ऋषि सुनक जब से ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बने हैं, भारत में लिबरल और सेक्युलर गिरोह का एक तबका ज्ञान बाँटने और नसीहतें देने पर फिर से उतर आया है। कॉन्ग्रेस को मुस्लिम प्रधानमंत्री चाहिए तो असदुद्दीन ओवैसी को एक हिजाबी महिला को प्रधानमंत्री के रूप में देखना है। जिस देश की सर्वोच्च पद पर एक जनजातीय समाज की महिला हैं, उस देश में इस तरह का प्रपंच चलाने वालों को इतिहास में भी झाँकना चाहिए।
क्योंकि वर्तमान में तो सबको दिख रहा है कि जहाँ भारत में मुस्लिम कट्टरपंथी ‘सर तन से जुदा’ का नारा लगा रहे हैं और हत्याएँ भी कर रहे हैं, वहीं ब्रिटेन में रह रहे हिन्दू या भारतीय समाज के लोग वहाँ की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। ब्रिटेन में आज 8 लाख से भी अधिक हिन्दू हैं, जिनमें 70% अकेले गुजरात से हैं। इसके बाद पंजाब (15%) का नंबर आता है। आज UK में 190 से भी अधिक मंदिर हैं और वहाँ के सामाजिक कार्यों में भी ये रुचि लेते हैं।
ब्रिटेन में ईसाइयों और मुस्लिमों के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या हिन्दुओं की ही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीय नागरिकों ने ब्रिटेन का रुख किया गया। भारतीय नागरिकों को ब्रिटेन ने अपनी सेना में रखा था, यहाँ की महिलाओं को ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने घर में बच्चों के देखभाल के लिए रखा था। इससे पहले दादाभाई नैरोजी (1825-1917) जैसे विद्वान भी हुए, जो 20वीं सदी शुरू होने से पहले ही ब्रिटेन में सांसद के पद पर पहुँचे।
बाद में वो कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 2002 के बाद से ब्रिटेन जाने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियरों में से दो तिहाई भारत से ही जा रहे हैं। अगर ब्रिटिश इंडियंस की बात करें तो जहाँ ये ब्रिटेन में 2% ही हैं, लेकिन वहाँ के डॉक्टरों में से 12% इसी समुदाय से हैं। चूँकि वहाँ रह रहे भारतीयों में से 85% हिन्दू ही हैं, इसीलिए स्वाभाविक है कि इनमें हिन्दुओं की जनसंख्या ज्यादा होगी। वहाँ के व्यापार का 4.4% हिस्सा हिन्दुओं के पास है और वो 51,000 लोगों को नौकरी देते हैं।
भारत में मुस्लिमों की बात करें तो स्थिति इसके एकदम उलट है। यहाँ अरब से इस्लामी आक्रांता आए, सूफी आए। एक ने तलवार के दम पर और एक ने चमत्कार के दम पर धर्मांतरण किया। भारत के अधिकतर मुस्लिम धर्मांतरित मुस्लिम हैं, जिनके पूर्वज पहले हिन्दू ही हुआ करते थे। लेकिन, कालांतर में ये अपने अरबी समाज से ज्यादा कट्टर होते चले गए। इसका एक परिणाम हमें देश का विभाजन और 20 लाख मौतों के रूप में देखने को मिला।
इसका परिणाम हमें जम्मू कश्मीर में देखने को मिला। इसका परिणाम हमें PFI जैसे संगठन के रूप में देखने को मिला, जो हजारों मुस्लिमों की भर्ती कर के भारत सरकार से युद्ध छेड़ने की तैयारी में था। 1926 में स्वामी श्रद्धानंद से लेकर 2022 में कन्हैया लाल तेली की हत्या तक, इस्लामी कट्टरपंथियों का रुख वही रहा है। और पीछे जाएँ तो अर्जन सिंह और तेग बहादुर जैस सिख गुरुओं की हत्याएँ याद आएँगी। भारतवर्ष पर अपने पहले ही आक्रमण में इस्लामी आक्रांताओं ने राजा दाहिर का सिर काट कर खलीफा को उपहार के रूप में भेजा था।
भारतीय ब्रिटेन में ऐसे नहीं घुसे थे। जब ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ ‘कारोबार’ करने आई थी, तब यहाँ वो कई भारतीयों को अपने साथ ले जाती थी। जहाज से ब्रिटेन जाने वाले ये भारतीय वहाँ से लौटने में अक्षम होते थे, इसीलिए उनमें से कई वहीं बस गए। भारतीय महिलाओं को बच्चों की देखभाल के लिए ब्रिटिश अधिकारी हायर करते थे (आया, नैनी, अम्मा इत्यादि) और यहाँ कार्यकाल पूरा हो जाने पर कइयों को अपने साथ ले जाते थे। नौकरों को लेकर भी ऐसा ही था।
