मैं शर्त लगाता हूँ कि विश्व के कुछ भागों में हिन्दूफ़ोबिया निश्चय ही आवश्यक वस्तुओं/सेवाओं की श्रेणी में शामिल होगा। क्योंकि ऐसा लगता है कि वैश्विक अभिजात्य वर्ग बगैर इसके निर्बाध आपूर्ति के जी नहीं सकता। वो भी तब जबकि पूरे विश्व में लॉकडाउन का माहौल है।
अब जब कि उनके पास अतिरिक्त समय है, अभिजात्य वर्ग को खुद के दिमाग और अपने दर्शकों के लिए “थॉट क्राइम” के नए उदाहरणों का अविष्कार करना होगा। उनके लिए चीन सरकार को दोषी ठहराने की सख्त मनाही है। तो अब वैश्विक उदारवादी खेमे के पास नैतिक विरोध के लिए विकल्प ही क्या है, सिवाय इण्डिया के।
बस, दुनिया के सबसे आसान टारगेट, 100 करोड़ हिन्दू हैं ही। सबूत चाहिए तो अटलांटिक में आतिश तासीर की जहरीली कलम से लिखा लेख पढ़िए।
इस बार निशाने पर “भारत” शब्द है, जिसे “गैर समावेशी” घोषित करने की माँग की गई है। इसके पीछे जो कारण दिया गया है वह है ‘भारत’ का एक संस्कृत शब्द होना और ‘इंडिया’ के लिए भारतीय भाषाओं में ‘भारत’ का उपयोग किया जाना।
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आश्चर्य की बात है कि उदारवादी विश्व ने इस बात को जानने में इतना समय कैसे लगा दिया कि भारतीय अपने दैनिक जीवन में कितना बड़ा पाप कर रहे हैं। आखिर इस हिन्दूफ़ोबिक शैली ने कितने बेमिसाल जवाहरात दिए हैं, जिनमें साड़ी से लेकर रसम, सांभर, हनुमान स्टीकर्स और दीया तक की आलोचना शामिल है! दूसरे शब्दों में भारत से संबंधित वह प्रत्येक वस्तु जिसे पश्चिम में लोग कम जानते हैं, वह एक आसान लक्ष्य होता है, जिसे मानवता के विरुद्ध भयावह षड्यंत्र के रूप में प्रचारित किया जा सकता है। “भारत” शब्द पर हमला करना सिर्फ समय की बात थी।
हमें इस बात को स्थापित करने में बिलकुल भी वक्त नहीं गँवाना है कि “भारत” शब्द पर आतिश तासीर का यह हमला कितना बेहूदा और बचकाना है। राष्ट्रगान में भी इंडिया को “भारत” ही बताया गया है। यहाँ तक कि भारतीय संविधान का प्रारम्भ ही “इंडिया, जो कि भारत है” से शुरू होता है। लेकिन पॉइंट यह है कि पश्चिम में बहुत कम लोग इस शब्द से परिचित होंगे, जो इसे हिन्दूफ़ोबिया का मुख्य लक्ष्य बनाता है।
आगे क्या आने वाला है, यह देखना बिलकुल मुश्किल नहीं है। संयोग से आतिश तासीर ने मेरे ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘भारत’ की तुलना ‘नाजी जर्मनी’ से कर डाली।
(नोट: जर्मन कभी अपने देश को “जर्मनी” कहकर सम्बोधित नहीं करते। इसकी जगह वो हमेशा ‘ड्यूशलैंड’ कहते हैं। अथवा जैसा कि इसे आतिश कह सकता है- एक शब्द जिसे दुनिया की नजर से बचा कर प्रयोग किया जा रहा। लेकिन फिर एक पश्चिमी देश को कलंकित करना आसान नहीं, या आसान है?)
