शिवम विज नाम के एक पत्रकार हैं। खुद को लिबरल थिंकर कहते हैं। शेखर गुप्ता के द प्रिंट के लिए काम करते हैं। लेकिन हकीकत में यह झूठ फ़ैलाने की ज़िम्मेदारी लेकर खुलेआम घूमने वाले शख्स हैं। यह आरोप निराधार नहीं है। क्यों? क्योंकि विज साहब ने कश्मीरी पंडितों पर एक रिपोर्ट लिखी। इस रिपोर्ट में अपना एजेंडा थोपने के लिए उन्होंने अरविन्द गिगू से बातचीत को जबरन डाल दिया। वैसे तो शिवम विज द प्रिंट के कॉन्ट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं लेकिन अपने पद को बदनाम करने में अपनी संस्था से भी दो कदम आगे हैं। कश्मीरी पंडितों की अपनी रिपोर्ट में शिवम ने जिस लेक्चरर के हवाले से झूठ फैलाने की कोशिश की, उन्हीं के बेटे सिद्धार्थ ने उसे अपने पिता के नाम से चलाई जा रही उस भ्रामक लाइन को हटाने के लिए कहा है।
This is to state & clarify that this article cites my father, Arvind Gigoo’s quote. The truth is my father NEVER gave this quote. The reporter, Shivam Vij, has lied. Hello @ShekharGupta @ThePrintIndia , please remove my father’s quote from the article and apologize. https://t.co/XtI7hYO33J
— Siddhartha Gigoo (@siddharthagigoo) December 2, 2019
फिलहाल तो द प्रिंट के संपादक शेखर गुप्ता ने यह नहीं कहा है कि असफलताओं के लिए खुद को जिम्मेदार मानने की ज़रूरत है, लेकिन 2007 में जब वो इंडियन एक्सप्रेस के साथ थे, तब उन्होंने ये बातें कहीं थीं। उन्होंने अनिल विज के संदर्भ में ये बातें कतई नहीं कही है। वैसे चीजों को तोड़-मरोड़ कर अपने तरीके से गढ़कर पेश करना द प्रिंट की पुरानी आदत रही है। अपनी इस बेशर्मी के लिए उसे लताड़ा भी जाता रहा है। चूँकि द प्रिंट दशकों पुराने उद्धरणों को वर्तमान परिदृश्यों के लिए जिम्मेदार मानता है, इसलिए हमने सोचा कि यह देखना काफी मजेदार होगा कि समय कैसे बदलता है।
बता दें कि शिवम विज ने कश्मीरी पंडितों पर अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था, “अरविन्द गिगू कश्मीर के एक रिटायर्ड अंग्रेजी लेक्चरर हैं, जो 1991 के कश्मीर घाटी पलायन में निकलकर जम्मू आ गए और अब वहीं फ्लैट लेकर रहते हैं। उन्होंने कहा कि अब वे यहीं रहते हैं क्योंकि उनके ज़्यादातर दोस्त यहीं हैं। यही कारण है कि वह दिल्ली में अपने बेटे के साथ नहीं रहते। शिवम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि सालों बाद जब वह श्रीनगर गए तो उन्हें एक बाहरी जैसा महसूस हुआ, वहाँ वे अब किसी को नहीं जानते।”
शिवम विज ने अपने प्रोपेगेंडा को हवा देने के लिए के लिए अरविन्द गिगू के नाम का सहारा लिया और कहा कि उन्होंने जो भी कहा है, वो उनके हवाले से कहा है। हालाँकि अरविन्द गिगू के बेटे सिद्धार्थ गूगू ने इसे सिरे से नकारते हुए, शिवम विज को झूठा करार देते हुए कहा कि उनके पिता ने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया था। सिद्धार्थ ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनके पिता ने तो कभी द प्रिंट के साथ बात ही नहीं की है।
सिद्धार्थ गिगू के इस टिप्पणी के बाद शेखर गुप्ता ने शिवम विज द्वारा लिखे गए रिपोर्ट को सही बताते हुए वकालत की। शेखर गुप्ता ने द प्रिंट का नेतृत्व करते हुए दावा किया कि यह बयान सटीक है और 2010 में अरविंद गिगू के साथ विज की मीटिंग से लिया गया है। शिवम विज ने भी इसी तरह का ट्वीट किया। शिवम विज के ट्विटर हैंडल को चेक करने पर उनकी बेशर्मी और भी स्पष्ट हो जाती है।
दरअसल द प्रिंट और शिवम विज का सोचना यह है कि एक दशक पुरानी बात, जब समय और परिस्थितियाँ अलग थीं, उस समय की घटनाओं और परिस्थितियों का हवाला देते हुए आज के समय में वो अपने प्रोपेगेंडा को फैलाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। द प्रिंट और शिवम विज द्वारा हेकड़ीपन और अक्खड़पने के बेशर्म प्रदर्शन के बाद द प्रिंट ने चुपके से उस पैराग्राफ को बदल दिया जहाँ अरविंद गिगू का हवाला दिया गया था।
शिवम विज ने दावा किया कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में जो जानकारी साझा किया है, वो बिल्कुल सटीक है। उनका कहना है कि यह जानकारी 2010 से 2012 में लिया गया था। यानी कि जिस उद्धरण की वो बात कर रहे हैं, वो लगभग एक दशक पहले का है, जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था। वहीं जब सिद्दार्थ गिगू, विज से इसको लेकर सवाल किया, तो विज बेशर्मी पर उतर आते हैं और बोलते हैं, “क्या वह पागल हो गया है?”
द प्रिंट का मानना है कि यह पूरी तरह से उचित है कि 2007 में शेखर गुप्ता के बयान को वर्तमान संदर्भ में, बिना वर्तमान परिस्थिति की परवाह किए इस्तेमाल किया जा सकता है। 2007 में शेखर गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस के कर्मचारियों को 2751 शब्द का एक ईमेल लिखा था, जिसमें कहा गया था कि समूह खुद को “एक बड़ी छलांग के लिए” तैयार है। इसे एक ईमानदार आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है और हमारी विफलताओं और कमजोरियों को स्वीकार करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे लिखा, “एक साल में जब मीडिया उद्योग में लगभग 25% की वृद्धि हुई है, हमारे राजस्व में 3% की गिरावट आई है। इसका मतलब है कि हम अपने लक्ष्य (लाभ) से पिछड़ रहे हैं।”
शेखर गुप्ता उस समय इंडियन एक्सप्रेस समूह के प्रधान संपादक थे। इस दौरान उन्होंने शीर्ष प्रबंधन टीम के सदस्यों से उस वर्ष के लिए वेतन फ्रीज करने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि वो मार्केट में पिछड़ रहे हैं। इसलिए उन्होंने खुद भी वेतन के एक महत्वपूर्ण हिस्से को तब तक न लेने का फैसला किया है जब तक कि वो इसमें कुछ वास्तविक सुधार नहीं देखते।
शेखर गुप्ता और उनके वर्तमान मीडिया हाउस द प्रिंट, गलतियों को स्वीकार न करने के बहुत ही बेशर्म हो गया है। हमारे विचार से द प्रिंट के संपादकीय मानकों को देखते हुए शिवज विज द्वारा किए गए बेहूदगी को आज आसानी से शेखर गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।