सोमवार (अप्रैल 6, 2020) को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के 40 वर्ष पूरे हो गए। भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ ने 1977 लोकसभा चुनाव जनता पार्टी समूह के अंतर्गत लड़ा था। हालाँकि, दोनों के बीच कोई आधिकारिक विलय नहीं हुआ था। जनता पार्टी ने 405 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 299 जीत कर उसने इतिहास रच दिया और 93 सीटों के साथ जनसंघ इसकी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। लेकिन, इसके नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी ने कभी भी प्रधानमंत्री बनने की अभिलाषा नहीं जताई।
जनसंघ के लिए राष्ट्रहित पहली प्राथमिकता थी, इसीलिए उसने इस गुट की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद पीएम पद की लालसा नहीं रखी और निःस्वार्थ भाव से जनता पार्टी एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बनी। यही संस्करण है, जिसका अनुसरण करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘राष्ट्र प्रथम’ का नारा देते हुए पार्टी और देश का नेतृत्व किया, कर रहे हैं। 1977 में जनता पार्टी वाला एक्सपेरिमेंट चौधरी चरण सिंह व अन्य नेताओं की पीएम बनने की लालसा के कारण असफल रहा। 1980 के चुनाव में जनता पार्टी मात्र 31 सीटों पर सिमट गई लेकिन जनसंघ फिर भी लगभग आधी यानी 15 सीटें जीत कर इस गुट का सबसे बड़ा दल बना।
1977 और 1980 के चुनावों में जनसंघ के अच्छे प्रदर्शन के बाद जनता पार्टी के ही कुछ नेताओं में असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया। वो ‘दोहरी सदस्यता’ का मुद्दा उठाने लगे और कहने लगे कि जनता पार्टी का कोई सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य नहीं हो सकता। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने ज़रूर जनसंघ के नेताओं को पार्टी में बनाए रखने के लिए मेहनत की लेकिन अप्रैल 4, 1980 को जनता पार्टी की एग्जीक्यूटिव कमिटी ने जनसंघ के सभी नेताओं को जनता पार्टी से निलंबित कर दिया। हालाँकि, ये वाजपेयी, अडवाणी जैसे कद के नेताओं और उनके अनुयायियों के लिए झटका भी रहा, और इससे राहत भी मिली।
ये झटका इसीलिए था क्योंकि 1977 में जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर जनसंघ ने बाकी सारी चीजों को पीछे रखते हुए जनता पार्टी का हिस्सा बनना स्वीकार किया था, ताकि देश को एक नया और मजबूत राजनीतिक विकल्प मिले। ये राहत इसलिए था क्योंकि उन्हें लगातार दबाव के बाद वहाँ से छुटकारा मिल गया। अप्रैल 5-6, 1980 को जनसंघ के नेताओं ने दिल्ली में दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान नई भारतीय जनता पार्टी बनाने का निर्णय लिया और अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य बने। इस तरह एक नई पार्टी देश को मिली और वाजपेयी एक सर्वमान्य नेता बन कर उभरे।
वाजपेयी ने उस दौरान अपने सम्बोधन में कहा कि अब जब हम पार्टी को फिर से नवनिर्माण कर के एक नया अध्याय शुरू कर रहे हैं, हमें भूत नहीं बल्कि भविष्य की तरफ़ देखने की ज़रूरत है। उन्होंने आह्वान किया कि अब हमें अपने वास्तविक सिद्धांतों और सोच को स्थापित करने की दिशा में पूरी मजबूती के साथ बढ़ना होगा। हिंदी में भाषण देने वाले वाजपेयी के सम्बोधन ने सबको उनका कायल बना दिया। उन्होंने ‘अँधेरा छँटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा’ का नारा दिया। उनके सम्बोधन को राजनीतिक और मीडिया जगत से काफ़ी प्रशंसा मिली।
