Saturday, December 21, 2024
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खिसियाया रवीश ऑपइंडिया नोचे: न्यूज़लॉन्ड्री का लेख रवीश ने ही लिखवाया, एडिट किया, नहीं चला तो खुद शेयर किया

बताने वाले ने ही बताया, "वो रवीश जी ने ही पोस्ट करवाया है। उसका ड्राफ़्ट भी उनसे चेक कराया गया था। वेबसाइट पर जब अपलोड किया गया तो तीन दिन तक कोई रिस्पॉन्स नहीं आया। तब रवीश जी ने परेशान होकर ख़ुद ही फ़ेसबुक पर शेयर किया ताकि ऑपइंडिया की पोल खुल जाए।"

पता चला है कि रवीश जी बहुत परेशान हैं। यह बात उन लोगों से पता चली है जिनसे उन्होंने अपनी परेशानी दूर करने के लिए मदद माँगी है। बताया गया कि रवीश जी का फ़ेसबुक देखिए। मैंने देखा तो वहाँ पर न्यूज़लॉन्ड्री नाम की एक कॉन्ग्रेसी प्रोपेगेंडा वेबसाइट का लिंक शेयर किया हुआ था। जिसमें ऑपइंडिया वेबसाइट के बारे में कुछ खुलासे जैसा किया गया था। क़रीब तीन किलोमीटर लंबा लेख था जिसका एक लाइन में मतलब यह है, “रवीश जी बहुत परेशान हैं क्योंकि ऑपइंडिया नाम की एक वेबसाइट उनके बारे में बहुत बुरा-बुरा लिख रही है।”

बताने वाले ने ही बताया, “वो रवीश जी ने ही पोस्ट करवाया है। उसका ड्राफ़्ट भी उनसे चेक कराया गया था। वेबसाइट पर जब अपलोड किया गया तो तीन दिन तक कोई रिस्पॉन्स नहीं आया तब रवीश जी ने परेशान होकर ख़ुद ही फ़ेसबुक पर शेयर किया ताकि ऑपइंडिया की पोल खुल जाए।” यह सुनकर मैं हैरान था कि पत्रकार का चोला ओढ़े इतना बड़ा दलाल ऑपइंडिया जैसी नई-नवेली न्यूज़ वेबसाइट से डर गया। डर भी उस लेख से जो दरअसल व्यंग्य (Satire) में लिखा गया है। जब कोई व्यक्ति व्यंग्य या मज़ाक को सीरियसली लेना शुरू कर दे तो फौरन समझ जाना चाहिए कि उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है।

नक़ली आदमी चाहे जितना भी बड़ा हो जाए है उसका यह डर नहीं जाता कि कहीं लोग उसकी सच्चाई जान न जाएँ। जिस तरह से ऑपइंडिया ने पिछले कुछ दिनों में एनडीटीवी पर चलने वाले जिहादी और नक्सली समर्थक प्रोपेगेंडा को उजागर किया है वो अपने आप में एक मिसाल है। ऑपइंडिया कोई नया काम नहीं कर रहा। इससे पहले रवीश जी की पत्रकारिता की पोल तो चाँदनी चौक के कम पढ़े-लिखे दुकानदारों ने भी खोल दी थी, जब नोटबंदी के दौरान वो कॉन्ग्रेस के एक नेता को चाँदनी चौक का दुकानदार बताकर उससे नोटबंदी के ख़िलाफ़ बुलवा रहे थे। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो रवीश जी ने भागते हुए बोलना शुरू कर दिया था कि ये सब बीजेपी के गुंडे हैं। रवीश जी के ऐसे स्वाँग के ढेरों उदाहरण हैं। न जाने कितने लोगों को उन्होंने फेक न्यूज़ और फेक नैरेटिव का शिकार बनाया। ऑपइंडिया बस ऐसे लोगों की ही आवाज़ बन गया, इसीलिए रवीश कुमार उससे डर रहे हैं।

रवीश जी ऑपइंडिया को आईटी सेल बोलकर ख़ारिज करने की कोशिश ज़रूर करते हैं। लेकिन खुद उनसे बेहतर कोई नहीं जानता कि वास्तव में ऐसा नहीं हैं। आईटी सेल वालों को तो वो कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी के आईटी सेल की मदद से कई बार पानी पिला चुके हैं। उन्हें क्या लगता है कि #ISupportRavishKumar जैसे जो हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कराए जाते हैं वो कौन कराता है यह लोगों को पता नहीं चलता? ऑपइंडिया में कोई डेकोरेटेड और पुरस्कार प्राप्त पत्रकार नहीं हैं। ये सारे आम नौजवान हैं जिनके किसी और ज्यादा कमाई वाले पेशे में जाने की संभावना अधिक थी। लेकिन शायद कोई जुनून था जो उन्होंने यह वेबसाइट चलाई।

