भारत ने जिस तरह एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान में चल रहे आतंकियों के ट्रेनिंग कैंपों को ध्वस्त किया, उसके बाद ऐसा लग रहा था कि पाकिस्तान हमेशा के लिए ना सही, मगर कुछ समय के लिए तो आतंकियों की तरफदारी करना और सुरक्षा देना बंद कर देगा। एक तरफ पाकिस्तान जिनेवा कन्वेशन और भारतीय कूटनीति के दबाव में अभिनन्दन की रिहाई से दुनिया को यह दिखाने की नापाक कोशिश कर रहा है कि हम अमन पसंद देश हैं। यहाँ तक की इमरान खान ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में एक शानदार डायलाग मारा कि वो भारत से बात कर संवाद के माध्यम से मुद्दे सुलझाना चाहते हैं लेकिन उनकी हरकतें कुछ और ही कह रही हैं।
सब कुछ गिनाया जाए तो लिस्ट कुछ ज़्यादा ही लम्बी हो जाएगी फ़िलहाल बात करते हैं ताज़ा मामले से, पाकिस्तान ने एक बार फिर आतंकवाद का समर्थन किया है। हालाँकि यह पहली बार नहीं है। आतंकवाद और पाकिस्तान एक दूसरे के पर्याय ही बन चुके हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विदेशी मीडिया से कहा कि 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती आतंकी हमले के लिए जैश-ए-मोहम्मद जिम्मेदार नहीं है।
तो जनाब बता देते कि फिर जिम्मेदार कौन है? जब जैश ने खुद ज़िम्मेदारी ली और जैश का सरगना मसूद अज़हर कंधार विमान अपहरण के एवज में एक आतंकी के रूप में छोड़ा गया था तो अब क्या पाकिस्तान में जाकर वह मौलाना हो गया?
अब शांति का नया यमदूत पाकिस्तान खुद ही जैश की वक़ालत पर उतर आया है। तो उसकी कथनी और करनी पर शक क्यों न हो? आतंक के हमराही जनाब कुरैशी का कहना है, “इस हमले की जिम्मेदारी जैश ने नहीं ली है। इस मामले में कुछ कंफ्यूजन है।” बिलकुल आज तक पाकिस्तान कंफ्यूज ही है कि उसे बंदूकें बोनी है या फ़सल? आधुनिक शिक्षा और विज्ञान को बढ़ावा देना है या जेहादी दीनी तालीम? वास्तविक शांति चाहिए या मौत के बाद का सन्नाटा? मेरे ख़याल से पहले पाकिस्तान यह तय कर ले तो अच्छा होगा।
वैसे कुरैशी ने यह भी कहा है कि पाकिस्तान में मौजूद कुछ लोगों ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगनाओं से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस हमले की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। लो भाई भला चोर कब से स्वीकार करने लगा कि उसने चोरी की है? ख़ैर, यह पाकिस्तान का राष्ट्रीय चरित्र है, जो पाकिस्तान अपने F-16 पायलट की शहादत को नकार रहा है। जहाँ की जनता भी इतनी जेहादी है कि अपने ही पायलट को पीट-पीट कर मार डाले उससे भला मानवता की उम्मीद भी क्या की जाए?
अब पाकिस्तान के पलटू कुरैशी का कंफ्यूजन कैसे दूर किया जाए कि जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी पहले ही ले ली थी। यहाँ तक की उसने इसके लिए बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी।
पर पाकिस्तान तो पाकिस्तान है, आतंक की खेती से ही जिसका घर चलता हो, जहाँ जन्नत जाने की जेहादी ट्रेनिंग को तालीम कहा जाए, जहाँ आत्मघाती हमले खेल जैसे हों और मासूमों, निर्दोषों का खून बहाना ज़ेहाद समझा जाए। उसे भला पुलवामा हमले को अंजाम देने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का बहावलपुर स्थित मुख्यालय मदरसा जैसा क्यों न नज़र आए? पाकिस्तान ने तो उस टेरीरिस्तान को ख़ुद ही सर्टिफिकेट दे दिया है कि जैश के मुख्यालय का आतंकवाद से कोई भी नाता नहीं है।
पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने भी कहा, “बहावलपुर स्थित यह मस्जिद नुमा ट्रेनिंग कैंप, जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय नहीं है, बल्कि मदरसा है। भारत अपने प्रोपेगैंडा के तहत इसे जैश का मुख्यालय बता रहा है।”
मियाँ पाकिस्तान अब तुम बताओगे प्रोपेगंडा कौन कर रहा है? वैसे आपकी आतंकियों को दी गई सलाहितों, जेहादी कारनामे से दुनिया पहले से ही वाकिफ़ है। मियाँ जो पाकिस्तान, कारगिल के युद्ध में मारे गए अपने सैनिकों को भी अपना मानने से इनकार कर दे। और आतंकियों को शहीद का दर्ज़ा दे, उसे यह करतूत ही उसके राष्ट्रीय चरित्र को उजागर करती है।
