Tuesday, November 5, 2024
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सस्ता सामान, आश्वासन टिकाऊ: चीन की दोमुँही विदेश नीति

चीन का यह दोहरा रवैया इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता उतना ही पुराना है जितना पाकिस्तान का इतिहास। इसलिए एक तरफ वो भारत पर हुए हमले की निंदा करता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान को हमेशा अपनी छत्रछाया में सुरक्षित रखता है।

चीन अपने सस्ते सामान के ज़रिए विश्वभर में अपनी एक अलग पैठ बना चुका है। चीन का सामान और उसकी क़ीमत आए दिन चर्चा का विषय बने होते हैं। वो बात अलग है कि क़ीमत के साथ-साथ उसके टिकाऊपन पर भी चर्चा होती है, जो अक्सर एक मज़ाक का भी रूप ले लेती है। सस्ता चाइनीज़ माल वैसे तो एक औसत आय के व्यक्ति की पॉकेट के लिए सुविधाजनक हो जाता है लेकिन उसका टिकाऊपन मन में कहीं घर कर ही जाता है।

यह तो रही बात चीन के व्यापार की। अब बात करते हैं भारत के संदर्भ में उसकी विदेश नीति की, जो खोखली होने के साथ-साथ दोमुँही भी है। खोखली इसलिए क्योंकि वो कहता कुछ है और करता कुछ है। दोमुँही इसलिए क्योंकि वो आश्वासन देने में कभी पीछे नहीं रहा, इसमें वो हमेशा अपना टिकाऊपन दिखाता है। इसमें वो ऊपरी तौर पर हमेशा कहता आया है कि हम भारत के साथ हैं और भारत के हितों की हमें परवाह है। लेकिन ये तमाम दावे फ़र्ज़ी ही होते हैं, जिनकी सीमा केवल ज़ुबान से कह देने भर की होती है, करने की कुछ नहीं।

पाकिस्तान, भारत को अब तक जिन आतंकी हमलों से लहू-लुहान करता आया है, उससे दुनिया परिचित है। पुलवामा आत्मघाती हमला भारत के सीने पर धोखे किया वो वार है, जिसकी विश्वभर में घोर निंदा हुई। इस हमले पर जहाँ सभी देश भारत के साथ खड़े थे वहीं चीन अपनी दोहरी चाल के साथ पाकिस्तान के साथ दोस्ती निभा रहा है। दोहरी चाल इसलिए क्योंकि जब-जब भारत ने उससे न्यायपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की, तब-तब चीन ने अपना असली रंग दिखाया।

अभी के परिदृश्य में देखा जाए तो चीन ने पाकिस्तान से अपना याराना निभाते हुए प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने पर चौथी बार अड़ंगा लगाया। पिछले 10 सालों से वो अपनी इसी विदेश नाीति का अनुसरण कर रहा है जबकि मसूद को वैश्विक आतंकी की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने पेश किया था। फिर भी अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने गहरे रिश्ते होने का प्रमाण दे ही दिया। हालाँकि भारत को झूठा दिलासा देने से भी नहीं चूकता चीन। समय-समय पर वो ऐसे समीकरण भी बुनता है, जिससे वो दुनिया को दिखा सके कि उसे भी भारत की चिंताओं का ज्ञान है।

चीनी राजदूत लुओ जाओहुई ने ऐसा ही कुछ कहा, जिसे ज़ुबानी खेल के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। उन्होंने दिल्ली में चीनी दूतावास में होली समारोह के दौरान कहा कि मसूद अज़हर के बारे में हम सब समझते हैं और हम इस मामले पर पूरी तरह से विश्वास करते हैं। हम भारत की चिंताओं को समझते हैं और आशावादी हैं कि इस मामले को सुलझा लिया जाएगा।

चीन का यह दोहरा रवैया इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता उतना ही पुराना है जितना कि पाकिस्तान का इतिहास। इसलिए एक तरफ तो वो भारत पर हुए हमले की निंदा करता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान को हमेशा अपनी छत्रछाया में सुरक्षित भी रखता है।

