भारत का समूचा विपक्ष वैसी ही वही बात कर रहा है, जैसा भाजपा चाहती है। फेक नैरेटिव बना-बना कर भाजपा और मोदी को घेरने वाले विपक्ष के पास मुद्दों के ऐसा अभाव हो गया है, जिस से उन्हें वही सूझता है जो भाजपा उन्हें दिखाती है। कुल मिला कर यह कि भारतीय जनता पार्टी मुद्दे सेट कर रही है कि किस बात पर उसे विरोध झेलना है। आज तक कुछ यूँ होता आ रहा था कि विपक्षी पार्टियाँ मुद्दे सेट करती थी और भाजपा उनका बचाव करते-करते परेशान रहती थी। लेकिन अमित शाह ने विपक्षी खेल को ताड़ कर उसे एक ऐसा मोड़ दिया है कि विपक्षी नेता उस जाल में उलझते जा रहे हैं। कुल मिला कर कह सकते हैं कि शाह ने एक ऐसा चक्रव्यूह रच दिया है, जिसके हर द्वार पर एक से बढ़ कर एक जाल हैं।
‘एयर स्ट्राइक’ के सबूत
पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान को उचित जवाब देकर राजग सरकार ने यह बता दिया कि भारत अब बदल चुका है और वह आतंकवाद पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई कर सकता है। ‘एयर स्ट्राइक’ तो हो गया लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हुई राजनीति से सतर्क भाजपा ने इस बार विपक्षियों की कुटिल चाल को पहले ही ताड़ लिया। अमित शाह को पता था कि भारत में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों का भी वोट बटोरने के लिए राजनीतिक इस्तेमाल करें। उन्हें यह भी अच्छी तरह पता है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर बढ़-चढ़ कर बोलने वाले नेताओं में से 90% को इसकी समझ ही नहीं होती। उदाहरण के लिए मायावती के ताज़ा बयान को ले लीजिए जिसमे उन्होंने पूछा था कि साढ़े चार वर्षों में एक भी राफेल विमान क्यों नहीं आया?
शाह जानते हैं कि जनता अब जागरूक हो चुकी है और सोशल मीडिया के युग में ऐसे बेहूदा बयान देने वाले नेताओं का ख़ुद इलाज हो जाता है। हुआ भी ऐसा ही। लोगों ने बहन जी को अच्छी तरह समझा दिया कि राफेल कोई हाथी की मूर्ति नहीं है जो एक ही दिन में बन कर तैयार हो जाए। भाजपा को अब ऐसे नेताओं का जवाब देने की ज़रूरत नहीं पड़ती। भाजपा को परेशानी तभी होती है जब ऐसे नेताओं के बयानों के साथ मीडिया का एक गिरोह विशेष खड़ा हो जाता है। इसी तरह अखिलेश यादव, फ़ारुख़ अब्दुल्ला सहित कई नेताओं ने एयर स्ट्राइक के सबूत माँगे। जैसे-जैसे उनके बयान आते गए, जनता की नज़र में वे उतने ही गिरते चले गए।
दरअसल, सबूत माँग-माँग कर इन नेताओं का लोकल मुद्दों से ध्यान ही भटक गया है। अखिलेश अब उत्तर प्रदेश के गाँव-कस्बों की बातें नहीं करते, वे अब एयर स्ट्राइक से लेकर राफेल तक की बात करते हैं। ममता बनर्जी बंगाल के बिना रह नहीं सकती, इसीलिए उन्होंने बंगाल को ही अखाड़ा बना डाला और वहाँ अपनी प्रधानमंत्री की मज़बूत दावेदारी पेश कर रैलियाँ कर रही हैं। अरविन्द केजरीवाल ने तो खैर कभी दिल्ली की बात की ही नहीं। तेजस्वी यादव अब सामान्य वर्ग के ग़रीबों को मिले आरक्षण के ख़िलाफ़ बोल कर अपना किला मज़बूत करना चाहते हैं। देवेगौड़ा को भी अब सीमा पर तनाव की चिंता सताती है। नायडू को मोदी के पिच पर खेलने दिल्ली आना पड़ता है।
लोकल मुद्दों से दूर होते विपक्षी नेता