भारत में तो मुस्लिम भी आक्रांता बन कर आए थे और ब्रिटिश भी बाद में कारोबारी से आक्रांता बन गए। लेकिन, आज ब्रिटेन हो या अरब, भारतीय हर जगह अपना परचम लहरा रहे हैं और वहाँ की अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं। भारतीयों को अंग्रेजों ने अपने जहाजों और बंदरगाहों पर काम करने के लिए हायर किया था। यही कारण है कि ब्रिटेन के पोर्ट टाउन्स में ही सबसे पहले के ब्रिटिश इंडियंस मिलेंगे। 19वीं सदी खत्म होते-होते 40,000 भारतीय छात्र, राजनयिक, कारोबारी, विद्वान, सैनिक और जहाज पर काम करने वाले लोग यूके में बस चुके थे।
सन् 1931 के आँकड़े बताते हैं कि उस समय ब्रिटेन में 2000 भारतीय छात्र थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में कामगारों की भारी कमी थी, ऐसे में उन्होंने रेलवे में भारत के मजदूरों और कर्मचारियों को हायर करना शुरू कर दिया। उन्हें यहाँ इस क्षेत्र में काम का अनुभव भी था। नॉर्थ-वेस्ट यूके में टेक्सटाइल सेक्टर में गुजरातियों का दबदबा बढ़ता चला गया। जब ‘नेशनल हेल्थ सर्विस’ का गठन हुआ तो यहाँ से कई मेडिकल प्रोफेशनल वहाँ गए।
केन्या, युगांडा और ज़ांज़ीबार से निकाले जाने के कारण 1960-70 के दशक में ईस्ट अफ्रीका में रह रहे कई भारतीय ब्रिटेन पहुँचे। इस तरह भारतीयों ने काम के लिए ब्रिटेन या किसी भी जगह को को केंद्र बनाया, आक्रमण या धर्मांतरण के लिए नहीं। आज कोरोना काल में ब्रिटेन में भारत के मंदिरों ने समाजसेवा और जागरूकता फैलाने का जो कार्य किया है, उसकी सराहना वहाँ के लोग भी करते हैं। यहाँ के मस्जिदों ने कोरोना काल में क्या किया, इसकी एक मिसाल दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के अड्डे से पता चल जाता है।
किस तरह जमातियों ने देश के अलग-अलग जगहों पर छिप कर कोरोना फैलाया और उन मुस्लिम बहुल इलाकों में जाने वाले पुलिसकर्मियों एवं मसिकल प्रोफेशनल्स पर हमले हुए, इसकी कई ख़बरें आपको मिल जाएँगी। जहाँ तक ऋषि सुनक की बात है, उनके पूर्वज भी ब्रिटेन आक्रमण या धर्मांतरण के लिए नहीं गए थे। जहाँ उनके पिता एक जनरल फिजिसियन थे, उनकी माँ सॉउथम्पटन में एक फार्मेसी चलाती थीं। पंजाबी मूल के उनके ग्रैंडपेरेंट्स 1960 के दशक में ईस्ट अफ्रीका से इंग्लैंड गए थे।
विंचेस्टर ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ाई करने वाले ऋषि सुनक शाकाहारी हैं, बीफ नहीं खाते हैं और शराब का सेवन भी नहीं करते हैं। उनके कामकाज वाली टेबल पर एक भगवान श्रीकृष्ण की छोटी सी प्रतिमा होती है। वो ब्रिटेन को अपना घर मानते हैं, लेकिन कहते हैं कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें भारत की हैं। उनके दादा ने ‘वैदिक सोसाइटी हिन्दू मंदिर’ की स्थापना की, जहाँ वो अक्सर जाते हैं। सांसद बनने के बाद उन्होंने भगवद्गीता पर शपथ ली।
बतौर वित्त मंत्री No 11, Downing Street स्थित उनके सरकारी आवास में दीवाली के कार्यक्रम हुआ करते थे। उन्हें घर में रंगोली बनाते हुए और दीये जलाते हुए भी 2020 में देखा गया था। उनका कहना है कि जीवन में परिवार का बड़ा महत्व है और बच्चों में परिवार ही संस्कार देता है, ये उन्होंने काफी पहले ही सीख लिया था। उन्होंने मंदिर में जाकर अपने परिवार द्वारा खाना बनाने और भोजन लोगों में बाँटने की बात भी कही थी।
To those demanding a Muslim PM for India, I ask
— Mr.B (@BharadwajAgain) October 25, 2022
1) Did Muslim majority Kashmir ever have a Hindu CM?
