Sunday, December 22, 2024
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जब घूम-घूम कर 700 पीड़ितों से मिल रहे थे विवेक अग्निहोत्री, तब कहाँ थे केजरीवाल? 15 फिल्मों का प्रचार किया, कश्मीरी पंडितों से दिक्कत क्यों?

YouTube की तो छोड़ ही दीजिए, वो तो राष्ट्रवादी आवाज़ों को दबाने में सबसे आगे रहा है। उसने रचित कौशिक के 'सब लोकतंत्र' नामक चैनल को बार-बार प्रतिबंधित कर के घृणा फैलाने का आरोप लगाया और उन्हें अपने प्लेटफॉर्म से दूर कर दिया। क्या गारंटी थी कि अगर YouTube पर 'The Kashmir Files' अपलोड भी हो जाती तो इस 3 साल की कड़ी मेहनत को वो हटाने में एक पल का भी वक्त नहीं लगाता? यही तो केजरीवाल जैसे लोग चाहते हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन पर बनी फिल्म ‘The Kashmir Files’ का मजाक बनाया। इसे दिल्ली में टैक्स फ्री किए जाने की माँग पर उन्होंने बचकानी बातें करते हुए पूछा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री इस फिल्म को YouTube पर क्यों नहीं डाल देते। वो किस हक़ से ऐसा बोल रहे हैं, ये तो पता नहीं। लेकिन, लोगों को पता होना चाहिए कि इस फिल्म को बनाने में निर्माता-निर्देशक को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।

The Kashmir Files: फिल्म के रास्ते में थीं चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ, तब कहाँ से अरविंद केजरीवाल?

पहली बात तो ये कि इस फिल्म को बनाने के लिए कोई निर्माता तैयार नहीं था। जहाँ इस्लामी कट्टरवादियों की सच्चाई दिखाई जा रही है, वहाँ मुस्लिमों को नाराज़ करने के लिए भला कोई क्यों पैसा लगाना चाहेगा? वो भी खासकर बॉलीवुड में, जहाँ हर फिल्म में मुल्ले-मौलवियों को सौम्य और ब्राह्मणों-महाजनों को खूब चूसने वाला बताया जाता है। ‘लाला मेरे हाथ के कंगन वापस दे दे’ वाली इंडस्ट्री ने कभी इस्लामी कट्टरवाद की निंदा की जहमत नहीं उठाई।

इस फिल्म को विवेक अग्निहोत्री की पत्नी पल्लवी जोशी के साथ-साथ हैदराबाद के अभिषेक अग्रवाल ने मिल कर प्रोड्यूस किया है। अभिषेक अग्रवाल ने जब सुना कि विवेक अग्निहोत्री इस तरह की कोई फिल्म बना रहे हैं, तो उन्होंने खुद उन्हें फोन कॉल कर के इसका निर्माता बनने की इच्छा जताई। कोई बड़ा सुपरस्टार वैसे भी इस फिल्म में काम करता नहीं। आमिर खान ‘पीके’ में भगवान शिव का मजाक बनाते हैं और शाहरुख़ खान ‘माय नेम इस खान’ जैसी फिल्मों के माध्यम से इस्लामी आतंक को व्हाइटवॉश करते हैं।

क्या तब अरविंद केजरीवाल इस फिल्म को बनाने में विवेक अग्निहोत्री की मदद करने गए थे? क्या उन्होंने इस फिल्म के लिए निर्माता खोज कर दिए? क्या उन्होंने बॉलीवुड के तथाकथित ए-लिस्टर सुपरस्टार्स को जाकर मनाया कि वो घाटी का सच्चा इतिहास दिखाने वाली इस फिल्म में काम करें? क्या उन्होंने कभी किसी कश्मीरी पंडित से उसका दुःख-दर्द जाना? फिर अब वो इस हक़ से इस फिल्म को मुफ्त में दिखाने की माँग कर रहे हैं?

