उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में हैं और भाजपा का शासन होने के चलते पार्टी के लिए यहाँ अच्छा प्रदर्शन करना प्रतिष्ठा का विषय है। और बात जब महाराष्ट्र के नागपुर की हो रही हो तो कहना ही क्या! राज्य की शीतकालीन राजधानी नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का मुख्यालय होने के कारण इस सीट पर देश-दुनिया की नज़रें हैं और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का क्षेत्र होने के कारण भाजपा के लिए यहाँ से भी जीत दर्ज करना ज़रूरी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में सड़क परिवहन और गंगा संरक्षण सहित कई अहम विभाग संभाल रहे गडकरी देश के ऐसे नेताओं में से हैं जिनकी प्रशंसा करते विपक्षी भी नहीं थकते। पार्टी लाइन से ऊपर उठकर नेतागण इनकी प्रशंसा कर चुके हैं यही नहीं राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल भी गडकरी के गुण गा चुके हैं।
यहाँ हम नागपुर सीट के चुनावी समीकरण की बात करेंगे और जानेंगे कि क्या कॉन्ग्रेस ने इस सीट पर पहले ही हार मान ली है? विश्लेषण की शुरुआत कल शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को इलाक़े में हुई नितिन गडकरी की जनसभा से करते हैं। 2011 में दंगों का गवाह बन चुके मोमिनपुरा में गडकरी की जनसभा को देखनेवाला व्यक्ति यह जान जाएगा कि गडकरी का अपने क्षेत्र में क्या प्रभाव है? दरअसल, यहाँ नितिन गडकरी की सभा में हज़ारों की संख्या में मुस्लिम उपस्थित थे। कोई कुछ भी अगर-मगर करे लेकिन इस सच्चाई को सभी जानते हैं कि अधिकतर भाजपा नेताओं की रैलियों में मुस्लिमों की बड़ी भीड़ नहीं जुटती। गडकरी इसके अपवाद हैं।
2011 में जब मोमिनपुरा में हिंसक सांप्रदायिक तनाव भड़का था, तब राज्य और देश, दोनों ही जगह कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी। 2014 के बाद से यहाँ शांति है। शनिवार की जनसभा में मुस्लिमों से घिरे गडकरी ने जब उन्हें अपने विकास कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया तो सभी प्रभावित दिखे। वैसे गडकरी का मुस्लिमों के बीच जाना और दूसरे नेताओं के उनके बीच जाने में फ़र्क है। जहाँ चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता मुस्लिमों के बीच जाकर नमाज़ रूम बनवाने और टीपू सुल्तान को पूजने की बात करते हैं, गडकरी धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर सड़कों और मेट्रो की बातें करते हैं।
नागपुर में 2015 में मेट्रो कार्यों का वास्तविक शिलान्यास हुआ और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे हरी झंडी दिखाने पहुँचे। गडकरी का कहना है कि वो जिन परियोजनाओं का शिलान्यास करते हैं, उसका उद्घाटन भी करते हैं। ये सही है क्योंकि उनके नेतृत्व में न सिर्फ़ नागपुर बल्कि देश भर में सड़क योजनाओं का तेज़ी से सफल समापन हुआ है। नागपुर तो उनका क्षेत्र है, यहाँ की योजनाओं पर उनकी पैनी नज़र रही है, चाहे वो किसी भी विभाग का हो। नागपुर मेट्रो के उद्घाटन के समय उन्होंने कहा भी था कि वे आए दिन शिलान्यास और उद्घाटन में व्यस्त रहते हैं लेकिन अपने गृह क्षेत्र में मेट्रो परियोजना के उद्घाटन में सम्मिलित होना उनके लिए सबसे बड़ा अनुभव है।
नागपुर के चुनावी समीकरण की बात करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि यहाँ दलित मतदाताओं की जनसंख्या अच्छी-ख़ासी है और इसीलिए दलित हितों की रक्षा का दावा करनेवाली पार्टियाँ यहाँ अच्छा प्रदर्शन करती आई हैं। भीमराव आंबेडकर के रिपब्लिकन आंदोलन का असर यहाँ देखा जा सकता है। यही कारण है कि यहाँ हुए चुनावों में रिपब्लिकन नेता अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं। 2004 के बाद से यहाँ मायावती की बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। इस सबके बीच भाजपा 2009 में हार चुकी थी। तीन बार यहाँ से सांसद रहे वरिष्ठ नेता बनवारीलाल पुरोहित की हार के बाद भाजपा ने नितिन गडकरी के रूप में अपने तरकश का सबसे मज़बूत तीर निकाला। बनवारीलाल अभी तमिलनाडु के राज्यपाल हैं।
