इंदौर से आई एक वीडियो पूरे सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय एक नगर निगम के अधिकारी को बल्ले से पीटते हुए नज़र आ रहे हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद उनकी आलोचना हुई और पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आकाश को गिरफ़्तार कर लिया। आकाश द्वारा इस प्रकार के व्यवहार का समर्थन नहीं किया जा सकता। क़ानून अपने हाथ में लेना किसी का भी अधिकार नहीं है, चाहे वह जनप्रतिनिधि ही क्यों न हो। लेकिन, हमें इंदौर के ही रहने वाले अभिषेक सचान ने कुछ ऐसा बताया, जो आपलोगों को जानना ज़रूरी है।
सिर्फ अभिषेक सचान ही नहीं, बल्कि अभी-अभी यह भी ख़बर आई है कि इंदौर म्युनिस्पल कॉर्पोरेशन (IMC) के अधिकारी भी आकाश विजयवर्गीय के समर्थन में उतर आए हैं। कुल 21 कर्मचारियों को आईएमसी ने निलंबित कर दिया है क्योंकि उन्होंने आकाश द्वारा नगर निगम के अधिकारी को पीटे जाने का समर्थन किया है। निगम कमिश्नर ने इस काण्ड की जाँच भी शुरू कर दी है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि क्या कारण है कि कुछ आम लोग और ख़ुद नगर निगम के अधिकारी इसका समर्थन कर रहे हैं, जबकि क़ानून हाथ में लेना ग़लत है, चाहे वह कोई भी हो? इसी कारण को समझने के क्रम में हमें अभिषेक सचान का फेसबुक पोस्ट दिखा।
#NewsAlert – 21 employees of Indore Nagar Nigam have been terminated for supporting @BJP4India MLA Akash Vijayvargiya while he was assaulting municipal official yesterday. Nigam Commissioner has also started probing the incident. pic.twitter.com/QpNBoB5VNG
— News18 (@CNNnews18) June 27, 2019
इंदौर में लम्बे समय से रह रहे अभिषेक ने इस मामले में फेसबुक पर आकाश विजयवर्गीय का समर्थन किया। इसके पीछे उनके कुछ व्यक्तिगत अनुभव थे, जो इंदौर नगर निगम के अधिकारीयों की सच्चाई को बयाँ करते हैं। आकाश विजयवर्गीय की कार्रवाई का समर्थन किए बिना हम आपको अभिषेक से ऑपइंडिया की हुई बातचीत और उनके फेसबुक पोस्ट के आधार पर एक आम आदमी का पक्ष रखना चाहते हैं, ताकि आपको भी पता चले कि आखिर अभिषेक ने आकाश विजयवर्गीय की इस कार्रवाई का समर्थन क्यों किया। जैसा कि मीडिया का काम है, हम ग़लत को ग़लत कहते हुए सभी पक्षों को जनता के सामने रख रहे हैं।
सबसे पहले देखिए कि अभिषेक ने अपने फेसबुक पोस्ट में क्या लिखा है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि उनका एक काम जो नियमानुसार नगर निगम द्वारा 6 महीने में किया जाना था, उसमें 9 महीने लगाए गए और काम भी नहीं हुआ। उन्होंने स्क्रीनशॉट्स शेयर करते हुए लिखा कि 10 हज़ार रुपए का रसीद जमा कराने के बावजूद उनका कम्पाउंडिंग का कार्य नहीं किया गया। उन्हों लिखा कि इस स्थिति में अगर आकाश जैसा कोई व्यक्ति बल्ला चलाता है तो उनके जैसे आम आदमी को, होली-दीवाली पर बेघर कर दिए गए लोगों को और सड़क पर ठेला लगा कर अपना भरण पोषण करने वाले व्यक्ति को ख़ुशी होती है।
मामले की तह तक जाने के लिए ऑपइंडिया ने अभिषेक सचान से संपर्क किया और उनके व्यक्तिगत अनुभव को विस्तृत रूप से समझ कर यह जानने की कोशिश की कि आखिर इंदौर नगर निगम के अधिकारियों ने उन्हें क्या पीड़ा दी, जिसके कारण वे आकाश विजयवर्गीय द्वारा अधिकारी की पिटाई से ख़ुश हुए। उनसे हुई बातचीन के आधार पर उनके व्यक्तिगत अनुभव को हम नीचे साझा कर रहे हैं। ध्यान दीजिए, यह एक आम आदमी का पक्ष है, जिसे हम हूबहू बिना छेड़छाड़ किए आपके सामने रख रहे हैं। नीचे पढ़िए उनका अनुभव अभिषेक सचान के ही शब्दों में:
