Sunday, December 22, 2024
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सर्जिकल स्ट्राइक्स से लेकर OROP तक: रक्षा मंत्री के रूप में मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल का विस्तृत विवरण

सेना का आधुनिकीकरण (Modernization) एक ऐसा मुद्दा रहा है, जो दशकों से प्रासंगिक रहा है। पर्रिकर दूरदर्शी नेता थे। उन्हें पता था कि उन्हें विरासत में जो विभाग मिला है, उसका अतीत क्या रहा है और उसे कैसे सुधारना है।

मनोहर पर्रिकर- एक ऐसा नाम, जिस से गोवा का बच्चा-बच्चा परिचित था। चूँकि राष्ट्रीय पटल पर वह उतने सक्रिय नहीं रहे थे, देश के दूसरे हिस्से के लोगों ने बस उनकी किवदंतियाँ सुन रखी थी। चार बार गोवा फतह कर चुके पर्रिकर का सीएम रहते स्कूटर से सड़कों पर निकल जाना सोशल मीडिया पर ट्रेंड किया करता था। लोगों के लिए यह काफ़ी आश्चर्य वाली बात थी कि आज के दौर में ऐसे नेता भी हैं जो शिखर पर पहुँच कर भी इस प्रकार सादगी भरा जीवन जीते हैं।

देश का सौभाग्य था कि राजग सरकार में पर्रिकर को गोवा से दिल्ली बुला कर एक ऐसे मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो पहले अपनी कछुआ चाल के कारण जाना जाता था। रक्षा मंत्रालय- यह एक ऐसा विभाग था जहाँ फाइलें वर्षों धूल फाँकती रहती थीं। अफसरों को भी इस धीमी गति की आदत पड़ गई थी और देश का रक्षा तंत्र ध्वस्त हो चला था। स्वयं पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने कहा था कि राफेल ख़रीदने के लिए सरकार के पास बजट नहीं है। जब आठ साल तक रक्षा मंत्री रहा व्यक्ति इस विभाग को ठीक नहीं कर सका, पर्रिकर जैसे कुशल प्रशासक ने यह कार्य सिर्फ़ 2 सालों में कर दिखाया।

गोवा का सर्वमान्य नेता

पर्रिकर ने रक्षा मंत्री का दायित्व सँभालते ही पूर्व में हुए अगस्ता-वेस्टलैंड जैसे घोटालों की जाँच बैठा कर भ्रष्टाचारियों में हड़कंप मचा दिया। कहते हैं, अगर भविष्य अच्छा करना हो तो अतीत में हुई गलतियों को सुधारना पड़ता है। पर्रिकर ने इसी को ध्येय बनाया। जनवरी 2016 में जब फ्रांस के राष्ट्रपति हॉलैंड भारत दौरे पर आए तब 36 राफेल एयरक्राफ्ट्स की ख़रीद के लिए MoU पर हस्ताक्षर किया गया। उस दौरान पर्रिकर ही देश के रक्षा मंत्री थे। भविष्य में जब राफेल भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होगा, देश को कहीं न कहीं पर्रिकर की याद आएगी ही। राफेल सौदे को लेकर उनपर कींचड़ उछलने की भरपूर कोशिश की गई, उनका नाम लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधा गया, झूठ बोला गया। विपक्षियों ने बीमारी के दौरान भी पर्रिकर पर सवाल खड़े किए, जिसके कारण उन्हें पत्र लिख कर इन बातों का तथ्यों के साथ जवाब देना पड़ा।

