लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और कॉन्ग्रेसी खेमे की हताशा और निराशा बेक़ाबू होती जा रही है। अपने ‘बिगड़े’ मानसिक संतुलन के चलते कब कौन क्या कह दें कुछ पता नहीं। ऐसी ही एक हरक़त कॉन्ग्रेस के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अपने एक आर्टिकल के माध्यम से की। अपने इस आर्टिकल में उन्होंने बीजेपी को घेरते हुए कई मुद्दों को शामिल किया।
शुरुआत करते हैं उन मुद्दों से जिन्हें इस आर्टिकल के ज़रिए पीएम मोदी की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया। चिंदंबरम ने पहला वार ‘चौकीदार’ शब्द पर किया और कहा कि चौकीदार होना सम्मानजनक काम है जो कई शताब्दियों से चला आ रहा है। चौकीदारों के लिए दिन-रात सब एक समान होते हैं।
चौकीदार प्रधानमंत्री की चौकीदारी, बन गया वो दर्द जिसका कोई इलाज नहीं
अपने लेख में उन्होंने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए उनके द्वारा चौकीदार शब्द के इस्तेमाल का मखौल उड़ाया। उनके इस प्रकार मखौल उड़ाने को मैं उनका दर्द कहूँगी। कारण स्पष्ट है क्योंकि देश के इसी चौकीदार की चौकीदारी का नतीजा था कि एयरसेल-मैक्सिस डील में पिता-पुत्र (पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम) के घोटालों का पर्दाफ़ाश हुआ। आरोप यह है कि पिता-बेटे ने यह घोटाला तब किया था, जब यूपीए सरकार में वित्त मंत्री थे सीनियर चिदंबरम। उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने पद पर रहते हुए ग़लत तरीक़े से विदेशी निवेश को मंज़ूरी दी थी। उन्हें केवल 600 करोड़ रुपए तक के निवेश की मंज़ूरी का अधिकार था लेकिन उन्होंने 3500 करोड़ रुपए के निवेश को मंज़ूरी दी, जो बाद में घोटाले के रूप में उजागर हुई।
बता दें कि इस घोटाले का संबंध 2007 से है, जब कार्ति चिदंबरम ने अपने पिता के ज़रिए INX मीडिया को विदेशी निवेश बोर्ड से विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाई थी। ऐसा करने से INX मीडिया को 305 करोड़ रुपए का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था। इस कड़ी में इस बात का ख़ुलासा भी हुआ था कि कार्ति ने ही INX मीडिया के प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी से पी. चिदंबरम की मुलाक़ात करवाई थी।
इसके अलावा चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के तार शारदा चिटफंड घोटाले से भी जुड़े पाए गए हैं। इसके लिए उनके ख़िलाफ़ सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी। सीबीआई का कहना था कि शारदा चिटफंड घोटाले में नलिनी चिदंबरम ने साल 2010 से 2012 के बीच 1.4 करोड़ रुपए लिए थे।
यूपीए सरकार में चौकीदार तो कोई था नहीं इसलिए उस समय के ‘चोरों’ को आज का पीएम रूपी चौकीदार तो खलेगा ही।
सर्कस और राजनीति को जोड़ना कितना न्यायसंगत
कॉन्ग्रेस की चिड़चिड़ाहट का कारण केवल और केवल पीएम मोदी हैं। यह चिड़चिड़ाहट और बौखलाहट किसी न किसी रूप में सामने आती रहती है। इस बार यह झुंझलाहट पी. चिदंबरम के रूप में सामने है। अपने आर्टिकल में उन्होंने बीजेपी की ख़िलाफ़त में वर्तमान शासन व्यवस्था को सर्कस का नाम दे डाला और कहा कि रिंगमास्टर (पीएम मोदी) हैं लेकिन शेर और बाघ तो हैं ही नहीं। रिंगमास्टर अपने चाबुक का इस्तेमाल केवल मेमनों और खरगोश पर कर रहा है। चिदंबरम की यह टिप्पणी बेहुदगी का प्रमाण है।
यूपीए की सरकार में कितने बाघ और चीते थे? इस बात का अंदाज़ा तो इसी बात से लग जाता है जब 2013 में कॉन्ग्रेस के राहुल गाँधी ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दागियों के चुनाव लड़ने संबंधी सरकारी अध्यादेश को सरासर बकवास करार दिया था और कह दिया था कि ऐसे अध्यादेश को फाड़कर फेंक देना चाहिए। जबकि यह अध्यादेश संसद में पास किया गया था और राहुल तब सिर्फ़ एक सांसद थे। इस बयान के बाद कई केंद्रीय मंत्रियों ने राहुल के ही सुर में सुर मिलाए थे, जबकि पहले वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाले में थे।