“मेरा इंदौर में एक मकान है, जिसे बिल्डर ने कुछ अच्छा नहीं बनाया तो उसे रिपेयरिंग की ज़रूरत थी। जैसा कि हर आम आदमी अपने घर में हुई कमी-बेशी को ठीक करता है, हम लोग भी अपने घर का रिनोवेशन करवा रहे थे। हमें अपनी बालकनी में कुछ काम कराने थे। नियमानुसार, हमें इसके लिए नगर निगम से अनुमति की ज़रूरत पड़ती है। जब हम परमिशन लेने गए तो हमें अधिकारियों ने सीधा कहा कि तुम यहाँ से भाग जाओ क्योंकि हाउसिंग के मकान में परमिशन नहीं मिलती। जब मेरे साथ नगर निगम के अधिकारियों ने ऐसा व्यवहार किया तो मैंने समाज के लोगों से राय ली। बुद्धिजीवियों ने कहा कि जब उनका व्यवहार ऐसा है तो आप अपना काम करा लो, छोटा-मोटा ही काम तो है।”
“जब मैंने काम कराना शुरू कर दिया तो मेरे पड़ोसी को इससे आपत्ति हो गई। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से तुम्हारा मकान ज्यादा सुन्दर हो जाएगा और उनका ठीक नहीं दिखेगा। उन्होंने नगर निगम में इसकी शिकायत कर दी कि मैं बिना अनुमति कार्य करा रहा हूँ। इसके बाद नगर निगम के अधिकारी नोटिस के साथ मेरे घर पहुँचे। उन्होंने कहा कि तुम अपना मकान बिना अनुमति बना रहे हो, इसे तोड़ दिया जाएगा। इसके बाद मेरी भाग-दौड़ शुरू हुई। मैं आवेदन लिख कर सारे अधिकारियों के पास जाना शुरू किया। मैं काम क्यों करा रहा हूँ, मेरी स्थिति क्या है?- मैंने ये सारी चीजें उस आवेदन में लिखी और अधिकारियों को दिया। यहाँ तक कि कमिश्नर को भी मैंने 4 बार पत्र लिख कर स्थिति से अवगत कराया।”
“ऊपर जो कम्पाउंडिंग का जिक्र किया गया है, उसका अर्थ हुआ कि अगर किसी ने अपने घर में बिना अनुमति कुछ ज़रूरी फेरबदल किया है तो उस व्यक्ति का अधिकार है कि वह कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया के लिए आवदेन करे। इसके बाद नगर निगम वाले 6 महीने के भीतर इस प्रक्रिया को पूरी करते हैं, ऐसा मध्य प्रदेश का नियम कहता है। नियमानुसार, अगर किसी व्यक्ति ने अपने मकान में 10% फेरबदल किया है तो 6 महीने के भीतर कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया पूरी करनी है। मेरे फेसबुक पोस्ट में उस नियम का स्क्रीनशॉट आप देख सकते हैं। इसके बाद सारा खेल शुरू हुआ। इंदौर के अधिकारी पीएस कुशवाहा का मेरे पास फोन कॉल आया। वो इंदौर से बड़े अधिकारी हैं।”
“कुशवाहा इंदौर के भवन अधिकारी हैं और कमिश्नर के बाद सबसे ताक़तवर अधिकारियों में उनका नाम गिना जाता है। उन्होंने कहा कि पहले आप अपने पड़ोसी के विवाद सुलझाएँ, उसके बाद ही हम कोई कार्रवाई कर पाएँगे। मैंने अपने घर में एक रेनवाटर हार्वेस्टिंग शेड बनाया था क्योंकि हमारे यहाँ फरवरी-मार्च में पानी ख़त्म हो जाता है। पड़ोसी ने मुझे वह भी हटाने को कहा, ऐसे में विवाद कैसे सुलझाया जा सकता है? नगर निगम ने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया कि जब तक आप अपने पड़ोसी की ‘टर्म्स एन्ड कंडीशन’ पर नहीं आ जाते, आपका मकान तोड़ना ही पड़ेगा। इसके अलावा उन्होंने मेरे कम्पाउंडिंग के आवेदन को प्रोसेस करने से मना कर दिया।”
“यह सब नियम के ख़िलाफ़ हुआ क्योंकि कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया को अधिकारी 6 महीने से ज्यादा नहीं खींच सकते, अपने फेसबुक पोस्ट में मैंने इसका सबूत भी पेश किया है। अर्थात, अधिकारीगण अपने हाथ में क़ानून लेकर बैठे हैं। ऐसे में अगर कुछ लोग कह रहे हैं कि आकाश विजयवर्गीय ने सही किया, तो इसमें क्या ग़लत है? पिछले साल सितंबर में ही मैंने आवेदन किया था, आप गिन लीजिए कितने महीने हो गए? अब नियम यह है कि अगर अधिकारी ऐसा करने में विफल रहते हैं तो उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। मैं अपनी शिकायत लेकर सीएम हेल्पलाइन में गया।”
@CMMadhyaPradesh @OfficeOfKNath I gave compounding application 5042 on 27/Sep/18 at Indore Ngr Nigm. Officer P.S Kushwah has put a red tape. Sir, MP Municipality act 2016 gives 6 M to give decision. CM helpline complaint 8082591 also ignored, is PS kushwah above law?
