कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि धर्मांतरण करते ही विवाह स्वत: समाप्त हो जाता है, भले तलाक हुआ हो या नहीं। साथ ही शादी के बाद धर्मांतरण करने वाली महिला की मुआवजे की याचिका ठुकरा दी है। कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा प्रमाणित होने पर ही मुआवजा दिया जा सकता है।
महिला अदालत में घरेलू हिंसा साबित करने में असफल रही। इसके बाद हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें महिला को जीवनयापन के लिए 4 लाख रुपए देने का आदेश दिया गया था। हालाँकि, निचली अदालत ने भी महिला के घरेलू हिंसा के आरोपों को मानने से इनकार किया था। मुआवजा इस आधार पर देने का आदेश दिया था कि महिला अपना जीवनयापन करने में असमर्थ है।
रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, “घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 22 के अंतर्गत मुआवजा तभी दिया जा सकता है, जब घरेलू हिंसा साबित हो। इस मामले में महिला ने ईसाई धर्मांतरण कर इससे संबंधित सभी अधिकार खो दिए हैं। ऐसी स्थिति में निचली अदालत ने ₹4 लाख का मुआवजा देकर गलती की है। यह न्यायिक विफलता है।”
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि महिला ने ईसाई बनने की बात स्वीकार की है। लिहाजा उसका विवाह स्वतः ही समाप्त हो जाता है, भले ही उसके अपने पति से उसका तलाक ना हुआ हो। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि इस संबंध में किसी कोर्ट का कोई स्पष्ट आदेश नहीं है। लेकिन यह एक तथ्य है कि महिला धर्मांतरण कर ईसाई बन चुकी है।
महिला के पति ने कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी द्वारा लगाए गए घरेलू हिंसा के आरोप झूठे हैं और उसने स्वयं ही उसका साथ छोड़ दिया था। उसकी पत्नी की लापरवाही की वजह से अपने दूसरे बच्चे की मौत की जानकारी भी दी। कोर्ट को यह भी बताया कि ईसाई बनने के बाद उसकी पत्नी ने बेटी के धर्मांतरण की भी कोशिश की थी। पति ने कोर्ट को यह भी बताया कि लकवा मारने के कारण वह स्वयं की देखभाल करने में भी सक्षम नहीं है।