इतनी गंभीर बीमारी के दौरान भी पर्रिकर जैसे नेता पर छींटाकशी करने वाले राहुल गाँधी आज ज़रूर शर्मिंदा होंगे। आपको याद होगा जब मनोहर पर्रिकर ‘वन रैंक, वन पेंशन (OROP)’ की घोषणा करने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए थे। सौम्य व्यक्तित्व और सरल भाषा में चीजों को रखने वाले पर्रिकर ने जवानों की दशकों से चली आ रही माँग पर ध्यान दिया और इसे पूरा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन कर एक तरह से पर्रिकर ने पूरे देश का दिल जीत लिया। लोग अब उन्हें गोवा से बाहर भी जान रहे थे, उनके कायल होने लगे थे। सेना के रिटायर्ड जवानों ने उन्हें धन्यवाद किया और एक योग्य शासक बनाया। नीचे आप वीडियो को देख कर वो याद फिर से ताज़ा कर सकते हैं। 45 वर्षों से चली आ रही इस माँग को पूरा करने वाला कोई साधारण नेता तो हो नहीं सकता।

OROP: चार दशक से चली आ रही माँग की पूरी

पर्रिकर ने इस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि कैसे उनके पूर्ववर्तियों ने OROP को लेकर जवानों की माँगों को नज़रअंदाज़ किया। पर्रिकर ने बताया था कि यूपीए सरकार ने इसे लेकर समय की घोषणा तो कर दी थी लेकिन इसका स्वरूप क्या होगा, इसे कैसे लागू किया जाएगा, इस बारे में उन लोगों को कुछ पता ही नहीं था। सितम्बर 2015 में हुए इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को याद करते हुए इसके ठीक एक साल बाद अक्टूबर 2016 में पर्रिकर था कि केवल मोदी सरकार ही OROP लागू कर सकती थी। उनकी ये बात बिलकुल सही थी क्योंकि नेताओं के लचर रवैये के कारण कालचक्र के अगनित लूप में फँसी इस योजना पर कार्य करने के लिए एक योग्य, कुशल और जनता से जुड़े नेता की ज़रूरत थी, जो पर्रिकर के रूप में देश को मिला। इस योजना से तीस लाख रिटायर्ड जवानों व दिवंगत जवानों के परिवारों को लाभ मिला।

सर्जिकल स्ट्राइक: अहम था पर्रिकर का योगदान

उरी हमले के बाद पूरा देश आक्रोश में थे, तब भारत ने पकसिएटन स्थित आतंकी कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि उस समय तक भारतीय सेना धैर्य का परिचय देती रही थी और राजनीतिक इच्छाशक्ति उतनी मज़बूत नहीं थी कि सीमा पार आतंकी कैम्पों को ध्वस्त करने के लिए कोई निर्णय लिया जा सके। बाद में पर्रिकर ने सेना को इस ऑपरेशन का क्रेडिट देते हुए यह भी जोड़ा था कि बिना योग्य राजनीतिक नेतृत्व के यह स्ट्राइक संभव नहीं था। उन्होंने कहा था कि उनके हर निर्णय में प्रधानमंत्री का समर्थन था, जो एक बहुत बड़ी बात थी। पर्रिकर के अनुसार, सर्जिकल स्ट्राइक की योजना तैयार करने में 15 महीने लगे थे। यह अचानक नहीं हुआ था।

सेना के आधुनिकीकरण में नहीं छोड़ी कोई कसर

सबसे बड़ी बात थी सेना के आधुनिकीकरण की। सेना का आधुनिकीकरण (Modernization) एक ऐसा मुद्दा रहा है, जो दशकों से प्रासंगिक रहा है। नेहरू से जब अधिकारियों ने इस सम्बन्ध में बात की, तो उन्होंने इसे मज़ाक में उड़ाते हुए अधिकारियों को ही झिड़क दिया था। पर्रिकर दूरदर्शी नेता थे। उन्हें पता था कि उन्हें विरासत में जो विभाग मिला है, उसका अतीत क्या रहा है और उसे कैसे सुधारना है? उनके कार्यकाल में निम्नलिखित बड़े और महत्वपूर्ण रक्षा सौदे हुए:

