राहुल गाँधी ने अपने लद्दाख के दौरे के अंतिम दिन 25 अगस्त 2023 दिन शुक्रवार को कारगिल में एक रैली को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत की हजारों किलोमीटर जमीन छिनी है और पीएम मोदी कह रहे हैं कि एक इंच भी जमीन नहीं गई है। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल गाँधी पर तंज कसते हुए कहा कि राहुल को ये सब जानकारी आखिर देता कौन है। वह हमेशा आधारहीन बातें करते हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि राहुल गाँधी को बताना चाहिए कि उनका चीन से क्या रिश्ता है।
बताते चलें कि राहुल गाँधी के परनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू के शासन में चीन ने 1962 में भारत पर हमला करके हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया था। हालाँकि, राहुल गाँधी उसकी कभी चर्चा नहीं करते हैं। हालाँकि, भारत सरकार द्वारा बार-बार स्पष्टीकरण देने के बावजूद वे भाजपा शासन में चीन द्वारा भारतीय भूमि पर कब्जा करने का आरोप लगाते रहते हैं।
लोगों की जानकारी में कारगिल सन 1999 के युद्ध के बाद से आया। अब जबकि राहुल गाँधी भी कारगिल गए हैं तो 1999 के युद्ध और उसके बाद को दौर भी याद करना जरूरी है। कारगिल युद्ध पर कॉन्ग्रेस ने न सिर्फ सवाल उठाए, बल्कि उसे 1999 के चुनाव के लिए एनडीए का सियासी हथकंडा तक करार दे दिया था। राहुल गाँधी की माँ सोनिया गाँधी ने उस समय माँग की थी कि कारगिल युद्ध पर सरकार सदन में सफाई दे और इक्वॉयरी कमीशन बिठाए। यही नहीं, 2004 से 2009 तक यूपीए-1 सरकार ने आधिकारिक तौर पर कारगिल विजय दिवस तक नहीं मनाया था। ये कहानी लंबी है….
राजनीतिक फायदे के लिए लड़ाई-कॉन्ग्रेस
साल 1999 में कॉन्ग्रेस पार्टी ने इंग्लैंड के ‘द गार्जियन’ अखबार में छपे लेख को आधार बनाकर उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को ये कहकर घेरने की कोशिश की थी कि भारत सरकार को चला रहे लोगों ने पाकिस्तान के साथ समझौता करके ये चुनावी स्टंट खेला है। उसने कारगिल को युद्ध तक मानने से इनकार कर दिया था, क्योंकि ये युद्ध चुनाव से तीन सप्ताह पहले खत्म हो गया था। कॉन्ग्रेस ने आरोप लगाया कि ये युद्ध सिर्फ 1999 के चुनाव को जीतने के लिए था।
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के जौहर के आगे पाकिस्तान बेबस रह गया। भारत ने सैन्य और राजनयिक दोनों ही स्तरों पर पाकिस्तान को करारी धूल चटाई। तब इसी कॉन्ग्रेस ने कहा कि ये ‘हार’ है और ‘नुकसान’ पहुँचाने वाला है। कॉन्ग्रेस अपने आरोपों को सही साबित करने के लिए ‘द गार्जियन’ की वो रिपोर्ट लाई, जिसे पाकिस्तान के तत्कालीन सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन ने छपवाया था। इसमें वाजपेयी सरकार को घेरने की कोशिश की गई थी। इस मामले पर कंचन गुप्ता ने 1999 में लिखे अपने लेख में प्रकाश डाला था।
कारगिल युद्ध का राजनीतिकरण कर कॉन्ग्रेस ने रखी सदन सत्र बुलाने की माँग
करगिल युद्ध के दौरान ही सोनिया गाँधी और उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस ने राज्यसभा का आपातकालीन सत्र बुलाने की माँग कर डाली थी। सोनिया गाँधी ने इसके लिए 1962 में चीन से भारत को मिली हार के बाद बुलाए गए संसद सत्र से जुड़ा जवाहरलाल नेहरु का रेफरेंस दिया था। उन्होंने कहा था, “अगर पंडित जी सदन की बैठक बुला सकते हैं तो अब क्यों नहीं बुलाया जा सकता? हमें कारगिल पर बात करना चाहिए।” ये अलग बात है कि कॉन्ग्रेस ने सरकार की तरफ से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में हिस्सा तक नहीं लिया।
जब सोनिया गाँधी पता चल गया कि भारत जीत गया है तो उन्होंने कहा था, “सेना भले ही जीत गई हो, लेकिन सरकार हार गई।” जबकि, हकीकत ये थी कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में बुरी तरह से एक्सपोज कर दिया था। वहीं, सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। यही नहीं, जब सरकार ने कारगिल युद्ध की जाँच करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया तो इसी कॉन्ग्रेस ने जाँच कमेटी पर भी सवाल उठा दिए थे।
सालों तक कॉन्ग्रेस ने कारगिल शहीदों और जवानों का किया अपमान
