बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार (अप्रैल 2, 2019) को उत्तर प्रदेश में अपनी प्रतिमाओं और हाथी की मूर्तियों की स्थापना में खर्च को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर किया। इस हलफनामे में मायावती ने कहा कि ये लोगों की जनभावना थी कि उनकी मूर्तियाँ बने, बसपा के संस्थापक कांशीराम की भी इच्छा थी कि उनकी मूर्तियाँ बने। उन्होंने कहा कि दलित आंदोलन में उनके योगदान की वजह से मूर्तियाँ लगवाई गई हैं। मायावती का कहना है कि विधानसभा के विधायक चाहते थे कि कांशी राम और दलित महिला के रूप में मायावती के संघर्षों को दर्शाने के लिए मूर्तियाँ स्थापित की जाएँ। इसके साथ ही मायावती ने मूर्तियों और स्मारकों पर खर्च होने वाले रकम को भी लौटाने से मना कर दिया है।
गौरतलब है कि मायावती ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान नोएडा, ग्रेटर नोएडा और लखनऊ में कई पार्क बनवाए। इनमें मायावती, कांशीराम, भीमराव अंबेडकर और हाथियों की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ बनवाई गईं हैं। इन पर तकरीबन ₹6000 करोड़ खर्च हुआ है। इसी बाबत सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2019 को मायावती द्वारा लगाई गई मूर्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि मायावती ने हाथियों और अपनी मूर्तियों को बनाने पर जो पैसा खर्च किया है, उसे वापस लौटाना चाहिए।
She had filed the affidavit in compliance with the last order of the Supreme Court asking her that prima facie, it seems that she needs to pay back the money as she had spent a lot of public money on installation of many statutes of herself and elephants in UP. https://t.co/ipJ8dGGyMM
— ANI (@ANI) 2 April 2019
वैसे देश में मूर्तियों के नाम पर राजनीति का चलन नया नहीं है। राजनीतिक दल सत्ता में आने पर अपने-अपने हिसाब से चयनित नेताओं और विचारधारा वाले व्यक्तियों की मूर्तियाँ लगवाती आई हैं। इसी कड़ी में जब उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार आई तो मायावती ने भी पार्क और मूर्तियाँ बनवाईं थी और अब मायावती ने मूर्तियों पर खर्च की गई सरकारी रकम को न्यायोचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किए गए हलफनामे में कहा है कि विधानसभा में चर्चा के बाद मूर्तियाँ लगवाई गईं और इसके लिए बाकायदा सदन से बजट भी पास कराया गया था। यहाँ पर अगर मायावती के द्वारा दिए गए तर्क पर गौर किया जाए, तो उनका ये तर्क सही लगता है। क्योंकि बिना सदन में बजट पास कराए किसी प्रकार की कोई मूर्ति या फिर पार्क बनाना संभव नहीं है।
हाँ, ये बात सही है कि आपने नियमों का पालन करते हुए ही पार्क या फिर मूर्तियों को बनवाया और इसे जनभावना बताया। लेकिन अगर आप वाकई में जनभावना का सम्मान करना चाहती हैं या फिर कांशीराम के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करना चाहती थी तो आप इन पार्कों और मूर्तियों की बजाए उनके नाम से कांशीराम अस्पताल, कांशीराम स्कूल या फिर कांशीराम कॉलेज की स्थापना करवा सकती थीं। इससे लोग स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों का उपभोग कर सकते। इससे राज्य के शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार होता। इसके साथ ही मायावती दलितों को लेकर आरक्षण देने का काम कर सकती थी, जिससे उनकी स्थिति में सुधार हो पाता।
मायावती ने अपने हलफनामे में इस बात का भी जिक्र किया है कि इन मूर्तियों और पार्कों को बनाने में जो रकम खर्च की गई है, उसे लौटाने का सवाल ही नहीं उठता है। दरअसल, 8 फरवरी को केस की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि कोर्ट का विचार है कि मायावती को मूर्तियों पर हुए खर्च को अपने पास से सरकारी खजाने में अदा करना चाहिए। मगर मायावती ने अपने हलफनामे में इसे जमा करने से मना कर दिया। मायावती का रकम को वापस न करना इसलिए भी सही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि मायावती ने ये सारी चीजें उस समय बनवाईं थीं, जब उनकी सरकार थी और इन मूर्तियों और पार्कों को बनाने पर जो रकम खर्च की थी, उसके लिए बाकायदा सदन से बजट पास करवाया गया था। इसलिए अब इस रकम को अपने पास से जमा कराना नामुमकिन सा लगता है।
इसके साथ ही मायावती ने सुप्रीम कोर्ट को भेजे जवाब में साफ कहा है कि पैसा शिक्षा, अस्पताल या फिर मूर्तियों पर खर्च हो, यह बहस का विषय है, इसे अदालत द्वारा तय नहीं किया जा सकता। हालाँकि मायावती की यह बात सही है, मगर यदि इन पैसों को मूर्तियों के बजाए शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए स्कूल- कॉलेज की स्थापना की जाती या फिर अस्पतालों का निर्माण किया जाता, पुरानी सड़कों का जीर्णोद्धार करने में खर्च किया जाता तो जनता इससे ज्यादा लाभान्वित होती।
पार्क में मूर्तियों से तो जनता का तो कोई भला होता हुआ नहीं दिख रहा है। ज्यादा से ज्यादा पार्क में घूमने गए लोग मूर्तियों के साथ सेल्फी ले लेते हैं। इससे ज्यादा तो उसकी कोई उपयोगिता दिखाई नहीं देती है। इनकी जगह अगर स्कूल या अस्पताल पर रकम खर्च की गई होती तो लोगों को इसका फायदा मिलता रहता और इनका नाम भी होता, क्योंकि ये स्कूल-कॉलेज होता तो इन्हीं के नाम पर। इसका एक फायदा ये भी मिलता कि लोगों के दिलों में इनके लिए जगह तो बनती ही, साथ ही इससे किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होती।
इस मामले पर आज (अप्रैल 2. 2019) कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। तो देखना होगा कि मायावती की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किए गए हलफनामे पर कोर्ट किस तरह से सुनवाई करती है और क्या फैसला सुनाती है। बता दें कि, मायावती और उनकी पार्टी के चिन्ह हाथी की प्रतिमाएँ नोएडा और लखनऊ में बनवाई गई थीं। एक वकील ने इस मामले में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि नेताओं द्वारा अपनी और पार्टी के चिह्न की प्रतिमाएँ बनाने पर जनता का पैसा खर्च ना करने के निर्देश दिए जाएँ।