YouTube की तो छोड़ ही दीजिए, वो तो राष्ट्रवादी आवाज़ों को दबाने में सबसे आगे रहा है। उसने रचित कौशिक के ‘सब लोकतंत्र’ नामक चैनल को बार-बार प्रतिबंधित कर के घृणा फैलाने का आरोप लगाया और उन्हें अपने प्लेटफॉर्म से दूर कर दिया। क्या गारंटी थी कि अगर YouTube पर ‘The Kashmir Files’ अपलोड भी हो जाती तो इस 3 साल की कड़ी मेहनत को वो हटाने में एक पल का भी वक्त नहीं लगाता? यही तो केजरीवाल जैसे लोग चाहते हैं।

YouTube तो छोड़िए, जरा अब धड़ाधड़ हिन्दुओं को बदनाम करने वाले वेब सीरीज रिलीज कर रहे OTT प्लेटफॉर्म्स की बात कर लेते हैं। अग्निहोत्री ने हाल ही में बताया था कि एक बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म ने द कश्मीर फाइल्स को रिलीज करने के लिए साल 2020 में उनसे संपर्क किया था। यह तब की बात है जब वैश्विक कोरोना संक्रमण की वजह से सिनेमाघर पूरी तरह बंद थे। बड़े निर्माताओं को भी फिल्म रिलीज करने के लिए नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, हॉटस्टार, सोनी लीव और जी फाइव जैसे ओटीटी मंचों का सहारा लेना पड़ा था।

 जब ओटीटी प्लेटफॉर्म के प्रमुख ने उनसे पूछा कि क्या फिल्म में आतंकवाद को लेकर किसी विशेषण का इस्तेमाल किया गया है तो वे चकित रह गए। विवेक के अनुसार प्लेटफॉर्म के मुखिया का कहना था कि वे फिल्म में इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते। उनसे स्पष्ट शब्दों में कहा गया, “हमारी एक वैश्विक नीति है कि हम अपनी किसी भी फिल्म में इस्लामिक आतंकवाद शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं। मुझे आशा है कि आप इसका उपयोग नहीं कर रहे हैं।” जबकि उस समय कश्मीर में हत्यारे केवल इस्लामी नारे ही लगा रहे थे

क्या तब अरविंद केजरीवाल ने किसी OTT प्लेटफॉर्म से जाकर कहा कि वो ‘इस्लामी आतंकवाद’ की सच्चाई पर आपत्ति न जताए और ‘The Kashmir Files’ को रिलीज होने दे। अगर नहीं, तो अब वो कैसे आ गए? कहाँ से आ गए? रिलीज के समय इस फिल्म को मात्र 600 स्क्रीन्स मिले थे। तब देश की जनता थी, जिसने फिल्म को इसके साढ़े 5 गुना स्क्रीन्स दिलवाए। तब तो अरविंद केजरीवाल ने थिएटरों से ये नहीं कहा कि ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का वो गला न घोटें और इस फिल्म को रिलीज करें?

अब जब फिल्म ने दुनिया भर में सवा 200 करोड़ रुपए से भी अधिक का कारोबार कर लिया है, इसकी स्क्रीन्स की संख्या 3250 हो गई है और रोज 6000 शोज तीसरे हफ्ते में भी चल रहे हैं – तब अरविंद केजरीवाल जैसे लोग बाहर निकल आए हैं और जनभावनाओं के साथ-साथ कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का भी मजाक उड़ा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा में इस पर हँसी-ठिठोली कर रहे हैं। ये संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।

जब फ़िल्में पर फ़िल्में देख रहे थे अरविंद केजरीवाल, कई फिल्मों को किया टैक्स फ्री

और अरविंद केजरीवाल खुद तो फिल्मों के इतने बड़े समर्थक रहे हैं। उन्होंने कबीर खान द्वारा निर्देशित रणवीर सिंह की ’83’ को हाल ही में दिल्ली में टैक्स फ्री किया था, जिसमें पाकिस्तानी फ़ौज का महिमामंडन किया गया था। जुलाई 2016 में उन्होंने ‘मदारी’ फिल्म लोगों को देखने की सलाह देते हुए इरफ़ान खान के लिए ‘छा गए’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया था। अक्टूबर 2014 में उन्होंने परिवार के साथ हृतिक रौशन की ‘बैंग बैंग’ देखी थी और बताया था कि बच्चों को ये खासी पसंद आई।

उन्होंने तब इस फिल्म के संगीतकार विशाल डडलानी को बधाई भी दी थी। AAP का हिस्सा रहे विशाल डडलानी ने पार्टी के लिए कई चुनावों में प्रचार भी किया था। अप्रैल 2016 में उन्होंने स्वरा भास्कर की ‘नील बटे सन्नाटा’ को दिल्ली में टैक्स फ्री किया था। जुलाई 2017 में उन्होंने श्रीदेवी की ‘मॉम’ की तारीफ़ की थी। अगस्त 2013 में उन्हें प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’ पसंद आई थी। प्रकाश झा लोजपा और जदयू से चुनाव भी हार चुके हैं।

इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल ने जुलाई 2015 में ‘मसान’ फिल्म को ‘मस्ट वॉच’ बताया था। उससे पहले उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाने वाली आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ की तारीफ़ करते हुए उन्होंने कहा था कि इसमें एक नाजुक विषय को सटीक तरीके से दिखाया गया है। नवंबर 2015 में उन्हें ‘वंस अपॉन अ टाइम इन बिहार’ पसंद आ गई थी। अक्टूबर 2017 में उन्हें आमिर खान की ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ भी अच्छी लगी थी।

उन्होंने फराह खान के पति शिरीष कुंदर की ‘कीर्ति’ को काफी रोचक फिल्म करार दिया था। ये बात जून 2016 की है। सोनम कपूर की ‘नीरजा’ को उन्होंने फरवरी 2016 में काफी प्रेरक फिल्म करार दिया था। इसी तरह तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘साँड़ की आँख’ को उन्होंने अक्टूबर 2019 में दिल्ली में टैक्स फ्री घोषित कर दिया था। उन्होंने कहा था कि सभी लोगों तक ये फिल्म पहुँचनी चाहिए। क्या उन्होंने कभी पूछा कि निशानेबाजी पर बनी इस फिल्म से निशानेबाजों को कितने रुपए की मदद की गई?

अरविंद केजरीवाल को याद करना चाहिए कि कैसे उन्होंने मार्च 2015 में अक्षय कुमार की ‘गब्बर इज बैक’ देखी थी और लोगों को भी देखने की सलाह दी थी। मार्च 2018 में उन्होंने ‘हमने गाँधी को क्यों मारा’ देखी थी और साथ ही इसे आज के समय में प्रासंगिक भी बताया था। जून 2016 में शाहिद कपूर की ‘उड़ता पंजाब’ देख कर उन्होंने वहाँ की स्थिति को काफी खराब बताया था। फिर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार पर बनी फिल्म से उन्हें क्या दिक्कत है?

भाजपा विरोधी गिरोह को क्या सता रहा है डर

सभी भाजपा शासित राज्यों ने ‘The Kashmir Files’ को अपने-अपने राज्यों में टैक्स फ्री घोषित कर दिया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो एक संग्रहालय भी बनाने की घोषणा की है, जहाँ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार के बारे में लोगों को बताया जाएगा। केंद्र सरकार लगातार कश्मीर में आतंकवाद को ख़त्म करने और हिन्दुओं के पुनर्वास में लगी है। जबकि कॉन्ग्रेस जैसी पार्टियाँ इस फिल्म के विरोध में हैं।

अब उन्हें डर सता रहा है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ की बंपर कमाई के बाद इस पैसे से और भी फाइल्स खुलेंगी, जिससे उनकी भी पोल खुलेगी। केरल में मोपला से लेकर बंगाल में हिन्दुओं के नरसंहार तक, दर्जनों ऐसे अनछुए संवेदनशील मुद्दे हैं जिनके बारे में देश के लोगों को भनक तक नहीं है। जैसे-जैसे ये कारस्तानियाँ सामने आती जाएँगी और सही इतिहास खलता जाएगा, जनता की नजरों में कुछ नेता गिरते जाएँगे। उन्हें दिक्कत फिल्म से नहीं, इसकी कमाई से है।

हाल ही में विवेक अग्निहोत्री के दफ्तर में उनकी अनुपस्थिति में बदमाशों ने घुस कर मारपीट की। केंद्र सरकार को उन्हें सुरक्षा देनी पड़ी है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाने के लिए भारत से अमेरिका तक उन्होंने 700 पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर उनका दुःख-दर्द और अनुभव को रिकॉर्ड किया। अनुपम खेर ने बताया था कि उस दौरान वो अमेरिका में उनसे मिले भी थे। क्या इस मेहनत को पैसों से तौला जा सकता है? फिर भी कितनी आसानी से अरविंद केजरीवाल ने कह दिया कि फिल्म को यूट्यूब पर डाल दो!

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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