2) Did Sikh majority Punjab ever have a Hindu CM?
3)Did Christian majority Meghalaya, Nagaland & Mizoram ever have a Hindu CM?
Why is Indian secularism sole burden of Hindus?
जो लोग भारत में मुस्लिम प्रधानमंत्री की बात करते हैं, क्या वो नहीं जानते कि ये एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और यहाँ प्रधानमंत्री चुना जाता है, नियुक्त नहीं किया जाता। जिस हिजाब के कारण कर्नाटक में हिंसा हुई, उस हिजाब को पहनने वाली प्रधानमंत्री आखिर किसी को क्यों चाहिए? आक्रांताओं को अपना ‘बाप’ मानने वालों को देश क्यों स्वीकार करे? औरंगजेब और टीपू सुल्तान जैसों की इबादत करने वाले ये तो बताएँ कि क्या ब्रिटेन में बसे भारतीय वहाँ के दुश्मनों के गुण गाते हैं?
भारत में मुस्लिम आक्रांता और धर्मांतरण कराने वाले बन के आए और सैकड़ों वर्षों तक राज़ किया, फिर भी आज उन्हें सब्सिडी मिलती है। यहाँ तक कि हज भी वो सरकारी पैसे से करते रहे हैं। जब इस्लामी आक्रांताओं का राज़ था, हिन्दुओं को ‘जजिया’ टैक्स देना होता था। अपना तीर्थ घूमने के लिए भी टैक्स देना होता था। उनके 30,000 मंदिर ध्वस्त कर दिए गए। ब्रिटेन में भारतीयों ने चर्च ध्वस्त किए? टैक्स वसूला? सब्सिडी लिया? नहीं। वो वहाँ की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे।
जो लोग मुस्लिम प्रधानमंत्री की बात कर रहे हैं, वो पहले कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री की बात करें। मक्का-मदीना में गैर-मुस्लिमों की एंट्री की बात करें। पंजाब में हिन्दू मुख्यमंत्री की बात करें। क्या इन्होंने कभी अरब देशों में हिन्दू शासक की वकालत की है? इन्हें हिजाबी पीएम तो चाहिए, लेकिन कोई मुस्लिम लड़की तिलक लगा ले तो ये उसे ‘मुर्तद’ बताते हुए शिर्क करने का आरोप लगाते हैं, इनसे ये बर्दाश्त नहीं होता। ब्रिटिश भारतीय समुदाय को लेकर ये भसड़ आपने कभी सुनी है?
जहाँ तक भारत की बात है, खुद सोनिया गाँधी का इटली में जन्म हुआ था और वो 10 वर्षों तक रिमोट कंट्रोल से सत्ता चलाती रहीं। इस दौरान अल्पसंख्यक सिख समाज के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे। भारत में ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन, और अब्दुल कलाम के रूप में 3 मुस्लिम राष्ट्रपति हुए। ज्ञानी जैन सिंह राष्ट्रपति बने, जो सिख समाज के थे। सोनिया गाँधी रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय से हैं। ऐसे में भारत को ज्ञान की ज़रूरत ही नहीं है। भारत में पारसी समुदाय से भी 3 मुख्य न्यायाधीश रहे हैं।
यहाँ सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि जब बात अल्पसंख्यक की होती है तो सिर्फ मुस्लिमों की ही क्यों? सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदी प्रधानमंत्री की बात क्यों नहीं करते ये लोग? क्योंकि मुस्लिम आज मेजोरिटी हैं, माइनॉरिटी नहीं। जितनी यूके की पूरी जनसंख्या है, उससे तीन गुना ज्यादा तो भारत में सिर्फ मुस्लिम हैं। ऐसे में उनके तुष्टिकरण के लिए ऐसा किया जाता है। अब मुस्लिम प्रधानमंत्री का रट्टा मारने वाले ही बताएँ कि जब इस पर पर उन्हें मुस्लिम ही चाहिए तो वो बाकी के दिनों में सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार क्यों बने रहते हैं?