कमल हासन ने एक नया बयान दिया है। कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बोलते हुए कमल हासन ने भारत सरकार से सवाल किया है कि वह जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह क्यों नहीं करा रही है? दरअसल, कमल हासन गलत संस्था से सवाल कर रहे हैं। उन्हें यही सवाल पाकिस्तान सरकार से पूछना चाहिए। उन्हें पाकिस्तान सरकार से पूछना चाहिए कि आख़िर उसने क्यों कश्मीर में जनमत-संग्रह की बात को अस्वीकार कर दिया था?
यहाँ सबसे पहले पाक पीएम इमरान खान के सुरक्षा परिषद के कश्मीर रिजोल्यूशन को लेकर कही गई बात की पड़ताल करते हैं। ऐसा इसीलिए, क्योंकि कमल हासन ने जिस जनमत संग्रह की बात की है, उसकी चर्चा इसी रिजोल्यूशन में की गई थी। इमरान खान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से ये अपेक्षा रखते हैं कि वह कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करे। लेकिन यहाँ पर वो ये भूल जाते है कि अप्रैल 1948 में सुरक्षा परिषद् द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर स्वीकृत किये गए प्रस्ताव 47 में क्या कहा गया था। कमल हासन को भी इसे समझने की ज़रूरत है।
Kashmiris must be allowed to decide their future. https://t.co/Y91PUVckh8
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) December 16, 2018
इस प्रस्ताव में कश्मीर समस्या के समाधान की प्रक्रिया को तीन प्रमुख चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण में ये साफ़-साफ़ कहा गया है कि सबसे पहले पाकिस्तान कश्मीर में अपनी किसी भी प्रकार की उपस्थिति को ख़त्म करे। कमल हासन से मिलता-जुलता बयान इमरान ख़ान ने भी दिया था। इमरान ख़ान का ये बयान विरोधाभाषी था क्योंकि जिस सुरक्षा परिषद को वो कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने को कहते रहे हैं, असल में उसी सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर अमल करने में वो नाकाम रहे हैं। कमल हासन को सबसे पहले पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी उपस्थिति हटाने को कहना चाहिए।
इस प्रस्ताव में सुझाई गई प्रक्रिया का दूसरा चरण है भारत द्वारा धीरे-धीरे कश्मीर में तैनात अपने सेना के जवानों की संख्या में कमी लाना। लेकिन ये तभी संभव है जब पकिस्तान पहले चरण पर पूरी तरह अमल करे और सीमा पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की संख्या में कमी आए। बता दें कि पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े भाग पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है जिसे वहाँ ‘आज़ाद कश्मीर’ बुलाया जाता है। क्या कमल हासन पाकिस्तान को इस प्रक्रिया पर अमल करने की सलाह देंगे?
पकिस्तान आज जिस सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अमल में लाने की बात बार-बार करता रहा है, असल में उसने जनमत-संग्रह वाले इस इस प्रस्ताव को 1948 में अस्वीकार कर दिया था। ये इस बात को दिखाता है कि पकिस्तान अपने ही स्टैंड पर कायम रहने में विफल रहा है और कश्मीर पर समय के हिसाब से पैंतरा बदलने में उसने महारत हासिल कर ली है। ये उस देश की अविश्वसनीयता को दिखाता है जो कभी अपने द्वारा ही पूरी तरह अस्वीकार कर दिए गए प्रस्ताव की आज रट लगाये हुए है।
कमल हासन भारत के नागरिक हैं। विश्वरूपम विवाद के समय जब उन्होंने देश छोड़ने की बात कही थी, तब पूरे देश ने एकजुट होकर उनकी फ़िल्म सिर्फ़ रिलीज़ ही नहीं बल्कि सुपरहिट भी कराई थी। सारे मुस्लिम संगठनों के विरोध के बावजूद उनकी फ़िल्म को लेकर लोगों ने एकता दिखाई। लेकिन, कमल हासन आज पाकिस्तान के एजेंडे को दुहरा रहे हैं, भले ही अनजाने में। अपने ही देश का पक्ष समझे बिना और इतिहास की जानकारी लिए बिना कमल हासन अपने इन बयानों से उस इज्ज़त को तार-तार कर रहे हैं, जो उन्होंने अपने 6 दशक के एक्टिंग करियर से कमाई है।
कमल हासन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या वह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 पर अमल करने को तैयार हैं? क्या वो कश्मीर से पाकिस्तानियों को हटाने को तैयार हैं? लेकिन, कमल हासन उलटा भारत सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। उन्हे इमरान ख़ान से पूछना चाहिए कि आज वो जिस सुरक्षा परिषद की दुहाई देते हैं, उसके प्रस्ताव को उनके देश ने 1948 में अस्वीकार क्यों कर दिया था?
कमल हासन ने आज कश्मीर में जनमत-संग्रह की बात कही है। पकिस्तान समय-समय पर कश्मीर में जनमत-संग्रह कराने की भी माँग करता रहा है लेकिन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर इस बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है जो पकिस्तान की दोहरी नीति को पूरी तरह से बेनक़ाब करता है। इसमें ये बताया गया है कि असल में वो भारत ही था जिसने कश्मीर को लेकर सबसे पहले जनमत-संग्रह कराने की बात की थी। जिस देश ने जनमत संग्रह की बात उठाई थी, उसी से सवाल पूछ कर कमल हासन भारत में बैठ कर पकिस्तान का काम आसान कर रहे हैं।
भारत ने 1947, 48 और 1951 में कई बार अपने इस स्टैंड को साफ़ किया था। लेकिन पकिस्तान बार-बार जनमत-संग्रह की बात पर मुकरता रहा। रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि इस बात के कई सबूत हैं कि पकिस्तान ने वो हर-संभव कोशिश की जिस से कश्मीर में जनमत-संग्रह टल सके। इसीलिए कमल हासन पाकिस्तान जाएँ, वहाँ के हुक़्मरानों से सवाल करें कि उन्होंने बार-बार जनमत-संग्रह की बात क्यों ठुकराई? कमल हासन के राजनीतिक गुरु केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के ट्यूशन में शायद यही पढ़ाया जाता हो।