Monday, December 23, 2024
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हिन्दू एकता के लिए कपिल मिश्रा की पहल से घबराया वामपंथी मीडिया, Scroll ने लव जिहाद और मिशनरियों का किया बचाव

अगर कोई मुस्लिम अपना मजहब छिपा कर किसी लड़की से शादी कर ले और उसे धोखा दे तो इस पर कोई क्यों न विरोध करे? अगर इस्लाम के नाम पर जम्मू-कश्मीर में सौ आतंकी संगठन खड़े हो जाएँ और दुनिया भर में 'अल्लाहु अकबर' चिल्लाते हुए लोगों को मारा जाए, तो कोई क्यों आँख-कान बंद कर ले?

कपिल मिश्रा ने हिन्दुओं को एक करने के प्रयास क्या शुरू किए, लिबरल गिरोह को मिर्ची लग गई। वामपंथी मीडिया बेचैन हो उठा और उसने हिंदुत्व को खतरनाक बताने से लेकर ‘लव जिहाद’ को हिन्दुओं का मनगढंत मुद्दा तक बताने लगे। इसी क्रम में ‘Scroll’ ने भी एक लेख में कपिल मिश्रा द्वारा हिन्दू इकोसिस्टम बनाने की घोषणा को खतरनाक तक करार दिया। साथ ही इसके लिए उनका मजाक भी बनाने की कोशिश की।

‘Scroll’ ने मसखरी के अंदाज़ में इस लेख को शुरू किया है और पूछा है कि अगर आपके पास कुछ खाली समय है तो क्यों न आप अपनी खास रुचियों को धार देने के लिए किसी क्लब या सोसायटी में शामिल हो जाएँ? साथ ही बताया है कि इन दिनों काफी विकल्प हैं और समाजिक सेवाओं के लिए रोटरी क्लब या लायंस क्लब हैं। फिटनेस के साथ कुछ अलग करने के लिए लाफ्टर योग क्लब हैं। पाठकों के लिए कई किताबों वाले क्लब्स हैं।

इसके बाद ‘Scroll’ लिखता है कि आप हिन्दू इकोसिस्टम भी ज्वाइन कर सकते हैं, जिसके लिए आपको बस एक फॉर्म भरना है और इसके लिए कोई एप्लीकेशन फी नहीं है। साथ ही इस लेख में कपिल मिश्रा को ‘दिल्ली दंगों से पहले भड़काऊ बयान देने के लिए जाना जाने वाला’ बताया है। भले ही ये सामने आ चुका है ताहिर हुसैन और उमर खालिद सहित कई इस्लामी कट्टरपंथियों ने दंगे किए और कपिल मिश्रा के भाषण से पहले ही ये शुरू हो गया था, ये मीडिया संस्थान एक झूठ को हजार बार बोल कर इसे सच साबित करना चाहते हैं।

कपिल मिश्रा दिल्ली सरकार में मंत्री थे। करावल नगर से उन्हें 1 लाख से भी अधिक वोट्स मिले थे, यानी कुल वोट्स के 60% के करीब। क्या वो इन सबके लिए नहीं जाने जाते, जो ‘स्क्रॉल’ उन्हें 5 मिनट के किसी भाषण को ही उनकी प्रसिद्धि का एकमात्र कारण बता कर उसे नकारात्मक रूप में पेश कर रहा है? उन्होंने तब भी संस्कृत में शपथ ली थी। दिल्ली के बाद भी कई इलाकों में CAA विरोधी दंगे हुए। उन सब में तो कपिल मिश्रा कहीं नहीं थे।

‘Scroll’ को इस बात की चिंता खाए जा रही है कि आखिर ये हिन्दू इकोसिस्टम करेगा क्या? कपिल मिश्रा पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि ये जमीन पर और सोशल मीडिया पर, कोर्ट में, धर्म के लिए और एक-दूसरे के लिए काम करेगा। इसका सीधा अर्थ है कि इसकी सारी प्रक्रियाएँ वैध होंगी और क़ानूनी दायरे में होंगी। ये आपस में सहयोग का इकोसिस्टम है तो इसकी सराहना करने की बजाए वामपंथी मीडिया इसके खिलाफ क्यों है?

