Sunday, November 17, 2024
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कॉन्ग्रेस नहीं है Pak को पसंद, शांति के लिए इमरान को मोदी से है उम्मीद: ये डर, दबाव या कुछ और!

ट्वीटर पर मोदी विरोधी लोग इस बयान को हथियार समझकर इस्तेमाल करने पर जुटे हुए हैं, विपक्ष लगातार वार करने के लिए प्रयासों में जुटा है। वहीं मोदी समर्थकों का कहना है कि इमरान खान और पाकिस्तान को मालूम चल चुका है कि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आने वाली है, जिसके कारण वह उन्हें मक्खन लगा रहे हैं।

चुनाव मतदान का पहला चरण शुरू होने से ठीक पहले एक तरफ़ जहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता भी पार्टी को छोड़कर मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में अपनी रूचि दिखा रहे हैं, तो वहीं ‘उरी’ और ‘बालाकोट’ जैसे हमलों के बाद भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तक कॉन्ग्रेस को भारतीय सत्ता संभालते नहीं देखना चाहते हैं। ऐसा इमरान ने खुद मीडिया को दिए बयान में कहा है।

दरअसल, पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान के अनुसार लोकसभा 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी को दोबारा से सत्ता मिलती है तो शांति वार्ता होने की बेहतर उम्मीद है। जबकि इमरान का मानना है कि अगर नरेंद्र मोदी के सिवा कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में आती है तो कश्मीर मुद्दे समेत कई मुद्दों पर बातचीत की राह काफ़ी मुश्किल हो जाएगी।

इमरान खान के इस बयान के बाद हालाँकि विपक्ष ने इस पर अपनी राजनीति साधने का पूरा प्रयास किया। कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट करते हुए कहा है कि पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर मोदी के साथ हो गया है। उनकी मानें तो मोदी को वोट करने का पर्याय पाकिस्तान को वोट करना है।

माना जा रहा है कि इमरान खान ने चुनावी माहौल के मद्देनज़र ऐसा बयान दिया है। ट्वीटर पर मोदी विरोधी लोग इस बयान को हथियार समझकर इस्तेमाल करने पर जुटे हुए हैं, विपक्ष लगातार वार करने के लिए प्रयासों में जुटा है। वहीं मोदी समर्थकों का कहना है कि इमरान खान और पाकिस्तान को मालूम चल चुका है कि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आने वाली है, जिसके कारण वह उन्हें मक्खन लगा रहे हैं।

ऐसे में ट्वीटर पर आपस में भिड़े इन दोनों तरह के ‘समर्थकों’ की लड़ाई में उलझने की जगह यह समझना जरूरी है कि इस समय इमरान खान पर और पाकिस्तान पर मोदी के कारण बहुत बड़ा दबाव बना हुआ है। जिसे भारत की कूटनीतिक जीत भी कहा गया है। पुलवामा हमले के बाद पेरिस में एक हफ्ते तक चली बैठक के बाद पाकिस्तान को FATF की ओर से ग्रे लिस्ट में बनाए रखा गया था। यहाँ भारत ने पाकिस्तान पर विशेष नजर रखने और उन्हें दी जाने वाली फंडिंग को रोकने की माँग की थी। जिसके बाद FATF ने उसे ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल रखा था और उससे कहा गया था कि अगर वो खुद में सुधार नहीं करता है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। यहाँ पाकिस्तान ने FATF से 200 दिनों की मोहलत माँगी थी।

इसके अलावा न चाहते हुए भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर मसूद अजहर के मामले में नकेल कसनी पड़ी थी। बता दें कि पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र ने हमले को न केवल जघन्य और कायराना बताकर इसकी निंदा ही की थी। बल्कि जोर देकर कहा था कि इस तरह की हरकतों को करने वालों और इन्हें फंडिंग कर देने वालों कटघरे में खड़ा करना चाहिए।

इतना ही नहीं नए साल की शुरूआत के साथ इस बात को सरकार ने साझा किया था कि पाकिस्तान की हिरासत में भारत के 503 मछुआरे हैं। जिसके बाद पाकिस्तान ने इस बात को स्वीकारा कि उसने 483 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया हुआ है। इस दौरान विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने बताया था कि 2014 से अनेकों प्रयासों के बाद पाकिस्तान से 1749 भारतीय कैदी रिहा हुए हैं। इसके अलावा अभी हाल ही में पाकिस्तान ने बाघा बॉर्डर के जरिए 100 कैदियों को भारत रिहा किया है। और बाकी के कैदियों को रिहा करने की तारीख़ भी बता दी है।

इस कदम को भले ही पाकिस्तान ने ‘सद्भावना’ के तहत उठाया कदम बताया गया हो, लेकिन सच यही है कि ये पाकिस्तान के भीतर मोदी सरकार का डर है। जिसके कारण वो ज्यादा समय अपनी हठों पर टिकने के लिए नाकाबिल हैं। वो चाहते हुए भी भारत के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठा सकता है।

जो इस बात को कह रहे हैं कि मोदी के चुनाव जीतने पर पाकिस्तान में बम फूटेंगे, वो उन्होंने शायद इमरान खान के पूरे बयान को ध्यान से नहीं सुना है। क्योंकि पाकिस्तानी पीएम इमरान खान अपने बयान में मोदी पर कई आरोप भी लगाएँ हैं, जो साबित करते हैं कि भले ही पाकिस्तान कॉन्ग्रेस के सत्ता में आने को लेकर चिंतित है, लेकिन मोदी सरकार की जीत को लेकर फायदा वाली बात कहने का मतलब मोदी को ‘समर्थन’ देना या मोदी का ‘समर्थन’ पाना तो बिलकुल भी नहीं है। लेकिन हाँ, इसे डर जरूर कहा जा सकता है क्योंकि अनेकों शिकायतों और हैरानी होने के बाद भी वो कामना करते हैं कि मोदी की सरकार वापस बने।

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