कॉन्ग्रेस की अगुवाई में यूपीए 2004 में सत्ता में आई, लेकिन उसने कारगिल विजय दिवस को मनाने से इनकार करते देश के हीरो का अपमान किया। साल 2017 में तत्कालीन भाजपा सांसद (मौजूदा समय में केंद्रीय राज्यमंत्री) राजीव चंद्रशेखर ने ट्विटर (अब एक्स) पर जुलाई 2009 का एक पत्र साझा किया था, जिसमें उन्होंने कारगिल युद्ध के वीरों के सम्मान की माँग की थी। उन्होंने पत्र में कॉन्ग्रेस पार्टी को सैनिकों की शहादत की याद दिलाते हुए कारगिल विजय दिवस मनाने की अपील की थी।
राजीव चंद्रशेखर ने 21 जुलाई 2009 को एक पत्र राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को लिखा, जिसमें चेयरमैन से कारगिल विजय दिवस (23 जुलाई) को राज्यसभा में सार्वजनिक महत्व का दिन घोषित करने की माँग की। इसके बाद उन्होंने रक्षा मंत्रालय और सरकार को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाने की अपील की। उन्होंने कॉन्ग्रेस नेताओं से इसे ‘भाजपा की लड़ाई’ कहना बंद करने के लिए भी अपील की।
Did u know 2004-2009 Cong led UPA did not celebrate or honor #KargilVijayDiwas on July26 till I insistd in #Parliament #ServingOurNation pic.twitter.com/kDEg4OY1An
— Rajeev Chandrasekhar 🇮🇳 (@Rajeev_GoI) July 25, 2017
राजीव चंद्रशेखर की कोशिशें 2010 में रंग लाईं, जब उन्हें तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी का पत्र लिखा। उस समय ‘अमर जवान ज्योति’ पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।
कॉन्ग्रेस नेताओं ने कारगिल युद्ध को कहा ‘भाजपा की लड़ाई’
साल 2009 में कॉन्ग्रेस के सांसद राशिद अल्वी ने कहा कि कारगिल विजय दिवस को पूरे देश को मनाने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ एनडीए ही इसे सेलिब्रेट करे, क्योंकि ये उन्हीं (देश की नहीं) की लड़ाई थी। उनका ये बयान देशवासियों और शहीदों के लिए किसी अपमान से कम नहीं था।
कॉन्ग्रेस के पूर्व गृह राज्यमंत्री को याद नहीं कि कारगिल युद्ध कब हुआ
जी हाँ, राशिद अल्वी के बयान के बाद इस बारे में कॉन्ग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल से सवाल पूछा गया। इस पर उन्हें यही नहीं पता था कि कारगिल विजय दिवस आखिर क्या है और कब ये मनाया जाता है। उन्हें पता नहीं था कि कारगिल युद्ध कब हुआ था।
सिद्धरमैय्या की कर्नाटक सरकार की करतूत
साल 2018 में कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुवाई में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। उस समय कारगिल युद्ध के नायकों में से एक कर्नल एमबी रविंद्रनाथ ने 59 वर्ष की उम्र में बेंगलुरू में आखिरी साँस ली। वो कारगिल युद्ध के समय 2 राजपूताना राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर थे, जिसने तोलोलिंग की चोटी को फतह किया था।
कर्नल एमबी रविंद्रनाथ को भारत सरकार ने वीर चक्र से नवाजा था। हालाँकि, कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने उनकी अन्त्येष्टि के समय एक अधिकारी तक को नहीं भेजा। वहीं, विवादित पत्रकार गौरी लंकेश को पूरे राजकीय सम्मान के साथ आखिरी विदाई दी गई। गौरी लंकेश के बारे में तो जानते ही होंगे आप?
कमलनाथ की सरकार ने सिलेबस से कारगिल युद्ध का चैप्टर ही हटाया
भोपाल में MVM साइंस कॉलेज काफी मशहूर है। वहाँ मिलिट्री से जुड़ा पाठ्यक्रम भी है। लेकिन, साल 2018 में जब कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो कारगिल युद्ध को समर्पित पूरा हिस्सा ही पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। भाजपा ने आरोप लगाया कि ऐसा कॉन्ग्रेस सरकार के दबाव में किया गया, ताकि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में मिली देश की जीत को कम करके आँका जाए।
राहुल गाँधी लद्दाख से लेकर कारगिल की यात्रा कर रहे हैं। लोगों को संबोधित कर रहे हैं। वो लाल चौक पर तिरंगा फहरा चुके हैं। संसद में भी उन्होंने कहा कि कश्मीर में लोगों से खूब मिले, तो ये सब आज तभी हो रहा है, जब कारगिल में भारतीय सेना ने जौहर दिखाते हुए पाकिस्तानियों को मार गिराया था और उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन, ये तो वही लोग हैं, जो कारगिल से लेकर बालाकोट तक सबूत ही माँगते रहते हैं।