसके अलावा, शरजील ने हिन्दुओं को लेकर लिखा उनका उद्देश्य ब्रिटिश सत्ता छोड़ने के बाद सत्ता पर एकाधिकार करना था।
70 साल बाद, मुस्लिम और भारत के अन्य अल्पसंख्यकों को अच्छी तरह से पता है कि उनका क्या मतलब था। दूसरे शब्दों में, जिन्ना जो अपने जीवन के 72 वर्षों के पहले 71 वर्ष तक एक भारतीय मुस्लिम थे, पाकिस्तान के मुस्लिमों की तुलना में भारतीय मुस्लिम अल्पसंख्यक के लिए असीम रूप से अधिक प्रासंगिक हैं। शरजील ने जिन्नाह के बारे में बखान करते हुए लिखा कि बहुत विशिष्ट तरीकों से, एक भारतीय मुस्लिम राजनेता के रूप में उनके द्वारा अल्पसंख्यको के अधिकारों आदि के लिए लड़ना हमारे लिए सबक है हमें उनका अध्ययन करना चाहिए।
अपने एक अन्य फेसबुक पोस्ट में शरजील ने मूर्ति-पूजा को बदनाम किया। हिन्दू देवी-देवताओं के लिए अपमानजनक बातें लिखी और राष्ट्रवाद को वतन-परस्ती तक कहा।
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध के संबंध में, शरजील की बयानों को शेहला राशिद और अन्य लोगों ने पसंद किए और आगे बढ़ाया। 22 जनवरी को लिखे फेसबुक पोस्ट में उसने लिखा कि शाहीन बाग़ में 25 दिसंबर के पहले, जब अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय मीडिया में ख़बर नहीं छपी थी, तब उस हाइवे को ब्लॉक करने वाली आवाम का हौसला बढ़ाने कौन-कौन आया था? अपनी पोस्ट में उसने लिखा कि ऐसा नहीं है कि लेफ्टिस्ट, लिबरल और बाक़ी सेकुलर को ख़बर नहीं थी, मगर मीडिया नहीं थी, तो ‘इस्लामिक’ मंच पे आना सेकुलरिज्म के उसूल के ख़िलाफ़ ठहरा। मगर कैमरा आने के बाद हर सियासी पार्टी और हर ‘क्रांतिकारी’ ग्रुप उसी इस्लामी मंच पे टूट पड़े, क्योंकि मीडिया में फुटेज खाना उनका उसूल है।
लेकिन, यही शरजील आम आदमी पार्टी के कट्टरपंथी इस्लामी नेता अमानतुल्लाह ख़ान के साथ मंच शेयर करता है। विरोध प्रदर्शन में उसे और अमानतुल्लाह को एक साथ देखा जा सकता है। इसका पूरा मतलब ये निकलता है कि ख़ुद को मुस्लिमों का रहनुमा बनाने के लिए पागल हो चुका शरजील अपनी रैलियों में तिरंगे झंडे का इस्तेमाल भी इसीलिए करता है, ताकि लोगों को बेवकूफ बना सके क्योंकि उसका असली उद्देश्य ये है कि वो इस देश को तोड़ सके।
So this Amanatullah Khan of AAP was with Sharjeel Imam from the very first day pic.twitter.com/qTQfzAxZEy
— Chhoro Marwadi (@ChhoroMarwadi) January 25, 2020
शरजील के इरादे ‘खलीफा राज’ से अलग नहीं है। वो ख़ुद कह चुका है कि केस लड़ते समय संविधान और न्यायपालिका का इस्तेमाल करें लेकिन उम्मीद न पालें। अर्थात, ऐसी स्थिति आने पर वो संविधान को धता बता देगा। उसी संविधान को, जिसका पाठ कर के शाहीन बाग़ में प्रदर्शन हो रहे हैं।
पाकिस्तान को लेकर क्या सोचता है शरजील इमाम? शरजील इमाम मुस्लिमों के भारत में रहने को मज़बूरी बताता है। क्यों? क्योंकि यहाँ मुस्लिमों का पूर्ण प्रभुत्व नहीं है, ऐसा उसे लगता है। तभी तो वो फेसबुक पर लिखता है कि मुस्लमान इस मज़बूरी में भारत में रह गया क्योंकि जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ को झोले में पैक कर के पाकिस्तान नहीं ले जा सका। वो मानता है कि मुस्लिमों ने भारत को नहीं चुना है क्योंकि उन्हें विकल्प ही नहीं दिए गए थे। बकौल शरजील, मुस्लिम अपनी ज़मीन-जायदाद के कारण पाकिस्तान नहीं गए वरना पूरे हैदराबाद को ले जाकर लाहौर के बगल में रख देते। उसका स्पष्ट मानना है कि मुस्लिम ‘देश से मोहब्बत’ के कारण भारत में नहीं रुके, वो दूसरे वजहों से रुके।
