देशां में देश हरियाणा, जित दूध-दही का खाना! इस वाक्य से देश भर में प्रसिद्ध राज्य हरियाणा में दूध-दही के साथ ही रेवड़ियों की आमद भी हो गई है। यह रेवड़ियाँ खाई तो नहीं जा सकतीं लेकिन बाँटी जरूर जा सकती हैं। हरियाणा के 2024 विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा और कॉन्ग्रेस ने कमर कस ली है और अपने-अपने पत्ते भी खोल दिए हैं। इस बार की चुनावी लड़ाई में हर अनुमान में मजबूत दिखने वाली कॉन्ग्रेस ने हरियाणा की जनता से कई ‘गारंटी’ वादे कर दिए हैं।
कॉन्ग्रेस यही प्रयोग हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कर चुकी है और उसे चुनावी फ्रंट पर सफलता भी मिली थी। लेकिन चुनावों के कुछ ही महीने के बाद जहाँ कर्नाटक में विकास के सब काम रोक कर गारंटी का ही भरण पोषण करने में राज्य की अर्थव्यवस्था हांफने लगी तो वहीं हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो खुद ही आर्थिक बदहाली का रोना रो दिया। लेकिन कॉन्ग्रेस इसके बाद भी नहीं सुधरी, उसने वैसा ही घोषणा पत्र एक बार फिर हरियाणा के लिए तैयार कर दिया है।
क्या हैं हरियाणा के लिए कॉन्ग्रेस के वादे
कॉन्ग्रेस ने हरियाणा में हर वर्ग को लुभाने के लिए बड़े-बड़े सपने दिखाए हैं। कॉन्ग्रेस ने हरियाणा में सरकार बनने पर पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने का वादा किया है। इसके अलावा उसने कहा है कि वह हर परिवार को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देगी। इसके अलावा उसने कहा है कि वह ₹25 लाख तक की इलाज योजना भी लाएगी। हरियाणा में कॉन्ग्रेस ने नकद फायदे देने की बात भी दोहराई है। कॉन्ग्रेस ने कहा है कि वह हर महिला को ₹2000 देगी। उसने वृद्धावस्था पेंशन को भी ₹6000 करने का वादा किया है। गरीबों को जमीन भी कॉन्ग्रेस देगी।
सब जान कर भी अनजान बन रही कॉन्ग्रेस
हरियाणा में कॉन्ग्रेस ने जो वादे किए हैं, उनका अर्थव्यवस्था पर क्या फर्क होगा इस बात से कॉन्ग्रेस अनजान नहीं है। वह ऐसे ही वादे और राज्यों में करके भूल चुकी है या फिर इनकी वजह से राज्य आर्थिक कंगाली के दौर में आ गए हैं। सबसे पहले पुरानी पेंशन का मुद्दा ही उठा लिया जाए तो इसे कॉन्ग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में लागू किया है। इसकी वजह से राज्य की कर्ज लेने की क्षमता घट गई है और सितम्बर में हाल यह हो गया कि सुक्खू सरकार समय से कर्मचारियों को तनख्वाह तक नहीं दे पाई।
वहीं अगर मुफ्त बिजली का वादा देखा जाए तो इसमें भी कॉन्ग्रेस हिमाचल में फेल हो गई। उसने यहाँ भी 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया था लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाई। इसके उलट उसने 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली दिए जाने वाली योजना भी बंद कर दी। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी मुफ्त बिजली योजना चालू की, इसका परिणाम यह है कि पंजाब आज देश में सबसे अधिक कर्ज वाले राज्यों में से एक है। इसके बाद बात आती है मुफ्त इलाज योजना की। हिमाचल में ही कॉन्ग्रेस सरकार ने हिमकेयर नाम की ऐसी ही एक योजना पर ग्रहण लगा दिया।
अगर महिलाओं को ₹1500 या ₹2000/महीना देने की बात की जाए तो इस वादे को भी हिमाचल में पूरा नहीं किया गया। कर्नाटक में इस वादे समेत मुफ्त बिजली के लिए बाकी सारे विकास काम रोक दिए गए। इसके बाद मुद्दा आता है फ्री जमीन देने का। 2014 से पहले हरियाणा में कॉन्ग्रेस की ही सरकार थी। उस दौरान भी यही योजना चलाई गई थी जिसमें गरीबों को आवासीय भूखंड दिए गए थे। इस योजना में एक जगह एक ही परिवार को 129 भूखंड दे दिए गए थे। इसके अलावा भूपिंदर हुड्डा की सरकार के जाने का एक बड़ा कारण जमीन घोटाले ही थे।
पहले भी रेवड़ी कर चुकी हैं नुकसान