— Abhishek Sachan (@abhi00sachan) June 17, 2019
Help ?
“सीएम हेल्पलाइन में किसी भी शिकायत को 15 दिनों के भीतर निपटाना होता है नहीं तो वो एक लेवल ऊपर चली जाती है और अगर फिर देर हुई तो उसका लेवल बढ़ता चला जाता है। मेरी कंप्लेंट फाइनल और चौथे लेवल पर पहुँच गई लेकिन नगर निगम ने लिखा कि विधि अनुसार कार्रवाई हो रही है, इसीलिए इस कंप्लेंट को ‘फ़ोर्स क्लोज़’ किया जाए। विधि तो कहता है कि 6 महीने में कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया पूरी करनी है, तो कैसी विधि अनुसार कार्रवाई? नगर निगम किसी क़ानून से नहीं चल रहा है बल्कि दादागिरी से चल रहा है। पैरवी से काम होता है। मेरे पड़ोसी का रिश्तेदार कमिश्नर था तो उसके फोन कॉल से काम हो सकता है लेकिन मेरे जैसे आम आदमी का काम नहीं हो सकता।”
“मेरा केस नगर निगम की दादागिरी का जीता-जागता सबूत है। ये रहा मेरा मामला, अब कुछ और बातें भी हैं जो आपके जानने लायक है। इंदौर में अधिकतर अतिक्रमण हटाने का कार्य होली और दिवाली में किया जाता है। आपको पता है क्यों? क्योंकि इस दौरान अदालतें बंद रहती हैं। रविवार के आसपास पर्व-त्योहारों के होने से वकील भी छुट्टी पर होते हैं और अदालतें भी 4-5 दिन बंद रहती हैं। अगर किसी का घर टूट रहा है और वो कोर्ट से स्टे लेना चाहे, तो वो नहीं ले सकता। इसीलिए नहीं ले सकता क्योंकि कोर्ट तो बंद है। रंगपंचमी भी मनाया जाता है, अतः ये सब त्यौहार लम्बे खिंच जाते हैं। ऐसे में नगर निगम का सीधा 3 दिन का नोटिस आता है कि घर तोड़ दिया जाएगा। लोगों के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प नहीं बचता।”
“अब सबसे महत्वपूर्ण बात। अगर हिन्दू पर्व-त्योहारों पर लोगों के घर तोड़ दिए जाएँ तो जनता गुस्सा कहाँ निकालेगी? जो लोग महीनों से इन पर्व-त्योहारों को लेकर इन्तजार में रहते हैं, प्लानिंग करते हैं- उनका घर इन्हीं पर्व-त्योहारों के दौरान तोड़ डाला जाता है। स्पष्ट है, उनका गुस्सा हिंदूवादी नेताओं पर निकलेगा। जनता सोचेगी कि हिंदूवादी नेताओं के रहते उनके घर तोड़ दिए जा रहे हैं। इसके बाद जनता स्थानीय नेताओं पर दबाव बनाना शुरू करती है। स्थानीय पार्षद से लेकर विधायक तक के पास लगातार शिकायतें पहुँचती रहती हैं। और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की इज़्ज़त यह है कि उन्हें अधिकारियों के सामने हाथ जोड़ कर निवेदन करना होता है कि फलाँ काम ज़रूरी है, इसे निपटाया जाए।”
“लोगों को ऐसा लगता है कि स्थानीय विधायक बहुत मजबूत है, उसके हाथ में सब कुछ है। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं है। कैलाश विजयवर्गीय के ख़ास लोग भी अगर नगर निगम में बात करते हैं तो कुछ नहीं होता है। अधिकारियों के सामने नेताओं की इज़्ज़त धूल बराबर भी नहीं रह गई है। ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की। मैंने कैलाश विजयवर्गीय की तरफ़ से भी अधिकारियों को फोन करवाया लेकिन फिर भी मेरी शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं हुई- रत्ती भर भी नहीं। इससे पहले कॉन्ग्रेस के भी कई नेताओं ने अतिक्रमण हटाने गए अधिकारियों को भगाने का काम किया है, यह पहली बार नहीं हुआ है।”
Akash Vijayvargiya, BJP MLA on thrashing a Municipal Corporation officer in Indore: This is just the beginning, we will end this corruption & goondaism. ‘Aavedan, nivedan aur fir dana dan’ this is our line of action. #MadhyaPradesh pic.twitter.com/xYLqJnpWdZ
