पिछले कुछ दिनों में आपने देखा होगा कि हम कुछ जाने-पहचाने दुरात्माओं के साथ ही कुछ असामान्य लोगों/संस्थाओं के एक सामूहिक हमले के केंद्रबिंदु थे, या यूँ कहें कि लम्बे समय से ऐसे अवांछित तत्वों के निशाने पर थे।
सही मायनों में कहा जाए तो हमले हमें परेशान नहीं करते हैं। अगर ये लोग हम पर हमला नहीं करते हैं, तो हमें ऐसा लगता है कि हम कुछ सही नहीं कर रहे हैं, कुछ दमदार काम नहीं है। इसलिए सबसे पहले, ऐसे नफरत करने वालों को धन्यवाद, और आग्रह कि वे हम पर हमला करते रहें। दुराग्रह इसलिए भी क्योंकि जब-जब नफरत और घृणा के इंधन से चलने वाले लोगों ने हमारे साथ ऐसा किया है, तो हम और भी बड़े और मजबूत होकर उभरे हैं।
अब, जब सब कुछ कहा और किया जा चुका है, तो ऑपइंडिया एवं इनके सम्पादकों, नुपुर शर्मा (अंग्रेजी) और अजीत भारती (हिन्दी) के समर्थन में बोलने वाले हमारे पाठकों, समर्थकों, हमारे अपने लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी ने न केवल हमारे लिए आवाज़ उठाई बल्कि आर्थिक सहायता भी प्रदान की और हर कदम पर हमारा साथ दिया।
चीजों के थोड़ा सुलझने के बाद, मैंने दोनों संपादकों से कहा कि हमें सिर्फ एक ही दवाब के नीचे सर झुकाना है, और वो है ऐसे समयों में लोगों द्वारा ऑपइंडिया पर दिखाया गया अटूट विश्वास। यह एक ऐसा अभूतपूर्व समर्थन है, जिसे हमने वेबसाइट के लॉन्च के बाद से सीधा अब देखा। हम वास्तव में आप सभी के प्रति अभिभूत और आभारी हैं। साथ ही, आपको भरोसा दिलाते हैं नफरत करने वालों का, किसी तरह का, कोई भी दबाव सफल नहीं होने वाला है।
कहीं न कहीं, इस घटना ने दोनों संपादकों को और अधिक मजबूत और ज़्यादा ऊर्जावान बना दिया है। देखा जाए तो वास्तव में उनकी गलती क्या थी? अजीत की गलती यह थी कि उन्होंने एक दुःखी पिता की बातों पर भरोसा किया, जबकि नुपुर की गलती यह थी कि वह भारत के एक विशेष पूर्वी हिस्से में रहती हैं!
वैसे, दोनों अलग-अलग मामले थे, एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं होने के साथ पूरी तरह से अलग-अलग घटनाओं से संबंधित। बस एक अजीब संयोग है कि दोनों एक ही समय पर हुआ। जानबूझकर या सुनियोजित ढंग से? यह हम नहीं जानते।
फिलहाल, हमें कानूनी रूप से सलाह दी गई है कि सार्वजनिक रूप से इस पर अटकलबाजी या बहस न करें और यही सलाह भविष्य के लिए भी है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि वे गलतियाँ करेंगे ही नहीं, लेकिन जब आप जैसे हमारे शुभचिंतक उन्हें इशारा करेंगे, तो वे इसमें संशोधन भी करेंगे। लेकिन इस बार, उनकी एकमात्र गलती यह थी कि वे विचारधाराओं के विभाजन के दूसरी ओर खड़े थे। लेकिन हमारा यही वैचारिक रुख अटल है। यही भारत की आत्मा है, पहचान है और यह बदलने वाला नहीं है।
इसलिए, टीम को दिखाए गए समर्थन के लिए एक बार फिर हार्दिक धन्यवाद। हम जो कुछ भी हैं आपलोगों के दम से हैं और अंत में हम यहीं कहेंगे कि हमारे साथ आप सदैव दृढ़ता से बने रहिए।
राहुल रौशन
नोट: यह मूल रूप से इंग्लिश में लिखे गए ‘पाठकों के नाम नोट’ का हिंदी अनुवाद है।