असदुद्दीन ओवैसी ने हमेशा अपनी योग्यता का इस्तेमाल उन लोगों पर हमला करने के लिए किया, जो उनके इस्लामी राजनीति पर सवाल उठाते रहे और उनकी आलोचना करते रहे हैं। वह अक्सर कहते हैं कि उन्होंने जिन्ना के पाकिस्तान या दो-राष्ट्र के सिद्धांत को खारिज कर दिया। यह भी कहा कि उन्हें हमेशा भारतीय मुसलमानों पर गर्व है। यह बयान सबसे अधिक बार तब दिया जाता है कि जब ओवैसी देश में मुस्लिमों के लिए विशेषाधिकार की माँग कर रहे हों या यह साबित करने के लिए कि मुस्लिम समुदाय धर्मनिरपेक्ष है जबकि हिंदुत्व के अनुयायी सांप्रदायिक हैं।
AIMIM प्रमुख औवेसी ने उत्तर प्रदेश के मुसलमानों पर अत्याचार का आरोप लगाने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा एक फर्जी वीडियो साझा करने के बाद फिर से यह टिप्पणी की। ओवैसी ने कहा, “हमें भारतीय मुसलमानों पर गर्व है और इंशाल्लाह, फैसले के दिन तक, भारतीय मुसलमानों पर गर्व रहेगा।” हालाँकि, ओवैसी के शब्दों पर यकीन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर उनके भाई ने एक बार माँग की थी कि देश में 15 मिनट के लिए पुलिस को हटा दिया जाए ताकि मुसलमान हिंदुओं को दिखा सकें कि कौन असली बॉस है। हालाँकि उनके इस बयान को लेकर उन्हें किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं झेलनी पड़ी।
Imran Khan, stop worrying about Indian Muslims. We rejected Jinnah’s two-nation theory.
— AIMIM (@aimim_national) January 4, 2020
We are proud Indian Muslims and, Inshallah, till the day of judgement, will remain as proud Indian Muslims. – @asadowaisi pic.twitter.com/7aXmauh51l
दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर चुने गए मोदी। और उसके बाद ऐसे बयानों की मानो हवा निकल गई। चूँकि हम अकबरुद्दीन ओवैसी के उस विवादास्पद बयान को गंभीरता से नहीं लेते, इसलिए हमें बड़े ओवैसी मतलब असदुद्दीन ओवैसी को भी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। ऐसे में हमें खुद से सवाल करना होगा कि क्या वह वास्तव में सच बोल रहे हैं?
हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी झूठ बोल रहे हैं, जब वह कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने दो-राष्ट्र सिद्धांत और जिन्ना को खारिज कर दिया था। जबकि ऐसे बहुत से भारतीय मुसलमान हैं, जिन्होंने पाकिस्तान को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि असदुद्दीन ओवैसी के परिवार ने आज तक पाकिस्तान को अस्वीकार नहीं किया। वास्तव में, वह एक ऐसे परिवार से आते हैं जिनके नाम स्वतंत्र भारत के इतिहास में सांप्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता का सबसे खराब रिकॉर्ड रहा हो।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) एक रजाकारों की विरासत है। एक जिहादी आतंकी समूह, जिसने निजाम के राज्य में हिंदुओं के खिलाफ अनगिनत अत्याचार किए। जिसे भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल द्वारा कुचल दिया गया था। वर्ष 1927 में स्थापित मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन निज़ाम समर्थक पार्टी थी। जो कि निज़ाम के हैदराबाद को पूरी तरह से भारतीय संघ में विलय नहीं करना चाहती थी।
अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एमआईएम के कासिम रिज़वी ने नेतृत्व वाले रजाकारों को बुलवाया। दरअसल रजाकार मूल रूप से जिहादी भीड़ थी, जिसे एमआईएम ने सड़कों पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए इस्तेमाल किया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र रहे रिजवी को वर्ष 1946 में एमआईएम का अध्यक्ष चुना गया था, जिसने रजाकारों का नेतृत्व किया था। तब उसने इस क्षेत्र में हिंदुओं के खिलाफ सबसे जघन्य अपराध किए थे। यहाँ तक कि रजाकारों ने महिलाओं और बच्चों के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार किए, हिंदुओं का उत्पीड़न किया और हिंदुओं की हत्याएं कीं। लेकिन जल्द ही सरदार पटेल ने सामने आकर इस पागलपन का अंत कर दिया। उन्होंने निज़ाम को घुटने के बल लाया और उसे भारतीय संघ में प्रवेश करने के लिए मजबूर कर दिया। ऑपरेशन पोलो भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था, जिससे रजाकार भारतीय सेना से दंग थे। यही कारण था कि उन्होंने विनम्रतापूर्वक आत्मसमर्पण कर दिया। जिसके बाद निजाम के मंत्री लईक अली और कासिम रिज़वी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जिसके चलते रिजवी ने आखिरकार नौ साल की जेल की सजा काटी और फिर उसे इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह पाकिस्तान के लिए रवाना हो जाएगा। जिसे उसने पूरा किया।
हालाँकि, पाकिस्तान जाने से पूर्व एमआईएम की एक बैठक में रिजवी ने एमआईएम के नेतृत्व को असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी को पार्टी का पुनरुद्धार करने के लिए सौंप दिया। जिसके बाद एमआईएम ने अखिल भारतीय एमआईएम के रूप में खुद को फिर से चुना और चुनाव लड़ने के लिए खुद को आगे बढ़ाया। इस प्रकार साफ तौर पर असदुद्दीन ओवैसी के परिवार को एआईएमआईएम के नेतृत्व में एक नरसंहारकारी व्यक्ति द्वारा सौंपा गया था। जो चाहता था कि हैदराबाद या तो स्वतंत्र रहे या पाकिस्तान में मिल जाए।
रजाकार और एमआईएम को केवल भारतीय सेना और भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल की इच्छाशक्ति के कारण अपने पागलपन को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। असदुद्दीन ओवैसी ने यह दावा करने के लिए कि उनके पूर्वजों ने पाकिस्तान को खारिज कर दिया है और दो-राष्ट्र सिद्धांत की थ्योरी को खारिज कर दिया है तो यह बिल्कुल झूठ है। इसके अलावा उनके दादा साफ तौर पर नरसंहार के एक सहयोगी थे। जिन्होंने रजाकारों का नेतृत्व किया, जबकि उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों की मेजबानी की। इसके अलावा उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी के आचरण से साबित होता है कि रजाकारों के समय से उनकी विचारधारा में कोई ख़ास बदलाब नहीं आया है। यह तो केवल उनकी रणनीति है जो कुछ बदल गई है।
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