लोकसभा के चुनाव पास में आ रहे हैं। बिना आधार के किसी भी बात को विवाद बनाने की रीत शुरू हो चुकी है। उत्तर प्रदेश तो खैर केंद्र की राजनीति का हमेशा से केंद्र-बिंदु रहा है, ऐसे में यहाँ के नेताओं का आरोप-प्रत्यारोप ख़बरों के केंद्र में बना रहता है। ताजा मामला है, योगी आदित्यनाथ के गणतंत्र दिवस पर कही गई बातें और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का उसकी आड़ में किसानों के दर्द का आँसू बहाना।
26 जनवरी के मौक़े पर जनता को सम्बोधित करते हुए सीएम योगी ने कहा कि कोर्ट को राम मंदिर मामले पर जल्द ही फै़सला सुनाना चाहिए। आदित्यनाथ ने कहा कि अगर वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो यह मामला उन्हें सौंप देना चाहिए, योगी सरकार इसका हल 24 घंटों के अंदर निकाल लेगी।
अखिलेश यादव ने सीएम आदित्यनाथ की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमारा देश 70वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। अगर कोई मुख्यमंत्री इस मौके पर ऐसी बातें करता है तो आप सोचिए कि वो किस तरह के मुख्यमंत्री होंगे?” अखिलेश ने सीएम को हिदायत देते हुए कहा कि जनता ने उन्हें 90 दिन दिए हैं, उन्हें फसलों को बैलों से बचाने की दिशा में कुछ कदम उठाने चाहिए, सबसे पहले किसानों को बचाने की आवश्यकता है।
सवाल यह है कि गणतंत्र दिवस पर जनता द्वारा चुने मुख्यमंत्री क्या बोलें, क्या न बोलें – यह लिखित है क्या, कहीं दर्ज़ है क्या? मेरी जानकारी में तो नहीं। एक मुख्यमंत्री का जनता की उम्मीदों पर, उनके सवालों पर बात करना शायद पूर्व मुख्यमंत्री की नज़र में गलत हो सकता है क्योंकि बतौर सीएम उनका अनुभव बिल्कुल ही अलग है।
अखिलेश यादव द्वारा कही गई इस बात को पढ़कर-सुनकर ऐसा लगता है जैसे वो भूल गए हैं कि योगी आदित्यनाथ का बतौर मुख्यमंत्री अभी कार्यकाल ज़ारी है। यह और बात है कि ख़ुद उनका बीत चुका है। सिर्फ सवाल उठाने को ही अगर सवाल उठाए जाएँ तो अखिलेश यादव को अंदाज़ा भी नहीं कि उन पर किस-किस तरह के सवाल उठेंगे।
सवाल नंबर #1
2013 का समय याद किया जाए तो मालूम पड़ेगा कि अखिलेश जनता से बात करने से ज्यादा उपयुक्त कटरीना कैफ़ के सवालों का जवाब देना पसंद करते थे। ऐसे में पॉलिटिकल करियर में कई बॉलीवुड कलाकारों से रूबरू हुए अखिलेश अगर बीजेपी पर इस तरह के सवाल नहीं उठाएँगे तो शायद उन पर किसी का ध्यान भी नहीं जाएगा।
साल 2013 में पूर्व मुख्यमंत्री साहब ने हॉकी इंडिया लीग के उद्घाटन समारोह में कटरीना से बड़े धैर्य और संयमता को बनाए रखते हुए बातचीत की थी। कटरीना और अखिलेश की इस बातचीत में कटरीना ने उनसे कई पॉलिटिकल सवाल पूछे थे, जिस पर उन्होंने शांति से मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर जवाब दिए थे।
शायद हो सकता है उनका चुप, मुस्कुराते हुए जवाब देना इसलिए हो क्योंकि वो उस समय भी किसानों की समस्याओं में उलझे हुए हों 🙂 कटरीना से हुई बातचीत में वो इस बात का लब्बो-लुआब ढूंढ रहे हों कि किस तरह से उनके इन क़ीमती पलों को किसानों के लिए समर्पित किया जा सकता है 🙂
सवाल नंबर #2
वैसे, अखिलेश यादव का कहना भी बिलकुल जायज है क्योंकि जनता के लिए किए गए उनके कार्य, योगी आदित्यनाथ के कार्यों से बिलकुल ही अलग हैं। एक तरफ जहाँ सीएम योगी के राज में राज्य में सेवाभाव की ख़बरें आती हैं, वहीं साल 2016 में यह ख़बर आती थी कि सूखे से पीड़ित लोगों की व्यथा जानने पहुँचे अखिलेश के स्वागत में हज़ारों लीटर पानी को हैलीपैड पर बहा दिया गया।
पानी की सौगात लेकर पहुँचे अखिलेश अपने लोगों की परेशानियों के प्रति इतने सचेत थे कि उन्हें इस बात से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो अखिलेश योगी आदित्यनाथ को जब ये बताते हैं कि किसानों के लिए, जनता के लिए क्या करना है, तो थोड़ा हास्यास्पद वाली स्थिति बन जाती है।
सवाल नंबर #3
अखिलेश अपने कार्यकाल में इतनी व्यस्तता से जीवन गुज़ारते थे कि सरकारी सम्पत्ति (सरकार द्वारा मिले आवास) की भी हालत ख़स्ता करने से नहीं चूके। यह और बात है कि सरकारी बंगले में तोड़-फोड़ करने से परहेज नहीं करने वाले अखिलेश यादव खुद के आवास निर्माण और उसके साज-सज्जा पर करोड़ों खर्च कर देते हैं।
सवाल नंबर #4
किसानों के कंधों पर बंदूक रख कर बीजेपी पर निशाना साधने वाले अखिलेश यादव न जाने क्यों अपने कार्यकाल के बारे में बात करने में हमेशा पीछे रह जाते हैं। अखिलेश यादव शायद इस बात को भूल रहे हैं कि जो हिदायत वो सीएम योगी को दे रहे हैं वो अगर उन्होंने खुद पर लागू की होती तो 2017 में उन्हें इतनी तीख़ी हार का सामना नहीं करना पड़ता। अन्य राज्यों के मुक़ाबले अखिलेश यादव के राज में लगातार किसानों का फंदे पर लटकना उनकी कार्यशैलियों पर न केवल सवाल खड़ा करता है बल्कि चुनावों के नज़दीक होने के कारण उनके अवसरवादी होने का भी प्रमाण देता है।
सवाल नंबर #5
जो अखिलेश यादव 2016 में किसी पार्टी से गठबंधन न करने की हामी भरते रहे, वही अखिलेश 2017 में कॉन्ग्रेस से हाथ मिलाकर फूले नहीं समाते। और न जाने फिर क्या हुआ कि वही अखिलेश 2019 के आते-आते वर्षों पुरानी दुश्मनी भुलाकर बसपा से बुआ-भतीजे का खेल खेलते भी नज़र आते हैं।
अखिलेश यादव जी! आप किसी पर भी सवाल उठाने से पहले अपने कार्यकाल का समय आखिर क्यों भूल जाते हैं?