कपिल मिश्रा को लेकर ‘स्क्रॉल’ ने फैलाया प्रपंच

इसके फॉर्म में विकल्प है कि आप ऑनलाइन, जमीन पर, या फिर दोनों के लिए इसका हिस्सा बन सकते हैं। वामपंथी मीडिया को ‘घर वापसी’ ‘हिन्दू एकता’, ‘गौरक्षा’ और ‘लव जिहाद का विरोध’ – इन सभी चीजों से दिक्कत है, जबकि भारत के क़ानून में इनमें से किसी को भी अवैध नहीं माना गया है। ये सब तो समाजसेवा, महिला अधिकार और पशु अधिकार के अंतर्गत आते हैं। इन्हीं चीजों के लिए लड़ने वाले वामपंथी इससे चिढ़ क्यों रहे हैं?

‘Scroll’ का कहना है कि RSS रहस्यमयी तरीके से काम करता है, क्योंकि इसके सदस्य मीडिया में नहीं आते और एक बड़े सभ्यता के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। अर्थात, अगर कोई संगठन बाढ़, अकाल, महामारी और अन्य आपदा की स्थिति में निःस्वार्थ भाव से बिना सरकारी सहायता के लोगों की सेवा कर रहा है तो इन वामपंथियों को उससे भी परेशानी है। चूँकि वो RSS है, समाजसेवा कर सोशल मीडिया पर उसका प्रचार नहीं करता, इसलिए वामपंथियों को ये स्वीकार्य नहीं

वहीं इसी वामपंथी मीडिया को कपिल मिश्रा के नए हिन्दू इकोसिस्टम से इसलिए दिक्कत है, क्योंकि उसका मानना है कि इससे सोशल मीडिया पब्लिसिटी होगी और टीम के सदस्यों की संख्या की बातें होंगी। यानी, अगर कोई शांति से काम कर रहा है तो भी परेशानी और किसी ने सोशल मीडिया को एकता का माध्यम बनाया तो भी परेशानी। ये सब इसीलिए, क्योंकि हिन्दुओं को एक होते हुए ये लोग नहीं देख सकते।

हिन्दू इकोसिस्टम के लिए कपिल मिश्रा का आह्वान

अब ‘स्क्रॉल’ वापस ‘लव जिहाद’ पर आता है और इसे एक कंस्पिरेसी थ्योरी करार देते हुए लिखता है कि इसका हिंदुत्व से तो कोई लेना-देना ही नहीं है। अर्थात, हिन्दू महिलाओं के लिए उसके मन में कोई इज्जत नहीं है, भले ही कोई उन्हें धोखा दे, पहचान छिपाकर कर उनसे साजिशन शादी कर ले, बाद में प्रताड़ित करे या फिर हत्या कर दे। महिलाओं की मदद के लिए अगर कोई संगठन आगे आ रहा है तो इससे ‘स्क्रॉल’ को दिक्कत क्या है?

‘लव जिहाद’ की रोज एक के बाद एक घटनाएँ सामने आ रही हैं। केरल में ईसाइयों के साथ जो हुआ था, उसके बाद उन्होंने इस शब्दावली का प्रयोग किया था। अगर यहाँ हिन्दुओं की बातें छोड़ भी दें तो क्या ईसाई इस वामपंथी मीडिया के लिए अल्पसंख्यक नहीं हैं और संख्या में उनसे कई गुना ज्यादा मुस्लिम भारत में उनके लिए अल्पसंख्यक हैं? हिन्दू व ईसाई महिलाओं की प्रताड़ना को रोकने का प्रयास करना तो सराहनीय है, इसकी प्रशंसा होनी चाहिए। केरल के चर्च तक ने कहा है कि ‘लव जिहाद’ वास्तविक है।

साथ ही इसने ‘इस्लामी आक्रमण’ और ‘ईसाई मिशनरी’ को तथाकथित लिखा है। इसका अर्थ है कि वो ये नहीं मानते कि इस्लामी कट्टरता नाम की कोई चीज है भी। ‘अल्लाहु अकबर’ बोल कर चिल्लाते हुए हत्या की वारदातों और बहला-फुसला कर धर्मांतरण की ईसाई मिशनरियों की करतूतों से जुड़ी कई ख़बरों के बावजूद मीडिया का ये वर्ग चाहता है कि हिन्दू, जो इस दोनों मामलों में पीड़ित है, आँख मूँद कर ये सब सहता रहे।

अगर कोई मुस्लिम अपना मजहब छिपा कर किसी लड़की से शादी कर ले और उसे धोखा दे तो इस पर कोई क्यों न विरोध करे? अगर इस्लाम के नाम पर जम्मू-कश्मीर में सौ आतंकी संगठन खड़े हो जाएँ और दुनिया भर में ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाते हुए लोगों को मारा जाए, तो कोई क्यों आँख-कान बंद कर ले? आदिवासी और पिछड़े इलाकों में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान कर, लालच दे कर और झूठे चमत्कार दिखा कर ईसाई मिशनरी गरीबों को ठगे और धर्मान्तरण कराएँ तो क्यों न कोई इसके खिलाफ आवाज़ उठाए?