  • फ्रांस से राफेल एयरक्राफ्ट्स की ख़रीद हुई और करार फाइनल किया गया।
  • बोईंग AH64 अपाचे लॉन्गबो अटैक हैलीकॉप्टर ख़रीदने का करार फाइनल हुआ। इस से ज़मीन पर मौजूद ख़तरों से निपटने में आसानी होगी। सेना को आधुनिक साजोसामान मुहैया कराने की दिशा में एक एक अहम क़दम था।
  • 15 चिनूक हैवी लिफ्ट हैलीकॉप्टर ख़रीदने की डील पर हस्ताक्षर किए गए। अपाचे और चिनूक को भारत के लिए गेम-चेंजर बताया जा रहा है।
  • अमेरिका से अल्ट्रा लाइट होविट्जर (M777) की ख़रीद पर हस्ताक्षर किए गए। तुरंत तैनाती में सक्षम ये होविट्जर भारतीय सेना के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।

आपको यह भी जानना चाहिए कि पर्रिकर द्वारा फाइनल की गई इन चीजों में से कई भारतीय सेना को मिल चुके हैं। इनमे से धीरे-धीरे कर कुछ खेप पहुँचने शुरू हो गए हैं और जब भी ऐसे साजोसामान सेना को मिलते हैं, उनमे जश्न का माहौल होता है। देश की रक्षा और आपदा प्रबंधन में आगे इनका योगदान अतुलनीय होने वाला है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि पर्रिकर जैसे लोग निधन के बाद भी अपने कार्यों के जरिए जनता का भला करते रहते हैं, किसी न किसी रूप में हमारे बीच मौजूद रह कर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। शायद आपको नहीं पता हो लेकिन उनके कार्यकाल में न सिर्फपाकिस्तान बल्कि म्यांमार में भी एक बृहद सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था।

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा व प्रधानमंत्री मोदी के साथ पर्रिकर

इसके अलावा रक्षा मंत्रालय ने उनके कार्यकाल में 16,000 करोड़ से भी अधिक में 420 एयर डिफेंस गन की ख़रीद को मंज़ूरी दी। 15,000 करोड़ से भी अधिक के मूल्य वाले 814 अर्टिलरी गन की ख़रीद को हरी झंडी दिखाई गई। जुलाई 2018 में पर्रिकर ने बताया था कि भारत 155/25 सेल्फ-प्रोपेल्ड गन्स की ख़रीद के मामले में अंतिम चरण में है और इसे कभी भी फाइनल किया जा सकता है। वाइब्रेंट गुजरात से के दौरान उन्होंने यह जानकारी दी थी। इसके अलावा 118 अर्जुन MK-ii टैंक्स को भी मंज़ूरी दी गई। हालाँकि, इनमे अड़चनें हमेशा से थी और आती रही हैं लेकिन पर्रिकर ने फाइलों को निबटाने में जो सक्रियता दिखाई, वो शायद ही किसी अन्य रक्षा मंत्री ने दिखाई हो।

LEMOA: भारत-अमेरिका के सैन्य रिश्ते हुए प्रगाढ़

विश्व महाशक्ति अमेरिका के साथ सैन्य समझौते को और प्रगाढ़ करने का कार्य पर्रिकर के कार्यकाल में ही हुआ। उनके कार्यकाल में अमेरिका के साथ logistics exchange memorandum of agreement पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते के तहत अमेरिका और भारत की सेना एक दूसरे के साजोसामान और फैसिलिटीज को रिपेयर, मेंटेनेंस, सप्लाई और ट्रेनिंग के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए दिशानिर्देश भी तैयार किए गए हैं। इस से अमेरिका और भारत के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और आसान हो गया। इसे एक दशक पूर्व ही अमेरिका द्वारा प्रस्तावित किया गया था लेकिन पर्रिकर के कार्यकाल में ही इसे मूर्त रूप लिया।

देश के पूर्व रक्षा मंत्री और चार बार गोवा के मुख्यमंत्री रहे सौम्य, सरल व्यक्तित्व के धनी मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजलि देते हुए हम उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं। भारत के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की गूँज सुनाई देती रहेगी, दशकों तक। इतिहास में उन्हें कम समय में बहुत कुछ करने के लिए याद रखा जाएगा। 63 वर्ष की उम्र में उनका निधन दुःखद है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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