भारत शब्द को कलंकित करने का स्टेज तैयार हो गया है, बिलकुल ‘हिंदुत्व’ की तरह, जिसे इस हद तक बदनाम कर दिया गया कि उदारवादियों ने खुलेआम “हिंदुत्व की कब्र खुदेगी” के नारे लगाने शुरू कर दिए और किसी को यह अपमानजनक भी नहीं लगा। किसी को इस नारे में नाजीवाद प्रतिध्वनित होता नहीं सुनाई पड़ता।
ठीक यही भारत शब्द के साथ होने वाला है। हमारे बीच के टुच्चे लोग (लेकिन शातिर और वामपंथी) सबसे पहले इस नए ट्रेंड को पकड़ेंगे। वो इस शब्द से कन्नी काटना शुरू कर देंगे। धीरे-धीरे वो हमारे प्रतिरोध पर विजय प्राप्त कर लेंगे। और अंततः यह ऐसा टैग हो जाएगा, जिससे ज्यादातर आम हिन्दू भागना शुरू कर देगा।
अगर तथ्यों की बात करें तो भारत शब्द पहले भी निशाने पर रहा है। लगभग 4 साल पहले “भारत तेरे टुकड़े होंगे” वाले वाकये के बाद 3 युवा नेताओं के नाम लोगों के दिमाग में बस गया, जिसमें से दो उमर खालिद और शेहला राशीद ‘एक सच्चे मजहब’ के बढ़चढ़ कर बचाव करने वालों के रूप में उभरे तो तीसरा कन्हैया कुमार ‘हिंदुत्व’ के खिलाफ योद्धा के रूप में स्थापित हुआ। यहाँ यह बताना जरूरी है कि ये तीनों कथित नास्तिक और कम्युनिस्ट हैं।
शायद अब आपको समझ आ सकता है कि भारतीय सेक्युलरिज्म हमें किस तरफ ले कर जा रहा है।
यहाँ हिन्दू राइट और लेफ्ट दोनों के लिए एक सबक है। हिन्दू राइट के लिए यह एक मौका है कि वह समझे कि किस तरह लेफ्ट हमेशा हमारी टर्फ पर आकर खेलता है और ये सच है कि हिन्दू राइट हमेशा उसे पीछे धकेल देता है लेकिन उसका एजेंडा एक हद तक पूरा हो जाता है। वो हमेशा ऐसे ही निर्विकार लेबल्स को ढूँढते हैं फिर उसको लेकर एक विवाद खड़ा कर देते हैं। परिणामस्वरूप शब्दों के विवाद से बचने वाला सामान्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इन लेबल्स से दूर हो जाता है। और इस तरह ये जीत जाते हैं।
2016 में “भारत तेरे टुकड़े होंगे” सुनकर देश का आम जनमानस आहत हुआ। उसने यह दर्शाया भी लेकिन इसके बावजूद भी लेफ्ट अपने एजेंडे पर काम करता रहेगा और शायद 2026 में इसी नारे को सुनकर आम लोगों के मन में 2016 की तरह गुस्सा नहीं पैदा हो। ठीक वैसे ही जैसे “हिंदुत्व की कब्र खुदेगी” पर 2020 में कोई आक्रोश नहीं दिखा।
विकल्प सिर्फ एक है कि लेफ्ट के प्रिय लेबल्स पर हमला किया जाए। जैसे कि ‘लिबरल’ और ‘सेक्युलर’, लेफ्ट पर इन लेबल्स का दुरूपयोग करने का आरोप लगाने की जगह राइट को इन लेबल्स पर ही अपने हमले तेज करने चाहिए।
दूसरा सबक है भारतीय लेफ्टिस्ट्स के लिए। मैंने एक सिम्पल प्रयोग किया और ‘चायनीज वायरस’ के साथ ‘Atlantic’ शब्द गूगल किया, जिसमें तासीर का यह आर्टिकल छपा है।
पिछले एक महीने में 5 आर्टिकल लिखे गए हैं, जो पूरी तरह से या कुछ भागों में इस बात की शिकायत करते दिखते हैं कि चायनीज वायरस कहना क्यों गलत है। यह वही पब्लिकेशन है, जो अब भारत शब्द को कलंकित कर रहा है। मालूम होता है कि लिबरल्स को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि किसी पूरे राष्ट्र को कलंकित न किया जाए, जब तक कि पीड़ित भारतीय नहीं होते!
मैं इंडियन लेफ्ट को याद दिलाना चाहता हूँ कि 2014 में सोनिया गाँधी खुद टीवी पर आकर लोगों से मोदी के खिलाफ वोट कर अपनी भारतीयता दिखाने की अपील की थीं। उस समय भारत एक अच्छा, पवित्र नाम था।
2016 आते-आते लेफ्ट विंग का दृष्टिकोण भारत को लेकर बदल गया। वे वामपंथी ही थे जो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ की बात कर रहे थे। 2020 में वो भारत शब्द को नाजी बताने लगे हैं, उसे नाजी के साथ वाले कॉलम में ठेल चुके हैं। क्या आपको दिखाई पड़ता है कि यह किस तरफ जा रहा है?
हिन्दू नाम वाले भारतीय लेफ्टिस्ट्स को समझना होगा कि आज या कल वैश्विक लेफ्ट तुम पर भी हमलावर होंगे। वो तुमसे भी उतनी ही नफरत करते हैं, जितनी मुझसे। वो समय ज्यादा दूर नहीं है, जब वो किसी ऐसे लेबल को पिक करेंगे, उसे कलंकित करेंगे जो तुम्हारे नजदीक होगा, तुम्हें प्रिय होगा! शायद तुम्हारी मातृभाषा, तुम्हारा नाम या जो भी उसका मतलब होता हो, वो उसे पैशाचिक बना देंगे। उनका मंतव्य हिन्दू संस्कृति के हर निशाँ को मिटा देना और इस भारत भूमि को इतिहास रहित उजाड़, बंजर बना देना है। जैसा कि फैज कहता है, “बस नाम रहेगा… का”