मुझे नहीं लगता कि इनमें कोई बड़े-बड़े मीडिया इंस्टीट्यूट से पढ़कर आया है। ये सभी लोअर मिडिल क्लास के लड़के हैं, जो बिहारी स्टाइल में ‘कहके लेते’ हैं। इन्होंने पत्रकारिता की बनी-बनाई भाषा नहीं अपनाई, बल्कि अपनी भाषा और शैली गढ़ी है। रवीश जी को लगता होगा कि ऑपइंडिया सिर्फ उनके नाम पर चल रहा है तो ये उनकी गलतफहमी है। यह वेबसाइट उनके अलावा 50 से ज्यादा प्रोपेगेंडा चैनलों, अखबारों, वेबसाइटों, पत्रकारों और उनके सियासी सरगनाओं से पंगा ले रही है। ये आसान काम नहीं है।

ऐसा नहीं है कि ऑपइंडिया वालों को पता नहीं होगा कि कॉन्ग्रेस की सरकार के समय मीडिया के इस माफ़िया से टकराने वालों का क्या अंजाम हुआ करता था। 26/11 के मुंबई हमलों के बाद ‘The Hoot’ नाम की एक मामूली वेबसाइट ने बरखा दत्त की भूमिका के बारे में पूरे सबूतों के साथ एक रिपोर्ट की थी। जिस पर बरखा दत्त ने उसे चलाने वाले को जेल के दरवाजे तक पहुँचा दिया था। ऐसे ही न जाने कितनी वेबसाइटों और ब्लॉग्स का दम घोंटने का श्रेय इस दलाल मंडली को जाता है। पहले अपनी सरकार थी तब जेल भिजवा देते थे, अब नहीं भिजवा पाते इसीलिए “डर का माहौल” है।

रवीश जी बहुत कुढ़कर रह जाते होंगे। इसीलिए हर उस आदमी को गोदी मीडिया, आईटी सेल, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी बोल देते हैं, जो उनके पाखंड की पोल खोलने की जुर्रत करता है। मुझे भरोसा है कि रवीश जी सबका नाम किसी कॉपी में लिखकर रख रहे होंगे कि जब राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनेंगे तो उनसे बोलकर सबको जेल भिजवाएँगे। उस कॉपी में ऑपइंडिया और उनके संपादक अजीत भारती का नाम सबसे ऊपर स्केच पेन से अंडरलाइन करके लिखा होगा।

रवीश जी को यह समझना चाहिए कि ऑपइंडिया के ख़िलाफ़ अपनी भड़ास निकालकर कुछ नहीं मिलेगा। उसके खिलाफ साजिशें बंद कीजिए। अपने चमचों से उसे डाउनग्रेड करवाने जैसी चिरकुटई से बाज आइए। ऑपइंडिया नहीं होगा तो कोई और नाम होगा। आपने पत्रकारिता के नाम पर नफ़रत की जो खेती की है उसकी प्रतिक्रिया न हो यह कैसे हो सकता है? आप न्यूज़लॉन्ड्री की आड़ लीजिए या वायर की, कोई न कोई मामूली आदमी आपकी झूठ की लंका में छुरछुरी लगाता रहेगा।

अच्छी भाषा की उम्मीद मत कीजिएगा, क्योंकि ज़रूरी नहीं कि हर किसी को चाशनी में डूबे ज़हरीले शब्द लिखने की ट्रेनिंग मिली हो। मैं एक पाठक के तौर पर ऑपइंडिया की पूरी टीम और अजीत भारती को बधाई दूँगा। रवीश कुमार जैसे ठगों औऱ दलालों की तिलमिलाहट इस बात का सबूत है कि वो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हीं की फेसबुक वॉल पर किसी Anumeha Pandit का कमेंट याद दिलाना चाहूँगा, “आप शानदार काम कर रहे हैं। ध्यान रखिएगा अपने मानक का क्योंकि आप इतिहास दर्ज़ कर रहे हैं। इस समय की सबसे महत्वपूर्ण आवाज़ आप हैं।”

अजीत भारती का जवाब यहाँ देखें: https://www.youtube.com/watch?v=j9ietZ2CUvQ
यह भी पढ़ें: जामिया में मजहबी नारे ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ क्यों लग रहे? विरोध तो सरकार का है न?

यह लेख चंद्र प्रकाश जी ने लिखा है।

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