कुछ दिन पहले जो आतंक पर कार्रवाई के नाम पर आतंकी संगठनों पर नियंत्रण करने का दिखावा कर रहा था आज वही शांति यमदूत पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को नियंत्रण में लेने वाले अपने दावे से भी मुकर गया है। सोशल मीडिया में जारी एक वीडियो संदेश में फवाद चौधरी ने कहा है कि पंजाब सरकार ने बहावलपुर स्थित मदरासतुल साबिर और जामा-ए-मस्जिद सुभानअल्लाह को प्रशासनिक नियंत्रण में लिया है। यह हमारे नेशनल एक्शन प्लान का हिस्सा है। दरअसल, पाकिस्तान इस तरह से इन आतंकी संगठनों और यहाँ के आकाओं को सुरक्षा प्रदान करने का राष्ट्रीय कार्य कर रहा है।
खैर, जिस पाकिस्तान में मसूद अज़हर, मुंबई आतंकी हमले का मास्टर माइंड हाफ़िज़ सईद, और यहाँ तक की दाऊद इब्राहिम भी पाकिस्तान के संरक्षण में आराम फ़रमा रहा हो। शाह महमूद कुरैशी ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में मान रहे हैं कि जैश का सरगना मौलाना मसूद अजहर पाकिस्तान में ही मौजूद है। लेकिन अब कुरैशी ने नया राग अलापना शुरू कर दिया है, “मौलाना मसूद अजहर बेहद बीमार है। उसकी बीमारी का आलम ये है कि वो अपने घर से निकल नहीं सकता है।”
पिछले दिनों रेडियो पाकिस्तान ने जिस प्रकार से आतंकियों को शहीद बताया, उससे साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान न तो सुधरने वाला है और न ही आतंकवादियों को लेकर अपनी नीतियों में कोई बदलाव लाने वाला है। बता दें कि रेडियो पाकिस्तान में प्रसारित किए गए बुलेटिन में कश्मीर में मारे गए आतंकवादियों को शहीद बताया गया।
इतना ही नहीं, कल जब कुपवाड़ा में भारतीय सेना द्वारा दो आतंकियों को मारा गया तो पाकिस्तान ने उसे भी शहीद करार दिया। कुपवाड़ा में हुए मुठभेड़ के बाद पाकिस्तान की तरफ से जिसे शहीद बताया जा रहा है वह असल में आतंकी थे।
एक कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। पाकिस्तान भी इतनी आसानी से मान जाए तो वह पाक न हो जाए! अब कल की ही बात लें पाकिस्तान सरकार ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का एक रिकॉर्डेड वीडियो रिहाई के जस्ट बाद रिलीज किया गया था। पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनंदन की सुपुर्दगी में अपेक्षित समय से काफी ज्यादा देर की थी। यहाँ तक कि पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र में विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अभिनंदन की रिहाई का जो वक़्त बताया था, उसके 6 घंटे बाद उनकी वापसी हुई। इस देरी की वजह यह प्रोपेगंडा वीडियो की रिकॉर्डिंग थी, जिसमें अभिनंदन से जबरन पाकिस्तानी सेना की तारीफ़ और भारतीय मीडिया की बुराई करवाई गई थी।
लगभग डेढ़ मिनट के इस वीडियो में 18 कट्स थे। इस वीडियो को हर पाक चैनल ने कई बार चलाया क्योंकि इससे वो अपने पक्ष में सकारात्मक माहौल बनाना चाहते थे। साथ ही जैसे ही पाकिस्तान ने सोशल मीडिया के जरिए इस वीडियो को घर घर तक पहुँचाने की सोची, उसकी चौतरफा आलोचना होने लगी। अंतरराष्ट्रीय संधि जिनेवा कन्वेशन का खुला उल्लंघन था यह। पाक जब इतने हाई प्रोफाइल मामले में ऐसी टुच्ची हरक़त कर सकता है तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वह अन्य भारतियों के साथ कैसी दरिंदगी होती होगी। सरबजीत और कुलभूषण यादव का मामला भी ज़्यादा पुराना नहीं है।
ख़ैर, अब पाकिस्तान का हर झूठ चीखने लगा है, विश्व बिरादरी में वह लगातार बेनक़ाब हो रहा है। जिस OIC ने 1969 भारतीय प्रतिनिधि को बुलाकर पाकिस्तान के विरोध के कारण बोलने का मौका नहीं दिया। इस बार उसी पाकिस्तान के विरोध को दरकिनार कर भारतीय विदेश मंत्री को OIC के मंच पर मुख्य अतिथि बनाया गया।
जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान, अलक़ायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झंग्वी, हिज़्ब-उल-मुज़ाहिदीन के अलावा और भी आतंकी संगठन है जो पाकिस्तान में जेहादी तंजीमों के सिपहसालार हैं पर पाकिस्तान की नज़र में यह सभी शांति के यमदूत हैं। पूरी दुनिया के मान और जान लेने के बाद भी वहाँ की सरकार सेना और ISI की कठपुतली होने का सबूत दे रही है, सिर्फ़ लफ्फबाजी से ख़ुद को शांति दूत का तमगा देना चाहती है, पर अब उसकी एक भी चाल क़ामयाब नहीं होने वाली, अब आने वाले समय में सबूतों और बतकही के खेल से भरोसा उठ चुका है।
देखना है आने वाले समय में पाकिस्तान का रवैया कैसा रहता है? क्या वह ख़ुद सुधरने की पहल करता है या उसे ज़बरदस्ती आत्मसुधार के रास्ते पर लाया जाता है।