Sunday, November 17, 2024
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1 साल में बढ़े 80 हजार वोटर, जिनमें 70 हजार का मजहब ‘इस्लाम’, क्या याद है आपको मंगलदोई? डेमोग्राफी चेंज के खिलाफ असम के CM ने यूँ ही नहीं किया है शंखनाद

असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने यह भी बताया कि कैसे बांग्लादेश और पड़ोसी देशों से आए प्रवासी यहाँ तेजी से बढ़ रहे हैं और इनके कारण उन संसाधनो पर दबाव पड़ रहा है जो हकीकत में असम की मूल जनता के लिए होने चाहिए।

बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती तादाद को नकारना देश के लिए खतरे से कम नहीं है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा लगातार इसके खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही हाल रहा तो 2044 तक राज्य इस्लाम बहुल हो जाएगा। मुख्यमंत्री बिस्वा की ये चेतावनियाँ निराधार कतई नहीं है। उन्हें अपने राज्य के हालात मालूम हैं… इसी राज्य ने 1977 और 1978 के बीच में बांग्लादेशियों की ऐसी घुसपैठ कराई गई थी जिसे देख हर कोई सन्न रह गया था।

किसी को समझ नहीं आया था कि एक साल में एक ही राज्य की एक लोकसभा सीट पर 80000 वोटर कैसे बढ़े। तमाम शिकायतें हुई। सवाल उठे। तब समझ आया कि ये अचानक हुई वृद्धि बांग्लादेश से हुई घुसपैठ का नतीजा है।

असम में एक साल में बढ़े 80 हजार वोट

दरअसल, साल 1977 जब इमरजेंसी के बाद पहली बार चुनाव हुए तो 14 सीटों में 3 सीट जनता पार्टी के हिस्से आई। इनमें एक सीट मंगलदोई की थी जिसे हीरा लाल (तिवारी) ने जीता था। जानकारी मिलती है कि इन चुनावों तक मंगलदोई में 5,60, 297 मतदाता थे। हालाँकि एक साल बाद जब हीरा लाल का निधन हो गया तो उपचुनाव कराए गया और एक साल से थोड़े से अधिक समय में वोटर लिस्ट) अपडेट की गई तो मतदाताओं की यह संख्या 80,000 बढ़ गई थी! इनमें से लगभग 70,000 मतदाताओं का मजहब इस्लाम था।

साभार: द लास्ट बैटल आफ सरायघाट

अजीत झा अपनी रिपोर्ट में ‘द लास्ट बैटल ऑफ सरायघाट’ किताब से इस घुसपैठ की जानकारी देते हैं। किताब में लिखा है अचानक इलाके में लोगों की संख्या ये जो 15% का इजाफा हुआ था उसे मंगलदोई में कॉन्ग्रेस ने इंपोर्ट किया था। आम नागरिकों ने इनके खिलाफ शिकायत भी दी थी। बाद में 70 हजार में से केवल 26900 ही टिक पाए थे। बाकी सब अवैध घुसपैठिए साबित हुए थे।

1977 से लेकर 2024 में हालात बदले नहीं हैं बल्कि और भयावह हुए हैं। असम मुख्यमंत्री जो खुद इस्लामी कट्टरपंथ और बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ सक्रिय होकर काम कर रहे हैं वो न्यूज चैनल से बातचीत में राज्य की स्थिति को स्वीकार रहे हैं। वो स्पष्ट कहते हैं कि 2044 तक अनुमान है असम मुस्लिम बहुल हो जाएगा जबकि बंगाल 2051 तक।

असम मुख्यमंत्री हालातों पर चिंता जताते हुए कहते हैं जिस तरह से असम में हिंदू आबादी के मुकाबले मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, उसे देखते हुए लग रहा है कि 20 साल बाद राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या 50 फीसदी हो जाएगी। इसके साथ ही असम जम्मू-कश्मीर के बाद देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला दूसरा राज्य बन जाएगा।

उन्होंने अपनी बात रखते हुए असम के उन इलाकों का उदाहरण दिया जहाँ मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ती जा रही हैं। इन इलाकों में एक धुबरी इलाका भी है जहाँ की मुस्लिम आबादी 85 फीसद पहुँच गई है। वहीं पूरे राज्य की बात करे तो राज्य में मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत तक पहुँच गई है। जिन्हें ऐसा लगता है कि ये संख्या कम है या फिर सामान्य है उन्हें जानना जरूरी है कि इसी असम में 1951 तक मुस्लिमों की संख्या केवल 12 फीसद थी।

सीएम सरमा इस जनसांख्यिकी बदलाव को राजनैतिक मुद्दा नहीं, जीवन और मृत्यु का मामला बताते हैं। वो बताते हैं कि राज्य में हिंदू बहुल इलाके धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल हो रहे हैं। वहीं असम के सीएम ने यह भी बताया कि कैसे बांग्लादेश और पड़ोसी देशों से आए प्रवासी यहाँ तेजी से बढ़ रहे हैं और इनके कारण उन संसाधनो पर दबाव पड़ रहा है जो हकीकत में असम की मूल जनता के लिए होने चाहिए।

1978 से उठ रहा घुसपैठ का मुद्दा

असम में हो रहे ये जनसांख्यिकी बदलाव को लेकर चिंता 1977-78 के बाद से अब तक मे कई बार उठाई जा चुकी है। साल 1988 में असम के राज्यपाल एसके सिन्हा ने तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण को पत्र लिखकर असम में हो रही अवैध घुसपैठ के मुद्दे की रिपोर्ट दी थी। पत्र में बांग्लादेशियों की बढ़ती तादाद और जनसांख्यिकी में होते बदलाव की ओर ध्यान दिलाया गया था। पत्र में कहा गया था कि ये बदलाव असमिया लोगों की पहचान और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए गंभीरता खतरा है।

2004 में, भारत के गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने भारतीय संसद में कहा था कि, 31 दिसंबर 2001 तक देश में 12 मिलियन अवैध बांग्लादेशी थे, जिनमें से 5 मिलियन असम में थे। वहीं साल 2010 में मनोहर पार्रिकर रक्षा अध्य्यन एवं विश्लेषण संस्थान पर प्रकाशित रिपोर्ट में भी इस मुद्दे को उठाया गया था। नम्रता गोस्वामी की रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे असम राज्य को अवैध प्रवासियों का मुद्दा दशकों से परेशान कर रहा है। वहीं असमिया लोगों को चिंता यह है कि इस तरह की घुसपैठ कैसे उनके जीवन जीने के तरीके को प्रभावित करेगी।

अब इन्हीं लोगों की तरह हिमंता बिस्वा सरमा ने भी तथ्यों को आधार बनाते हुए अपनी चिंता को जाहिर किया है। लेकिन कुछ लोग इस पर भी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर उन्होंने ऐसा मुद्दा छेड़ा ही क्यों। इस पर हिमंता सरमा कहते हैं कि उन्होंने जो भी कहा है वो तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर कहा है। अगर किसी को उन्हें झूठा साबित करना है तो तथ्यों को गलत बता सकता है, लेकिन इस सच को नहीं पलटा जा सकता कि राज्य में मुस्लिम बढ़ रहे हैं। उन्होंने अपने राज्य के साथ-साथ बंगाल और झारखंड में भी मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है।

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