राष्ट्रीय हितों को लेकर लंबे अरसे से एनडीटीवी का नजरिया पेचीदगी भरा रहा है। इस न्यूज चैनल से जुड़े पत्रकारों की सरहद पार के हुक्मरान और आतंकी आका हौसलाअफजाई करते रहते हैं। पाकिस्तान उनके बयानों को भारत विरोधी प्रोपगेंडा को हवा देने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है। ऐसे 7 घटनाओं पर एक नजर,
जब रवीश कुमार बने मोहरा
एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार ने पुलवामा आतंकी हमले के बाद जर्मन मीडिया हाउस डॉयचे वेले (डीडब्ल्यू) को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि भारतीय मीडिया बेरोजगारी जैसे मसलों की बजाए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को तूल दे रही है ताकि सत्ताधारी दल को चुनावी फायदा हो सके। पाकिस्तानी मीडिया ने इस बयान का हवाला देकर भारत पर युद्धोन्माद पैदा करने का आरोप लगाया।
बरखा दत्त की कारगिल कवरेज
बरखा दत पर कारगिल की लड़ाई के दौरान भारतीय हितों की अनदेखी कर रिपोर्टिंग का आरोप है। कथित तौर पर उनकी रिपोर्टों से भारतीय सेना की पोजीशन उजागर हुई। लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी ने अपनी किताब ‘कारगिल: टर्निंग द टाइड’ में में इसका ब्यौरा दिया है।
पठानकोट पर मॉंगनी पड़ी माफी
पठानकोट एयरबेस पर हमले के दौरान एनडीटीवी ने संवेदनशील जानकारियॉं सार्वजनिक कर दी। इनमें एयरबेस पर मौजूद आयुध की जानकारी भी शामिल थी। इसका इस्तेमाल आतंकी नुकसान पहुॅंचाने के लिए कर सकते थे। केन्द्र सरकार ने इस रिपोर्टिंग के कारण एनडीटीवी के प्रसारण पर एक दिन का प्रतिबंध लगा दिया था। हालॉंकि बाद में सरकार ने फैसला वापस ले लिया लेकिन इसके लिए न्यूज चैनल को अदालत में माफी मॉंगनी पड़ी थी।
पुलवामा हमले का महिमामंडन
पुलवामा हमले के बाद एनडीटीवी की डिप्टी एडिटर निधि सेठी ने फेसबुक पोस्ट से जैश को महिमामंडित किया था। हैशटैग #HowstheJaish के साथ वीरगति को प्राप्त हुए जवानों का मजाक उड़ाते हुए टिप्पणी की। मामले के तूल पकड़ने पर चैनल ने निधि को सस्पेंड कर दिया था।
35A पर ‘पुलिस विद्रोह’ का झूठा दावा
सुप्रीम कोर्ट जब 35-ए से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, उसी समय एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि जाँच एजेंसियों ने चेटावनी दी है कि अगर शीर्ष अदालत ने 35-ए को रद्द किया, तो कश्मीर में पुलिस बगावत करेगी। हालाँकि, इसकी पुष्टि में कोई तथ्य पेश नहीं किया गया था।
दरअसल, एनडीटीवी के एक पत्रकार ने एक इंटरव्यू के दौरान जम्मू कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य से पुलिस बगावत को लेकर सवाल किया था। जवाब में वैद्य ने कहा कि पुलिस बल के लिए कर्तव्य पहले है। पत्रकार ने दोबारा दूसरे तरीके से यही सवाल किया। इसके जवाब में डीजीपी ने कहा कि हर इंसान का अपना एक नजरिया होता है, लेकिन एक पुलिस वाले के लिए कर्तव्य पहले है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सभी सम्मान करते हैं। डीजीपी के इनकार के बावजूद एनडीटीवी ने बिना किसी पुख्ता सबूत के सनसनीखेज हेडलाइन चलाया।
कश्मीर पर एनडीटीवी के एजेंडे को पाकिस्तान का समर्थन
एनडीटीवी ने पिछले दिनों अनुच्छेद 370 और 35-ए के लेकर एक रिपोर्टिंग की थी। पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी ने उसी रिकॉर्डिंग को शेयर करते हुए चैनल की बातों का समर्थन किया। इस वीडियो क्लिप में एक पत्रकार श्रीनगर से रिपोर्ट करते हुए दावा करता है कि वो और उसकी टीम एक बूढ़े और अंधे व्यक्ति से मिले थे। उस व्यक्ति ने उनसे कहा कि नई दिल्ली में कहा जा रहा है कि कश्मीर में हर कोई जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से खुश है। मगर कर्फ्यू हटने के बाद वहाँ के लोग बता देंगे कि वो कितने खुश हैं। पत्रकार का इशारा हिंसा की तरफ था, मगर माइक और कैमरा होते हुए भी उन्होंने उस बूढ़े शख्स को नहीं दिखाया। उन्होंने सिर्फ दावा किया कि एक व्यक्ति ने ऐसा कहा।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को बदनाम किया
एनडीटीवी की एडिटोरियल डायरेक्टर ने संस्थान की वेबसाइट पर एक कॉलम पोस्ट किया जो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर यूनेस्को में उनके संबोधन पर आधारित था। ‘लेट जर्नलिज्म थ्राइव- टेलीविज़न एंड मीडिया फ़्रीडम’ शीर्षक से लिखे गए इस आर्टिकल में वो भारत में प्रेस से जुड़े स्वतंत्रता, चुनौतियों, विकल्पों, खतरों और हिंसा के बारे में बात करती हैं। कॉरपोरेट्स और सरकार के अप्रत्यक्ष सेंसरशिप के बारे में बात करते हुए, गजेंद्र सिंह की आत्महत्या को महिमामंडित करते इसे भारत में किसानों की दुर्दशा का प्रतीक बताया।