मनमोहन सिंह का नाम आते ही एक बात और याद आ जाती है, जब उन्होंने स्वीकारा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे अधिक सक्षम सेल्समैन, इवेंट मैनेजर और कम्यूनिकेटर हैं। सिंह द्वारा इस बात को सहर्ष स्वीकार कर लेना कॉन्ग्रेस पार्टी को उनकी नाक़ामयाबियों का दर्शन कराना था। हालाँकि यह सर्वविदित है कि बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी एक शांतचित्त और मौन धारण की छवि के लिए विख्यात थे। लंबे समय से प्रधानमंत्री पद पर रहने के बावजूद कुछ न कह पाना या हर मसले पर गाँधी परिवार का मुँह ताकना कितना कष्टकारी रहा होगा, इस बात का अंदाज़ा तो सत्ता से हटने के बाद उनके दिए गए इसी बयान से लगाया जा सकता है।
रोज़गार के नाम पर केंद्र को घेरने से पहले अपने समय को याद कर लेते तो यह सवाल ही न उठाते
अपने आर्टिकल में पी. चिदंबरम ने रोज़गार की बात उठाई जैसे उनके समय में रोज़गार का अंबार लगा हो। मोदी शासनकाल में कहीं भी रोज़गार को लेकर छंटनी का शोर नहीं सुना गया। कहीं नौकरी के लिए धरना-प्रदर्शन देखने को नहीं मिला जबकि यूपीए शासनकाल में एयर इंडिया के कर्मचारियों को हड़ताल करने तक की नौबत आ गई थी। इसी कड़ी में एयर लाइन के प्रबंधक ने 71 पायलटों को बर्खास्त कर दिया था जिसके बाद एयर इंडिया के पायलट भूख हड़ताल पर भी बैठ गए थे। तब देश के वित्त मंत्री चिदंबरम साहब का ध्यान इस ओर नहीं था क्योंकि उस समय वो ख़ुद पैसा बनाने में व्यस्त थे।
यूपीए की विफलताओं के तमाम कारणों में बेरोज़गारी सबसे अहम मुद्दा था, जिसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भी हुए। इसमें तत्कालीन सरकार (2011) को चेतावनी भरे लफ़्जों में कहा गया था कि अगर सरकार ने रोजगार नीति में सुधार नहीं किया तो भारत में मिश्र और लीबिया जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
किसानों को बरगलाना बंद करें, असलियत को स्वीकारें
पी. चिदंबरम ने अपने आर्टिकल के अंत में किसानों को टारगेट करके लिखा कि क्या केवल शेख़ी बघारने से किसानों की आय दोगुनी होगी। साथ ही किसानों की कर्ज़माफ़ी को भी मुद्दा बनाया। अब उन्हें कौन समझाए कि मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद किसानों की कर्ज़माफ़ी की घोषणा की गई। एमपी सरकार द्वारा की गई किसानों की कर्ज़माफ़ी की घोषणा किसी मज़ाक से कम नहीं थी, जब इस बात का ख़ुलासा हुआ कि कर्जमाफ़ी के नाम पर किसानों को मात्र 13 रुपए और 15 रुपए के चेक थमाए गए, इस पर शिवपाल नामक एक किसान ने कहा था, “सरकार कर्ज़ माफ़ कर रही है तो मेरा पूरा कर्ज़ माफ़ होना चाहिए, 13 रुपए की तो हम बीड़ी पी जाते हैं।” इसके अलावा कर्ज़माफ़ी के नाम पर फ़र्ज़ी पतों और मृतकों के नाम पर भी कर्ज़माफ़ी का ख़ुलासा हुआ। इससे आहत होकर किसानों ने सामूहिक आत्महत्या करने तक की चेतावनी दे दी थी।
चिदंबरम जी, मैं आपको बताना चाहुँगी कि वर्तमान सरकार ने किसानों के लिए जो किया, वो पहले की सरकारों ने कभी नहीं किया। इसका सबूत आप उन योजनाओं के ज़रिए से जान सकते हैं, जिनके माध्यम से मोदी सरकार ने गाँवों की न सिर्फ़ तस्वीर बदल दी बल्कि आम जन-जीवन की बुनियाद को भी मज़बूत किया।
आज का भारत नया भारत है, जिसमें ग्रामीण और शहरी दोनों का विकास शामिल है। आज जो तस्वीर भारत की है, उसमें भारत का सशक्त रूप उभर कर दुनिया के सामने है। वो अलग बात है कि जिसकी आदत ही बिना सिर-पैर की बात करना हो तो उसे कुछ नहीं दिखाई देगा। सच तो यह है कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई तब से गाँधी परिवार और उनके प्रियजनों का सुख-चैन-नींद सब स्वाहा हो गया है। इसी का परिणाम है पी. चिदंबरम का यह आर्टिकल, जिसमें उनकी बेचैनी स्पष्ट नज़र आ रही है।