— ANI (@ANI) June 26, 2019
“इंदौर स्वच्छता रैंकिंग में देश में नंबर एक है, क्योंकि यहाँ कॉन्ट्रैक्ट पर साफ़-सफाई के लिए कर्मचारी रखे गए हैं, बहुत सी चीजें प्राइवेट हाथों में दी गई हैं। इसमें किसी भी कार्य के लिए सीधा 30-40 लोग भेजे जाते हैं, वो लोग आकर आपका घर तोड़ देंगे और आप कुछ नहीं कर सकते। इसके अलावा एक मानवीय पहलू भी है। जो भी ठेला लगाने वाले हैं, उन्हें भी नगर निगम द्वारा परेशान किया जाता है। उनके ठेले को सीधा पलट दिया जाता है। रोज़ दिन भर मेहनत कर के घर चलाने वाले लोगों से भी अमानवीय व्यवहार कहाँ तक उचित है? इंदौर से तीसरी बार विधायक बने रमेश मंडोला ने एक ठेले वाले को पत्र लिख कर दिया था ताकि वह नगर निगम की कार्रवाई से बच सके।”
“उस पत्र में लिखा था कि अमुक ठेले वाले के दिल में छेद है, अतः उसे ठेला लगाने दिया जाए। यह उसके भरण-पोषण के लिए ज़रूरी है। उस व्यक्ति के पास आय कमाने का कोई दूसरा स्रोत नहीं था। जब उसने नगर निगम के अधिकारियों को विधायक की चिट्ठी दिखाई तो भी उसके ठेले को पलट दिया गया और उसका सामान बिखेड़ दिया गया। ग़रीबों से इस प्रकार के व्यवहार के कारण इंदौरवासी नगर निगम के अधिकारियों से क्रोधित हैं। इसी से समझ लीजिए कि वहाँ जनप्रतिनिधियों की इज़्ज़त क्या है? इंदौर में साफ़-सफाई का सिस्टम प्राइवेट हाथों में है, जिस कारण स्वच्छता के मामले में यह नंबर एक है।”
“जो सही है, उसे सही कहना चाहिए। नगर निगम ने स्वच्छता के मामले में अच्छा काम किया है। अगर किसी के घर के बाहर कचरा पड़ा हुआ है तो उसके एक फोन कॉल से उसे हटा दिया जाता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कर्मचारियों व निचले लेवल के अधिकारियों पर कार्रवाई हो जाती है। इस कारण वे काफ़ी तेज़ी से कार्य निपटाते हैं। अगर एक बार साफ़-सफाई का अच्छा माहौल बना दिया जाए तो उसके बाद आम नागरिक भी जागरूक हो जाता है और जनता भी सहयोग करने लगती है, गंदगी नहीं फैलाती। लेकिन, इसका अर्थ ये नहीं कि नगर निगम भ्रष्टाचार से परे है। मकान बनवाने के लिए और मकान टूटने से बचाने के लिए, इन दोनों ही स्थितियों में नगर निगम के अधिकारी घूस से अच्छा-ख़ासा रुपया कमाते हैं।”
“स्थिति यह है कि बिना घूस खिलाए आप न नया मकान बनवा सकते हैं और न पुराने मकान को टूटने से बचा सकते हैं। अगर आपको एक खिड़की तक बनवानी है (ऐसे जो भी कार्य, जिसमें सीमेंट और ईंट का प्रयोग किया जाता है), तो आपको घूस देना होगा। अगर आप बिल्डिंग परमिशन के लिए नगर निगम जाते हैं तो वहाँ आपसे नक्शा माँगा जाएगा और कहा जाएगा कि बाहर सिविल इंजीनियर बैठे हैं, उनसे नक्शा बनवा कर लाओ। जब आप बाहर जाते हैं तो सिविल इंजीनियर आपके मकान का पूरा पता पूछेगा, जिसके बाद यह कि किस-किस को रुपए खिलाने हैं। 10-15 हज़ार रुपए तो सिविल इंजीनियर अपनी फी बोल कर ही ऐंठ लेते हैं।”
“बाकी जिसको भी लगता है कि मैं ग़लत बोल रहा हूँ, वो इंदौर आए और मेरा अधूरा कार्य करवा दे, मैं मान जाऊँगा कि मैं ग़लत हूँ। इसीलिए मैं कहता हूँ- ‘वेल डन आकाश विजयवर्गीय’। मैं इसीलिए हवा में न्यूज़ देख कर अपना ओपिनियन नहीं बनाता हूँ। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, जिसके कारण मैंने विधायक आकाश की इस कार्रवाई को जायज ठहराया है।”