उपर्युक्त घटिया तर्कों से ये साबित होता है कि शरजील इमाम पूरे अखंड भारत को पाकिस्तान बना कर मुस्लिमों का राज़ चाहता है और हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रखना चाहता है। वो मानता है कि हैदराबाद, जामा मस्जिद, ताजमहल- ये सब मुस्लिमों का है और इन चीजों का भारत में होना उसे स्वीकार्य नहीं है। शरजील इमाम की पाकिस्तानपरस्ती का आलम ये है कि उसका बस चले तो पूरे भारत को उठा कर पाकिस्तान में डाल आए। ऐसे लोग यहाँ मुस्लिमों के रहनुमा बन कर घूम रहे हैं और आश्चर्य की बात ये कि उसके भड़काने पर अराजकता फैलाने वालों को मीडिया ‘आंदोलनकारी’ कह कर उनका महिमामंडन कर रहा है। देश तोड़ने वाला ‘आंदोलन’?
भारत के टुकड़े करने की बात कहने वाले शरजील इमाम ने 2017 में अपनी फेसबुक पोस्ट में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के प्रति अपना असीम प्रेम व्यक्त करते हुए लिखा था, “सोशल मीडिया पर हमारे कई जवान पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में जीत की ख़ुशी मना रहे हैं। पहले सोशल मीडिया नहीं था तो घर पर, गलियों में मनाते थे। बचपन में कई बार मैं इनमें शरीक भी रहा हूँ। हालाँकि, 12 साल से मैंने न क्रिकेट देखा है, ला किसी की जीत पर ख़ुशी मनाई है। उसने भारतीय क्रिकेट टीम को लेकर लिखा था कि टीम इंडिया नहीं टीम बीसीसीआई (BCCI) है, एक प्राइवेट टीम जो कि बड़े कॉरपोरेट करप्शन का एक हथियार है।
सबसे ज्यादा गौर करने लायक बात है कि शरजील इमाम संविधान को नहीं मानता। उसने ‘टीआरटी वर्ल्ड’ पर फरवरी 2019 में लिखे एक लेख में दावा किया था कि भारत के संविधान के दोहरे रवैये के कारण देश पिछले 70 वर्षों से एक ‘हिन्दू गणतंत्र’ है। संविधान के प्रति उसकी घृणा का आलम ये है कि वो लिखता है कि संविधान मुस्लिमों के साथ पक्षपात करता है। बकौल शरजील, संविधान ने पिछले 70 वर्षों में मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों की आबादी घटाने का काम किया है। उसे देश का नाम ‘भारत’ होने से तकलीफ है और वो लिखता है कि भारत नाम हिन्दू प्रभुत्व की निशानी है। उसका आरोप है कि मुस्लिमों को विधायिका और प्रशासन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला।
उसके एक वर्ष पूर्व के लेख में इतना सारा ज़हर था, जो संविधान के प्रति उसकी घृणा को रेखांकित करता है। वो ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का बचाव करते हुए और कट्टर हो जाता है। वो कहता है कि ये नारा मुस्लिमों के साथ आने की पहली शर्त है और इससे कोई समझौता नहीं हो सकता। शरजील इमाम के दोहरे रवैये का एक नमूना देखिए कि वो यूँ तो कॉन्ग्रेस को गाली देता फिरता है और जब शशि थरूर जामिया आते हैं तो उनका खुल कर सिर्फ़ इसीलिए विरोध करता है क्योंकि वो ख़ुद को हिन्दू बताते हैं और हिन्दू रीति-रिवाजों के बारे में अपनी किताब में लिखते हैं।
सबसे बड़ा फासिस्ट था गाँधी, संविधान और कोर्ट मुस्लिमों का दुश्मन: शाहीन बाग़ का सपोला शरजील
‘अरेस्ट करने को पुलिस टीम भेज दी है’ – असम को भारत से काटने वाले ‘इमाम’ पर अलीगढ़ SSP का आदेश