जब भी @BJP4India को सेवा करने का मौका मिला, पार्टी ने सुशासन और गरीबों के सशक्तिकरण पर जोर दिया। पार्टी के सिद्धांतों के अनुरूप हमारे कार्यकर्ताओं ने लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा की और समाज सेवा की नई मिसाल भी कायम की। #BJPat40
— Narendra Modi (@narendramodi) April 6, 2020
आज अटल-अडवाणी द्वारा स्थापित भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और इसके 18 करोड़ सदस्य हैं। 2019 में इसने देश में 5वीं बार सरकार बनाई। पिछले लगातार दो बार से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है। आज देश के 18 राज्यों में इसकी सरकार है (भाजपा व गठबंधन दलों की मिला कर)। केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी इसके वोट शेयर में लगातार वृद्धि हो रही है। इसे पहले ‘काऊ बेल्ट’ की पार्टी या सिर्फ़ उत्तर भारत की पार्टी कहा जाता था, जिस मान्यता को इसने तोड़ दिया है। भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभाध्यक्ष- ये सभी भाजपा से हैं। भारतीय राजनीतिक इतिहास में किसी भी नॉन-कॉन्ग्रेस पार्टी ने इस तरह की सफलता नहीं प्राप्त की।
अगर सभी मानकों को देखें तो भाजपा आज वहीं खड़ी है, जहाँ कॉन्ग्रेस 1950 के दशक में हुआ करती थी। भारतीय जनता पार्टी का गठन भले ही 1980 में हुआ हो लेकिन इसका इतिहास 1951 में जनसंघ की स्थापना से शुरू होता है। जनसंघ की जड़ें आरएसएस और अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रवादी आन्दोलनों और संगठनों से जुड़ी थीं। इसीलिए, भाजपा का इतिहास समझने के लिए हमें संघ के साथ-साथ आर्य समाज और हिन्दू महासभा के इतिहास को भी देखना पड़ेगा। आज के ‘घर वापसी’ अभियान को ही लें तो इसकी जड़ें आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन में है, जिसमें स्वामी श्रद्धानन्द को अपनी जान गँवानी पड़ी थी। तबलीगी जमात के एक सदस्य ने उन्हें मार डाला था।
कार्यकर्ता ही नींव, कार्यकर्ता ही नेतृत्व
— BJP (@BJP4India) April 6, 2020
भाजपा के शीर्ष शिल्पकारों की एक साधारण कार्यकर्ता से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की यात्रा…#BJPat40 pic.twitter.com/pVM0148BEK
आज जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा का भाजपा अनुसरण कर रही है, उसकी जड़ें वीर सावरकर के चिंतन से जुड़ी हैं। गोरक्षा 1881 के आन्दोलंब से प्रेरणा पाता है। जहाँ तक मुस्लिम तुष्टिकरण की बात है, इसकी नींव सर सैयद अहमद की विभाजनकारी नीतियों में है। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किया जाना, राम मंदिर निर्माण और एनआरसी का लागू होना- ये सब कॉन्ग्रेस द्वारा की गई बड़ी ग़लतियों को सही करने की दिशा में प्रयास है। ‘नीति आयोग’ का गठन भी जनसंघ के शुरुआती घोषणापत्र के अनुसार ही हुआ है।
मेरा तो यही मानना है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले भारतवर्ष का राजनीतिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक अस्तित्व हमेशा से रहा है। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और भारतीय राष्ट्रवाद एकता पूरे देश की एकता से जुड़ा है, जो इसे बाकी भूखंडों से अलग बनाता है। भाजपा का आज जो रूप हम देख रहे हैं, वो सदियों से चले आ रहे राष्ट्रवाद के आन्दोलनों का ही परिणाम है। आज भाजपा के 40 वर्ष पूरे होने पर उसी इतिहास को देखने और समझने की ज़रूरत है।
Note: यह लेख मूलतः अंग्रेजी में लिखा गया था, जिसकी हिंदी कॉपी अनुपम ने तैयार की है।