‘लव जिहाद’ को दक्षिणपंथी शब्दावली बताने वाला ‘स्क्रॉल’ क्या ये मानेगा कि ईसाई भी दक्षिणपंथी हो गए हैं और वो हिन्दुओं के साथ मिल गए हैं, क्योंकि उन्होंने केरल में इसका प्रयोग किया? अभी जिस संगठन ने कुछ किया ही नहीं, उसका कोई कामकाज सामने आया ही नहीं, उस पर मुस्लिम घृणा का आरोप कैसे कोई लगा सकता है? उसे कैसे कोई नकार सकता है। इस लेख का सीधा मकसद है – हिन्दू एकता का मजाक बनाना और उसे घृणावादी साबित करना।

हिन्दू इकोसिस्टम पर Scroll का प्रोपेगंडा: क्या कहते हैं कपिल मिश्रा?

हमने इन आरोपों के सम्बन्ध में कपिल मिश्रा से भी बातचीत की, जिन्होंने हमें बताया कि वामपंथी तीस्ता सीतलवाड़ भी इसके खिलाफ अभियान चला रही हैं। उन्होंने हस्ताक्षर अभियान से लेकर इसके खिलाफ पत्र लिखने तक, सब किया है। ठीक इसी तरह, अब ‘Scroll’ इसके विरोध कर रहा है और शेखर गुप्ता ने भी ‘द प्रिंट’ की पूरी टीम को इसके पीछे लगा दिया है। कपिल मिश्रा कहते हैं कि विरोध की एक ही वजह है और वो है ‘हिन्दू’ शब्द।

हिन्दू इकोसिस्टम में ‘हिन्दू’ शब्द होने से ही वो सभी चिढ़े हुए हैं और इसे नकारात्मक रूप में पेश कर रहे हैं। दिल्ली के पूर्व मंत्री ने बताया कि ये एक छोटी सी शुरुआत है, जो लोगों को एक प्लेटफॉर्म पर आने और एक-दूसरे की मदद और सेवा करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। उन्होंने कहा कि अगर किसी भी चीज में ‘हिन्दू’ आ जाए, तो ये चिढ़ जाते हैं। उन्होंने पूछा कि अभी इसकी कोई एक्टिविटी भी नहीं हुई है, सिर्फ सदस्य बने हैं, तभी इतना हंगामा किया जा रहा है।

उन्होंने याद दिलाया कि Scroll या फिर तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग इस तरह का रिएक्शन तो आतंकी संगठनों के खिलाफ भी नहीं देते, जैसा वो हिन्दू इकोसिस्टम का विरोध करते हुए दे रहे हैं। उन्होंने पूछा कि जब इन्हें पता ही नहीं है कि ये संगठन करेगा क्या, फिर ये विरोध क्यों कर रहे हैं? सिर्फ ‘हिन्दू’ शब्द की वजह से? उन्होंने बताया कि इसका मुख्य उद्देश्य होगा सेवा, ऑफलाइन या ऑनलाइन सनातनियों को जोड़ना।

कपिल मिश्रा ने ऑपइंडिया से कहा कि ये एक नेटवर्क बनाया जा रहा है, जिसमें लोग एक-दूसरे की मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र में देश में हजारों संगठन चल रहे हैं, जिला-प्रखंड-ग्राम स्तर तक पर अलग-अलग संगठन चल रहे हैं, ऐसे में इसकी RSS से तुलना करना गलत होगा। उन्होंने कहा कि RSS के काम करने का स्तर, उनका इतिहास और उनकी कार्यप्रणाली- सब अलग हैं।

कपिल मिश्रा ने समझाया कि हिन्दू इकोसिस्टम को एक टीम की तरह लिया जा सकता है, इसे एक शुरुआत की तरह ले सकते हैं। जिस तरह से हर जिले-राज्य में टीमें होती हैं, उसी तरह से ये भी है। उन्होंने कहा कि RSS से इसकी तुलना बेमानी है और ऐसा होना ही नहीं चाहिए। साथ ही कहा कि इस टीम की पूरी सक्रियता के बारे में धीरे-धीरे पता चल जाएगा, अभी तो बस सदस्यों के फॉर्म ही भरे गए हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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