दरअसल, चीन की यह दोहरी नीति ही है, जिससे वो पाकिस्तान पर अपनी दयादृष्टि बनाए रखते हुए भारत पर अपना दबाव बनाए रखने का प्रयास करता है। साथ में भारत को पाकिस्तान से उलझाए रखने की अपनी चाल भी चलता है। ऐसा करने के पीछे चीन की मंशा भारत को विकसित होने से रोकना है और ख़ुद एक राष्ट्र के रूप में गतिमान बने रहना चाहता है। इसके अलावा वो नहीं चाहता कि एशियाई देशों में भारत का दबदबा क़ायम हो सके।

दूसरा कारण यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन अपने अधिकार और वैधता के वर्चस्व को बनाए रखना चाहता है, जिससे वो यह दिखा सके कि उसकी मर्ज़ी के बिना दक्षिण एशिया कुछ नहीं कर सकता। पाकिस्तान के प्रति चीन की वफ़ादारी का एक कारण यह भी है कि चाइना पाकिस्तान इकोनॉमी कॉरिडोर (CPEC) के बुनियादी ढांचे पर चीन ने बहुत बड़ा निवेश किया है। इस निवेश की आड़ में चीन, पाकिस्तानी ख़ुफिया एजेंसी (ISI) और जैश को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करता है। इसके बदले में उसे अपने प्रोजेक्ट में किसी भी तरह के आतंकवादी हमला न होने की गारंटी मिलती है।

पाकिस्तान में किए गए निवेश के ज़रिए चीन दुनिया भर के बाज़ारों में अपना दबदबा बनाना चाहता है। इसलिए वो हमेशा पाकिस्तान के साथ उसकी मदद के लिए हाथ बाँधे खड़ा रहता है। चीन का सपना हमेशा से ही भारत को घेरने का रहा है – फिर चाहे वो डोकलाम के माध्यम से हो, अफगानिस्तान को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट वन रोड’ में शामिल करने के माध्यम से हो, श्रीलंका में अपने प्रोजेक्ट ‘हम्बनटोटा’ समुद्री परियोजना हो, म्यांमार में बंदरगाह बनाने की आड़ में भारत को घेरने की मंशा हो, या फिर नेपाल के साथ अपनी बढ़ती नज़दीकियों के माध्यम से हो। भारत को हर तरफ से घेरने की फ़िराक में रहने वाला चीन कभी भारत का हित नहीं सोचता। हाँ, यह सच है कि को ऊपरी तौर पर वो ख़ुद को भारत का हितैषी घोषित करने में तुला रहता है, लेकिन सिर्फ ऊपरी तौर पर।

आतंकवादी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के मामले में जो रुख़ चीन ने अब अपनाया है, वही रुख़ उसने तब भी अख़्तियार किया था, जब भारत में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और लश्कर-ए-तैयब्बा के कमांडर जकीउर रहमान लखवी की रिहाई पर भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की थी। उस समय प्रतिबंधों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की समिति ने भारत के आग्रह पर बैठक की थी। उस बैठक में मुंबई हमले के मामले में लखवी की रिहाई को लेकर पाकिस्तान से स्पष्टीकरण माँगा जाना था, लेकिन चीन के प्रतिनिधियों ने इस आधार पर इस क़दम को रोक दिया था कि भारत के पास इस संदर्भ में पर्याप्त सूचना नहीं है। जबकि पाकिस्तानी अदालत द्वारा लखवी की रिहाई 1267 संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का उल्लंघन था। उस समय भी चीन को छोड़कर अमेरिका, रूस, फ्रांस और जर्मनी ने लखवी की रिहाई पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और उसकी गिरफ़्तारी की माँग की गई थी।

चीन का पाकिस्तान के साथ इतना गहरा रिश्ता यह स्पष्ट करता है जैसे उसने पाकिस्तान को गोद ले रखा हो और उसके हर बुरे कामों को अपनी आड़ में छिपाना उसका परम कर्तव्य है। चीन अपनी कुटिल चालों से भारत को सिर्फ़ भरमाने का काम करता है। ताकि भारत-पाकिस्तान हमेशा उलझे रहें और वो दूसरे तरीकों से अपना उल्लू सीधा करता रहे।

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