कॉन्ग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को ‘अपशकुन दिवस (Bad Omen Day)’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। वैसे तो हाल के दिनों में घोषणाएँ करना कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेताओं का बड़ा प्रिय राजनीतिक शगल रहा है, पर ऐसी बचकानी घोषणा सुनकर यही लगा जैसे यदि नरेंद्र मोदी कॉन्ग्रेस मुक्त भारत देखना चाहते हैं तो कॉन्ग्रेस के भीतर भी कोई है जो भारत मुक्त कॉन्ग्रेस देखना चाहता है।
हाल ही में ऐसी ही एक घोषणा में पार्टी ने दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एक कमेटी की घोषणा की थी जो मोदी विरोधी एनजीओ और बुद्धिजीवियों के साथ गठबंधन कर भारत भर में मोदी सरकार के खिलाफ धरने और प्रदर्शन करेगी। ठोस राजनीति के लिहाज से देखें तो ऐसी घोषणाएँ उन ईमानदार प्रयासों का हिस्सा नहीं लगती जिनके दम पर सत्ता से बाहर बैठा भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल पुनः सत्ता में आ पाए।
#JustIn | Congress party to mark September 17, PM #NarendraModi‘s birthday, as ‘Bad Omen Day’. pic.twitter.com/LzGr0rb1Ji
— TIMES NOW (@TimesNow) September 15, 2021
पिछले लगभग दो दशक से कॉन्ग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी का विरोध कर रही है। मोदी विरोध की अपनी इस मुहिम में दल ने लगातार ‘अराजनीतिक’ व्यक्तियों, स्वघोषित बुद्धिजीवियों और संस्थाओं के साथ न केवल गठबंधन किया, बल्कि लगातार ऐसे लोगों की सेवाएँ ली। गुजरात दंगों के समय से ही एनजीओ चलाने वाले एक्टिविस्ट, पत्रकार, संपादक, कलाकार वगैरह दल की इस मुहिम अपना योगदान देते हुए पाए गए। नतीजा क्या निकला? नरेंद्र मोदी के इस विवेकहीन विरोध ने कॉन्ग्रेस पार्टी को ऐसा कोई परिणाम नहीं दिया जो उनके प्रयासों की भरपाई कर सके। देखा जाए तो दल की इस नीति ने उसे लगातार नुकसान पहुँचाया और आज हाल यह है कि पूरी पार्टी का राजनीतिक दर्शन, प्रयास और रणनीति मोदी विरोध तक सिमट कर रह गए हैं। ऐसा क्यों है, उसकी विवेचना तो राजनीतिक पंडित करेंगे पर इसका परिणाम क्या है, वह सबके सामने है।
नरेंद्र मोदी के मामले में एक विश्लेषण यह भी है कि उनकी लोकप्रियता और बढ़ते कद का श्रेय कॉन्ग्रेस पार्टी के इस विवेकहीन विरोध को जाता है पर मुझे लगता है यह निहायत ही औसत विश्लेषण है। मोदी आज जो भी हैं, अपनी नेतृत्व क्षमता, अपने काम और अपने राजनीतरिक दर्शन के कारण हैं। हाँ, यह बात सच जरूर लगती है कि जब उनका कद इतना बड़ा हो गया है, उनके प्रति कॉन्ग्रेस के ऐसे विरोध पार्टी को और तेजी से नुकसान पहुँचाएँगे। ऐसी रणनीति राजनीतिक समझ रखने वाला कोई नेतृत्व एक समय के बाद तज देगा। लेकिन कॉन्ग्रेस पार्टी का औसत नेतृत्व ऐसी सामान्य समझ भी नहीं रखता और यह बात सब जानते हैं कि नेतृत्व किनके के हाथ में है और उनके सलाहकार कैसे रहे हैं। यहाँ राजनीतिक सलाहकारों का भी दोष नहीं है।
Is congress serious – it’s one thing for trolls to “celebrate” Bad Omen Day as the PM’s birthday – quite another for a party to do it.
— अद्वैता काला Advaita Kala 😷 (@AdvaitaKala) September 15, 2021
Who is strategising? And do they ever want to be taken seriously?
कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व की ऐसी रणनीति के पीछे एक कारण यह भी है कि वह सोशल मीडिया पर अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच आक्रामक दिखना चाहती है। पर आक्रामकता दिखाने की अपनी कोशिशों में पार्टी का आचरण ऐसा रहा है जिसे देखकर लगता है कि उसे जमीनी राजनीतिक वातावरण का भान नहीं है। भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल के लिए संवाद की ऐसी रणनीति बनाने वाले लोग वर्तमान भारतीय राजनीतिक की जमीनी सच्चाई से कटे हुए हैं। ऐसे में वे जो कुछ भी कर रहे हैं उससे अपेक्षित परिणाम न मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कॉन्ग्रेस की रणनीति का दूसरा पहलू यह है कि पार्टी हमेशा एक विवेकहीन विरोध के मोड दिख रही है और यह रणनीति उस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कारगर साबित नहीं होती जिसमें बड़े-बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव हो रहे हैं।
एक संगठन के रूप में भारतीय जनता पार्टी, उसके नेतृत्व और उसकी राजनीतिक समझ को इस बात का क्रेडिट मिलना चाहिए कि उसने लोकतांत्रिक राजनीति में संवाद माध्यम के रूप में सोशल मीडिया का महत्व बाकी राजनीतिक दलों से न केवल पहले समझा बल्कि उसका समग्र इस्तेमाल भी किया। ऐसी रणनीति के पीछे तमाम कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण शायद यह था कि पार्टी को परंपरागत मीडिया से खुद के लिए बहुत आशा नहीं थी। ऐसी सोच के पीछे परंपरागत प्रिंट और विज़ुअल मीडिया का एक पूरा इतिहास है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी निश्चित तौर पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर और दलों से अच्छी समझ रखती है। महत्वपूर्ण बात यह कि जिन दलों ने सोशल मीडिया का प्रयोग बाद में करना शुरू किया वे अभी तक बनावटी आक्रामकता के सहारे विरोध-प्रदर्शन वाले मोड से आगे नहीं जा सके।
प्रधानमंत्री के जन्मदिन को अपशकुन दिवस के रूप में मनाए जाने की कॉन्ग्रेस पार्टी की यह घोषणा सोशल मीडिया पर लगातार विरोध कर रहे उसके समर्थकों का उत्साह बनाए रखने की एक कवायद से अधिक कुछ और जान नहीं पड़ती। मेरे विचार से इस घोषणा के पीछे एक कारण और हो सकता है। 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने की प्रधानमंत्री की घोषणा का जवाब देने के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी ने ऐसी घोषणा की हो। यदि ऐसा है तो साफ़ है कि पार्टी प्रधानमंत्री की घोषणा से खुश नहीं है और नहले पर दहला मारने वाली बचकानी मानसिकता से उन्हें मात देना चाहती है। प्रश्न यह है कि भारी मतों से चुने गए एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के जन्मदिन को अपशकुन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा क्या शासन की उस वैकल्पिक व्यवस्था की भरपाई कर सकती है, जिसकी अपेक्षा लोकतांत्रिक राजनीति में प्रमुख विपक्षी दल से रहती है?