ख़ान लॉबी, तथाकथित प्रगतिशील वामपंथी निर्देशकों का समूह जो कॉन्ग्रेस के पालने में झूला झूलता है एवं वंशवाद की मजबूत पकड़ में जकड़े बॉलीवुड में यकायक ऐसी अभिनेत्री का बोलबाला हो जाता है, जो उपरोक्त तीनों योग्यताओं में तो फिट नहीं नज़र आती है, किंतु उसे अदाकारी भरपूर आती है। इस अभिनेत्री का नाम है कंगना रानौत।
कंगना रानौत आज किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं। सदियों से बॉलीवुड में विद्ध्यमान ‘नेपोटिज़्म’ की परंपरा को नकारते हुए, अपने दम पर फ़िल्म को सुपरहिट कराने का दमखम रखने वाली चंद अभिनेत्रियों के समूह में वो शीर्ष पर हैं। ‘क्वीन’ फ़िल्म में की गई अपनी अदाकारी से कंगना ने साबित कर दिया कि बॉलीवुड में सफलता के लिए ‘धर्मा प्रोडक्शन’ जैसे बड़े बैनर या ख़ान बंधुओ की दुमछल्ली बनने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि परदे पर जीवंत और दर्शकों को बाँधकर रखने वाले शाहकार अभिनय की जरूरत है।
‘तनु वेड्स मनु’ और इसकी सीक्वल फ़िल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में की गई कंगना रानौत की अदाकारी ने उन्हें भारत के आम सिनेमा प्रेमी के दिलों की धड़कन बना दिया। उनका निभाया गया ‘तनु’ का क़िरदार मानस में इतना मानीखेज़ है कि लोगबाग उसके 3-3 मिनट के वीडियोज़ को यूट्यूब पर जब-तब स्व-स्थिति की तरोताजगी के बनिस्बत देखा करते है।
पर्दे से इतर आम ज़िंदगी में भी कंगना अतिविद्रोही स्वभाव की है, जो एकदम मुँहफट होकर वो सब कुछ कह देती है, जिसने कभी उनको क्षुब्ध किया है। फिर चाहे वो इंडिया टीवी के शो में ऋतिक रोशन के ख़िलाफ़ अपने गुस्से का इज़हार हो या फ़िर वंशवाद की बेल पर बुलंदी छूने वाले धर्मा प्रोडक्शन के सर्वे-सर्वा करण जौहर के खिलाफ़ यलगार करना हो।
मणिकर्णिका फ़िल्म के रिलीज़ के समय दर्शक इसकी सफलता को लेकर बेहद सशंकित थे। तथाकथित फ़िल्मी समालोचकों ने भी इसे ख़राब रेटिंग दी थी और फ़िल्म को न देखने की सलाह दी थी। लेकिन कंगना ने अपने जबरदस्त अभिनय, व्यक्तिगत प्रचार के दम पर और दर्शकों के अपार स्नेह के दम पर इसे भी सुपरहिट करवा दिया।
आज वहीं कंगना रानौत जब राष्ट्रवाद पर एकदम खुलकर बोलती है और पाकिस्तान को जोरदार तरीके से धकियाती है तो फ़िर तथाकथित वामी-प्रगतिशील समूह के पेट में मरोड़ उठने लगती है। उनको लगता है कि नायिका की स्थिति तो फिल्मों में सिर्फ़ शो-पीस सरीखी होती है, उसे नायक की दुमछल्ली ही होना चाहिए, यहाँ तक कि उसे किसी मुद्दे पर अपने विचार रखने से बचना भी चाहिए। अग़र वो ट्वीट करें या फ़िर मुँह खोले तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सौंदर्य उत्पादों के लिए।
पुलवामा हमले के बाद कंगना ने पाकिस्तान की ज़ोरदार मुख़ालफ़त करते हुए कहा कि इस समय पर जो भी लोग शांति और अहिंसा की बात करें उनका मुँह काला करके उन्हें गधे पर बिठाकर सरेआम सड़क पर घुमाना चाहिए। अब ये बात वामपंथियों को इतना नागवार गुजरी कि वो कंगना के मणिकर्णिका फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए नक़ली घोड़े पर सवाल उठाने लगे कि जो नकली घोड़े पर बैठकर शूटिंग करता है, उसका राष्ट्रवाद नकली है।
अरे मियाँ जुम्मन! फ़िल्म में नकली घोड़े का न इस्तेमाल किया जाएगा तो क्या अरब के घोड़े मँगाकर उन पर ‘टिगड़ीक-टिगड़ीक’ किया जाएगा। फ़िल्मो के अधिकांश दृश्य विजुअल ग्राफ़िक के जरिए ही फ़िल्माए जाते हैं। अब कल को साँप के किसी दृश्य में किंग कोबरा या फ़िर एनाकोंडा का उपयोग न किए जाने पर भी ये खंडित मस्तिष्क वाले लोग सवाल उठा सकते हैं। कैफ़ी आज़मी की याद में कराची में होने वाले शो के लिए शबाना आज़मी की देशभक्ति पर सवाल उठाने वाली कंगना को ट्रोल करने से पहले जावेद अख़्तर-शबाना आज़मी से वहाँ होने वाले शो के लिए हामी भरने के बरक्स भी सवाल पूछा जाना चाहिए।
आज, जब कि तथाकथित उदारवाद की ओढ़नी पहने बहुसंख्यक बॉलीवुडिया समाज बैठा है, ऐसे में कंगना रानौत का मुखर होकर देशहित और राष्ट्रवाद के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाना इस बात का शुभ संकेत है कि अब कला और संस्कृति से जुड़े लोग भी घनघोर राष्ट्र्वादी हो गए हैं, जिनको अभी तक वामपंथी अपनी बपौती मानते थे।