गडकरी को 2014 में हुए आम चुनाव में पौने छह लाख से भी ज्यादा मत प्रात हुए थे। 54% से भी अधिक मत पाकर उन्होंने अपने विरोधी विलास मुट्टेमवर को 26% से भी अधिक मतों से पराजित किया। वरिष्ठ नेता विलास कॉन्ग्रेस सरकारों के दौरान केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और क्षेत्र में अच्छा प्रभाव रखते हैं। 7 बार सांसद रहे विलास को भारी मतों से हराकर गडकरी ने साबित कर दिया कि वे न सिर्फ़ एक कुशल प्रशासक हैं बल्कि जनता के बीच भी उनकी स्वीकार्यता उतनी ही है। इस बार मुट्टेमवर ने शायद जनता की भावनाओं को पहले ही भाँप लिया था। 2018 में नागपुर से ही कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद गेव अवारी ने विलास मुट्टेमवर पर पार्टी लाइन के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को पत्र लिखकर शिकायत की थी।
नागपुर में कॉन्ग्रेस भारी आतंरिक कलह से जूझ रही है। तभी क्षेत्र के बाहर से नाना पटोले को लाकर यहाँ लड़ाया जा रहा है। उम्मीदवारों के चयन में देरी का कारण भी यही था। बहरी उम्मीदवार को लेकर कॉन्ग्रेस ने स्थानीय पार्टी गुटों में कलह के रोकथाम की कोशिश की है। नाना पटोले ने 2014 में भाजपा के टिकट पर भंडारा-गोंदिया से जीत दर्ज की थी लेकिन तीन साल बाद उन्होंने पार्टी से असंतुष्ट होकर त्यागपत्र दे दिया था। ऐसे में, कॉन्ग्रेस ने उन्हें नागपुर से लोकसभा प्रत्याशी बनाया है। नागपुर के भीतर आने वाली सभी छह विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है। दक्षिण-पश्चिमी सीट पर तो ख़ुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जीत दर्ज की थी।
प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी भी यहाँ से दम ठोक रही है। बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के जरिए इस सीट पर अपनी निगाह पैनी कर दी है। नितिन गडकरी का कहना है कि वो पटोले को गम्भीरतापूर्वक नहीं लेते और अपनी सभाओं में उनका नाम तक नहीं लेते। जबकि पटोले का पूरा का पूरा चुनाव प्रचार ही गडकरी के आसपास केंद्रित है। वो नागपुर के लोगों के बढ़ते ख़र्च के लिए गडकरी को जिम्मेदार ठहराते हैं और उनके विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की बू देखने की कोशिश करते हैं। बसपा और अम्बेडकर की पार्टी के उम्मीदवारों के होने से दलित मतदाता भ्रमित है और उसके भाजपा की तरफ जाने की ही उम्मीद है।
कुल मिलाकर देखें तो आंतरिक कलह, समाज के सभी वर्गों के बीच गडकरी की स्वीकार्यता और सबसे अव्वल उनके विकास कार्यों की आड़ में दबी कॉन्ग्रेस ने यहाँ उम्मीदवार तो उतार दिया लेकिन कार्यकर्ताओं की नाराज़गी के कारण पार्टी शायद पहले से ही इस सीट को हारी हुई मान कर चल रही है। तभी तो राहुल गाँधी की नागपुर में हुई रैली में वे गडकरी को निशाना बनाने से बचते रहे। उन्होंने अम्बानी, मोदी, राफेल सबका नाम लिया लेकिन गडकरी पर हमला करने से बचते रहे। नागपुर से देश के छह बड़े शहरों में विमान सेवाएँ मुहैया कराने का वादा कर के गडकरी ने राहुल की बोलती बंद कर दी।
नितिन गडकरी ने अनोखी पहल करते हुए अपने क्षेत्र के लिए ‘वचननामा’ जारी किया है। इसमें क्षेत्र में एक और मेडिकल कॉलेज खोलने से लेकर ग़रीबों का कैंसर व हृदयरोग का मुफ़्त में इलाज कराने की बात कही गई है। रेलमार्ग, नई ट्रेनें, विमानतल का विस्तार सहित कई सुविधाओं के साथ मेट्रो शहर नागपुर व आसपास के क्षेत्र को वर्ल्ड क्लास बनाने का वादा किया गया है। गडकरी के इस वचननामे से विपक्ष चित है और उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। गडकरी ने स्वदेशी मॉल विकसित करने की बात कह स्थानीय महिलाओं व कामगारों में उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। अब देखना यह है कि विपक्ष इस क्षेत्र में गडकरी को तोड़ ढूँढ पाता है भी या नहीं?