कल लेखकों के गिरोह द्वारा भारतियों से एक अपील की गई। जिसमें कहा गया कि ‘हेट पॉलिटिक्स’ फैलाने वालों को भारत की जनता इस बार सत्ता से वोट आउट कर दे। ये थोड़ा सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन ये सच है कि अब कुछ लेखकों द्वारा इस तरह के ‘जागरूकता अभियान’ भी चलाए जाने लगे हैं। हालाँकि अभी कुछ दिन पहले ये अपील 100 से ज्यादा फिल्ममेकर्स द्वारा भी की गई थी। लेकिन अब ये आवाज़ 200 लेखकों के बीच से उठी है। इन लेखकों में अरूंदती रॉय, अमिताव घोष, नयनतारा सहगल, टीएम कृष्णा जैसे बड़े नाम हैं।
आगामी लोकसभा चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए सोमवार (अप्रैल 1, 2019) को 200 भारतीय लेखकों द्वारा इस अपील को अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, उर्दू, बंग्ला, मलयालम, तमिल, कन्नड़, और तेलगु भाषाओं में निकाला गया। इस अपील में कहा गया कि ‘हेट पॉलिटिक्स’ को वोट आउट कर दिया जाए और ‘विभिन्न और समान भारत’ के लिए वोट किया जाए। हालाँकि इसमें ये कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया कि ‘विभिन्न और समान भारत’ को वोट करने से उनका अभिप्राय किस पार्टी को वोट देने से हैं। लेकिन हेट पॉलिटिक्स पर इस अपील में खुलकर बात हुई।
इस अपील में याद दिलाया गया कि हमारा संविधान नागरिकों को समान अधिकार देता है। चाहे फिर वो खाने का अधिकार को, इबादत का अधिकार हो, या फिर असहमति का अधिकार हो। लेखकों के इस गिरोह की यदि मानें तो पिछले कुछ वर्षों में समुदाय, जाति, लिंग और क्षेत्र विशेष के कारण नागरिकों के साथ मारपीट और भेदभाव हुआ है।
इनकी अपील के सार से अब तक आपको समझ आ चुका होगा कि लेखकों के इस विशेष समुदाय ने अपनी पूरी बात में सिर्फ़ भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। और इनके द्वारा ऐसा किया भी क्यों न जाए, आखिर इनकी विचारधारा और भाजपा की विचारधारा में जमीन आसमान का फर्क़ है। कम से कम भाजपा अपने एजेंडे को लेकर क्लियर तो हैं, लेकिन इनकी चाल ही दो-मुँहे साँप जैसी है। इनका आरोप है कि आज अगर कोई सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है तो उसे खतरा है कि कहीं वो झूठ और घटिया आरोपों में गिरफ्तार न कर लिया जाए।
इनका कहना है भारत को बाँटने के लिए नफरत की राजनीति यानि की हेट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल किया गया है। वामपंथी विचारधारा से लबरेज़ लेखकों द्वारा हेट पॉलिटिक्स पर इस तरह की अपील थोड़ी हैरान करने से ज्यादा हास्यास्पद मालूम होती हैं। केरल जैसे राज्य में जहाँ इसी विचारधारा के लोगों का शासन है, वहाँ आए दिन भाजपा/ आरएसएस के कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याओं की खबरें आती हैं। तब वहाँ हेट पॉलिटिक्स पर लेक्चर देना किसी से भी संभव नहीं हो पाता और न ही कोई अपील हो पाती है। 2012 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि केरल में सर्वाधिक 455.8 संज्ञेय अपराध दर्ज किए गए हैं। लेकिन फिर भी इनके लिए भाजपा ही हेट पॉलिटिक्स का पर्याय है।
इसके अलावा भाजपा नेतृत्व में महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों पर खतरे का हवाला देकर जनता से जिस तरह की अब अपील की जा रही हैं, उसको मद्देनज़र रखते हुए इन वामी गिरोह के लेखकों को याद दिलाना जरूरी है कि 2017 में नवभारत टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार पिछले एक दशक में केरल में बलात्कार के कुल 16,755 मामले सामने आए हैं। शायद अब ये संख्या और भी बढ़ गई है, लेकिन वहाँ की सरकार को वोट आउट करने की अपील एक भी बार इनमें से किसी भी बुद्धिजीवी से नहीं हुई क्योंकि वहाँ इन्हीं की विचारधारा का फैलाव है।
आज मंदिर जाने वाले लोगों पर, भगवा धारण करने वालों पर खूब सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन केरल के चर्च में ननों के साथ होते उत्पीड़न पर एक टक चुप्पी साध ली जाती है। आखिर क्यों? शायद सिर्फ़ इसलिए क्योंकि तथाकथित सेकुलरों/कम्यूनिस्टों का प्रश्रय पाकर व्यक्ति किसी भी अपराध को करने के लिए उपयुक्त हो जाता है।
इन पर सवाल उठाने का मतलब आज प्रत्यक्ष रूप से सिर्फ़ लोकतंत्र पर खतरा बन चुका है। यदि आज आप सनातन धर्म को छोड़कर किसी भी धर्म का पालन करते हैं, तो आपको इस गिरोह का सहारा भी प्राप्त होगा और सहानुभूति भी, लेकिन वहीं अगर आप हिंदू धर्म पर अपनी निष्ठा दिखाते हैं। तब आप घोषित रूप से हेट पॉलिटिक्स का समर्थन करने वाला चेहरा बनकर उभरेंगे।