इन सबसे क्या पता चलता है? अगर राजनीतिक विश्लेषक इन सभी घटनाओं और विपक्षी नेताओं के बयानों और प्रदर्शनों पर ध्यान दें तो वे पाएँगे कि अब सभी के सभी भाजपा के पिच पर खेल रहे हैं। इस से भाजपा को पहले तैयारी करने का मौक़ा मिल जाता है कि उसके नेताओं व प्रवक्ताओं को किस मुद्दा विशेष के लिए तैयार रहना है। किसानों के नाम पर राजनीति कर आगे बढ़ने वाला नेता पाकिस्तान की बात करे और दक्षिण भारत का कोई नेता यूपी में हुई घटना के लिए मोदी को घेरे तो पता चल जाता है कि भाजपा ने उन्हें उनके लोकल मुद्दों से काफ़ी दूर कर दिया है।
भाजपा को पता है कि मोदी की आज जो इमेज है, सबकुछ उसी पर टिका हुआ है। मोदी पर चौतरफा हमला कर के आज तक नेताओं को निराशा ही हाथ लगी है। सोनिया गाँधी के एक आपत्तिजनक टिप्पणी को मोदी ने गुजराती अस्मिता से जोड़ कर वहाँ का चुनाव जीत लिया था। विपक्षी नेताओं द्वारा मोदी को चौतरफा आक्रमण का केंद्र बना दिया गया है। भाजपा के लिए यह स्थिति पहले मुश्किल थी लेकिन अब यह ठीक प्रतीत हो रहा है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि भाजपा को पता चल गया है कि ऐसे बेहूदा बयानों से मोदी का कद बढ़ता है और उनका बाल भी बाँका नहीं होता। इसके उलट भाजपा के ज़मीनी व लोकल नेतृत्व को बिना कोई आक्रमण झेले ग्राउंड जीरो पर काम करने का मौक़ा मिल रहा है।
ग्राउंड जीरो पर कार्य कर रही भाजपा
भाजपा ने बिना हो-हल्ला के पीयूष गोयल को तमिलनाडु का प्रभारी बनाया और वे अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन फाइनल कर के आ गए। इसके उलट कॉन्ग्रेस को यूपी के महागठबंधन में साइड कर दिया गया और कॉन्ग्रेस ने दिल्ली में केजरीवाल को तन्हा कर दिया। चुनाव पूर्व गठबंधन बदलने-बिगड़ने के इस दौर में भाजपा ने बड़ी चालाकी से विपक्षी नेताओं को राष्ट्रीय मुद्दे पर बयान दिलवा दिलवा कर उन्हें जनता के आक्रोश के आवेश में फेंक दिया। जिस भी नेता का बेहूदा और बेतुका बयान आता है, सोशल मीडिया उसे लताड़ने में देर नहीं करता। वहीं अमित शाह राज्यों में घूम-घूम कर भाजपा का संगठन मज़बूत कर रहे हैं। पीएम मोदी रैलियाँ व बूथ कार्यक्रम कर जनता से सीधे जुड़ रहे हैं।
समय के साथ भाजपा की इस बदली रणनीति में विपक्षी नेता इतने मशगूल हो चुके हैं कि सबमे पीएम बनने की कहत दौड़ गई है। अपने-आप को सुपीरियर मान कर सभी अप्रत्यक्ष रूप से पीएम पद पर दावा ठोक रहे हैं। ये विपक्षी नेतागण जितना किसान,माध्यम वर्ग और ग़रीबों से जुड़े मुद्दों से दूर होकर राफेल, पाकिस्तान और 56 इंच की बातें करेंगे- भाजपा को उतना ही फ़ायदा मिलेगा। शाह का चक्रव्यूह अभी भी रचना के क्रम में है और फाइनल रणनीति तो चुनाव नज़दीक आने तक पता चल ही जाएगी।
नेता सबूत माँगते रहेंगे, भाजपा ज़मीन पर पैठ बनाती रहेगी। मोदी-शाह की जोड़ी ने सरकार और पार्टी को अलग-अलग फ्रंट पर खिला कर विपक्षियों को सम्मोहन के उस जाल में जकड़ लिया है, जहाँ उनकी कुटिलता का जनता यूँ हिसाब कर देती है। अभी देखते जाइए, कल फिर कोई नेता सबूत माँगेगा और उसके 2-3 दिन बाद उसीके इलाक़े में मोदी की रैली होगी। यानी भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू।