बेंगलुरु पुलिस ने एक महिला सहित बलात्कार के पाँच आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के अनुसार सारे आरोपी बांग्लादेशी हैं। इस अपराध की फिल्म इंटरनेट पर वायरल होने की वजह से इसकी चर्चा सोशल मीडिया पर बहुत रही। गिरफ्तारी से पहले तक अपराध की जगह और पीड़िता की पहचान को लेकर भी कायस लगे।
कई लोगों ने अनुमान लगाने की कोशिश की कि वो कौन हैं और कहाँ की हैं। चूँकि कुछ लोगों ने यह कयास भी लगाए कि पीड़िता शायद उत्तर-पूर्व से थी इसलिए असम पुलिस के साथ केंद्रीय मंत्री किरण रिजुजू ने भी ट्वीट किया। पर इसमें जो सबसे चिंताजनक बात लगी वह थी बलात्कार को फिल्माना और उसका इंटरनेट पर वायरल होना।
वैसे तो गुनी लोग अपराध के क्लिप के वायरल होने का बचाव यह कहकर भी कर सकते हैं कि उसी की वजह से अपराधियों की पहचान हो पाई हो, पर अपराधियों का यह विश्वास कि खुद के द्वारा किए जा रहे अपराध को न केवल फिल्म किया जा सकता है पर उसे औरों को दिखाया जा सकता है, वर्तमान सामाजिक सोच और कानून व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल है।
ऐसा नहीं कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को खुद अपराधियों ने पहली बार फिल्माया हो, चिंताजनक बात यह है कि भारत में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशी किस निडरता से ऐसे अपराध को अंजाम दे रहे हैं। मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री और बुद्धिजीवी अपने स्तर पर यह तर्क दे सकते हैं कि बलात्कार जैसा अपराध तो भारतीय नागरिक भी करते हैं पर यह भी सच है कि आधुनिक वैश्विक समाज में किसी देश में अवैध तरीके से रहने वाले बाहरी लोग अधिकतर अपराध करते पाए जाते हैं।
कोई इस बात को नकार नहीं सकता कि किसी देश में अवैध तरीके से रहने की शुरुआत ही अवैध तरीके से घुसने से होती है और ऐसा करना अपराध है।
किसी बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री या मनोवैज्ञानिक के इस तर्क की एक एक सीमा है कि अपराध तो कोई भी कर सकता है। यह स्वीकार्य है कि अपराध तो कोई भी सकता है पर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि समाज और सामाजिक संरचना का ज्ञान भी व्यक्तियों को अपराध करने से रोकता है।
किसी समाज से लम्बे समय तक जुड़े रहना और उस समाज की समझ यह बात तय करती है कि अपराध जैसे विषय को लेकर उस समाज के किसी व्यक्ति की सोच कैसी है? यदि वह अपराध करेगा तो किस सीमा तक जा सकता है। उसे यदि स्थानीय सामाजिक संरचना और सभ्यता की जानकारी है तो उसे पता रहेगा कि वह क्या-क्या नहीं कर सकता। यह बात भारतीय नागरिक पर तो लागू हो सकती पर उस व्यक्ति पर कैसे लागू होगी, जिसे स्थानीय समाज की समझ ही नहीं है?
बंगलुरु में हुए बलात्कार के इस अपराध को ही देख लें। पीड़िता को जिस तरह से प्रताड़ित किया गया, वह क्या बलात्कार के हर अपराध में होता है? उसके ऊपर इन अपराधियों का यह मानना कि उन्होंने जो भी किया वे वैसा कर सकते हैं, हमारी सरकारों, समाज और सामाजिक व्यवस्था के लिए अपने आप में खतरे की घंटी है।
यह तथ्य कि गिरफ्तार किए गए सारे अपराधी बांग्लादेशी हैं, अपने आप में बहुत बड़ा सबूत है कि देश में अवैध तरीके से घुसे बांग्लादेशी अब केवल असम और पश्चिम बंगाल की सीमा में नहीं रहते। वे भारत भर में फैले हैं और किसी न किसी रूप में हमारी अर्थ्यव्यवस्था से लेकर सामाजिक संतुलन तक बिगाड़ रहे हैं।
यदि जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो जो लोग कल तक केवल बंगाल की राजनीति प्रभावित करते थे, आज बिहार और झारखंड की राजनीति प्रभावित करते हैं, वही लोग कल उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तथा परसों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की राजनीति प्रभावित करेंगे।
कई राज्यों के तमाम जिलों ने पिछले चार दशकों में डेमोग्राफी को केवल बदलते ही नहीं देखा, किसी न किसी तरीके से महसूस भी किया है। इसी का परिणाम है कि कुछ राज्यों में राजनीति और राजनीतिक संघर्ष अब केवल सत्ता की लड़ाई के बारे में नहीं रहा बल्कि यह अब सभ्यता, संस्कृति और उसकी रक्षा की लड़ाई के बारे में है।
हम अब यह अफोर्ड नहीं कर सकते कि एनआरसी या सम्बंधित कानूनों पर चर्चा केवल नारों और वादों तक सीमित रहे। हम यह भी अफोर्ड नहीं कर सकते कि ऐसे कानूनों पर चर्चा केवल चुनाव के समय हों।
राज्य सरकारों में बैठे राजनीतिक दल यदि अड़चन डालते हैं तो उस पर बहस और सम्बंधित कार्यवाई की जिम्मेदारी उन पर है, जो सभ्यता की लड़ाई लड़ना चाहते हैं या जिन्हें यह लगता है कि कुछ राजनीतिक लड़ाइयाँ मात्र सत्ता के बारे में नहीं हैं।
इतिहास से सीखने का दावा करने वालों के लिए आवश्यक है कि वे अपनी जिम्मेदारियों को केवल समझें ही नहीं, उन्हें भी समझाएँ जिनके लिए वे लड़ना चाहते हैं। केवल अच्छा ध्येय किसी लड़ाई की शुरुआत करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह राजनीतिक दलों या उनकी विचारधारा से अधिक भारतवर्ष के बारे में है।