कॉन्ग्रेस ने इससे पहले हिमाचल और कर्नाटक में ऐसे ही वादे किए। दोनों जगह उसे सफलता मिली। कर्नाटक में उसने आते ही पाँच गारंटियों को लागू करने की कवायद चालू कर दी। लेकिन उसके इस चुनावी वादे का बोझ राज्य के दलितों और जनजातियों पर आ गया। कॉन्ग्रेस सरकार ने 2023-24 और 2024-25 में दलितों के लिए दिए जाने वाले विकास फंड में से पैसा अपनी गारंटी पूरी करने को निकाल लिया। 2024-25 में उसने दलितों-जनजातियों पर खर्च होने वाले ₹14000 करोड़ गारंटियों की तरफ मोड़ दिए।
हरियाणा में बड़े बड़े वादे करने वाली कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में अपनी इन्हीं गारंटियो को पूरा करने के चक्कर में साफ़ कह दिया था कि अब विधायक कोई विकास कार्य ना माँगे। इसके लिए फंड ना होने की बात कही गई थी। कर्नाटक में गारंटियों का खर्चा 2024-25 में ₹50000 करोड़ के पार पहुँच गया है। वहीं हिमाचल में आधे से अधिक गारंटियाँ लागू ही नहीं हुई और जो हुईं भी उनके कारण राज्य का भट्ठा बैठ गया और वह आर्थिक संकट में है। अब हिमाचल प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार तनख्वाह ना लेकर इसे ठीक करना चाहती है।
हरियाणा को इन रेवड़ियों से क्या नुकसान
हरियाणा में यदि कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में आती है और इन वादों को पूरा करती है तो इसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान में हरियाणा देश में आर्थिक तौर पर मजबूत राज्यों में से एक है। हरियाणा का राजकोषीय घाटा अभी 3% से कम है। यह सीमा के भीतर है। हरियाणा का कर्ज भी अभी विशेष अधिक नहीं है। लेकिन अगर राज्य यह सभी योजनाएँ लागू करता है तो उसे एक मोटी धनराशि इस पर खर्चनी होगी जिससे राज्य का हिसाब-किताब बिगड़ेगा।
रेवड़ी-रेवड़ी में है अंतर
कॉन्ग्रेस द्वारा किए गए चुनावी वादों की आलोचना पर सवाल उठता है कि बाकी पार्टियाँ भी यही कर रही हैं। लोग प्रश्न पूछते हैं कि केंद्र सरकार भी कई जगह सब्सिडी देती है और कई मामलों में नकद लाभ भी देती है। इसके लिए हमें यह समझने की जरूरत है कि असल में मदद की जरूरत किसे है। भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है और सरकार को अवश्य कमजोर तबके की मदद करनी चाहिए। लेकिन यदि यह व्यवस्थित ढंग से उन लोगों को की जाए जो सही में इसके जरूरतमंद हैं, तब इसका सही फायदा है।
मोदी सरकार ने बीते कुछ वर्षों में लक्ष्य आधारित सब्सिडी पर जोर दिया है। इसके तहत उन्हीं तबकों को मदद मिलती है, जो इसके जरूरतमंद हैं। इसका उदाहरण किसान सम्मान निधि है। इसके तहत केवल छोटे किसान ही इसका लाभ पाते हैं। इससे अर्थव्यवस्था पर बोझ भी कम होता है और अपात्र लोग भी बाहर हो जाते हैं।
दूसरी पार्टियाँ भी हैं दोषी
ऐसा नहीं है कि हरियाणा में केवल कॉन्ग्रेस ने ही ऐसे वादे किए हैं। वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने भी कुछ-कुछ यही वादे अपने मेनिफेस्टो में शामिल किए हैं। नॉनस्टॉप हरियाणा संकल्प पत्र नाम से जारी किए गए मेनिफेस्टो में भाजपा ने भी महिलाओं को ₹2100/महीने, हर छात्रा को स्कूटी समेत कई लुभावने वादे किए हैं।
ऐसे में भाजपा भी राज्य की आर्थिकी को लेकर पूरी तरह गंभीर है, यह बात नहीं कही जा सकती। लेकिन मुद्दा यह है कि भाजपा के पास कोई और रास्ता भी नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब आपका मुख्य विपक्षी दल ऐसे वादे करके जनता को लुभा रहा हो, तो आप एकदम विपरीत राह नहीं पकड़ सकते। भले ही आप ₹100 के सामने ₹75 का वादा करें, लेकिन शून्य पर तो नहीं जा सकते।
रेवड़ी वाली इस बीमारी का इलाज केवल दो रास्तों से हो सकता है। पहला यह कि चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट इस बात को जरूरी कर दे कि पार्टियाँ वादे करने के साथ ही उन्हें पूरा कैसे करेंगी, इस बात का ब्यौरा दें या फिर सभी राजनीतिक दलों में एक आपसी सहमति बने। पहला रास्ता वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मुश्किल है और दूसरा असंभव लगता है। हरियाणा की अर्थव्यवस्था आगे किस हाल में होगी, यह वहाँ का वोटर तय करने जा रहा है। कोई भी पार्टी जीते, रेवड़ी प्रथा अर्थव्यवस्था के लिए कभी ठीक नहीं कही जा सकती।