कर्नाटक में विधानसभा चुनाव परिणाम आए 4 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब तक थाह-पता नहीं है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। CM पद की रेस में 2 नाम आगे हैं, ये किसी से छिपा नहीं है – नेता प्रतिपक्ष रहे सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष DK शिवकुमार। सिद्धरमैया 1983 से ही विधायक बनते रहे हैं और 5 साल CM भी रह चुके हैं, जबकि DK शिवकुमार कॉन्ग्रेस के संकटमोचक हैं जो 8 बार MLA बन चुके हैं। कॉन्ग्रेस की रिजॉर्ट पॉलिटिक्स अक्सर अरबपति शिवकुमार के इर्दगिर्द ही घूमती रही है।
सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार, दोनों ने ही नई दिल्ली पहुँच कर राहुल गाँधी से मुलाकात की है। कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। मीडिया सूत्र कह रहे हैं कि DK शिवकुमार को उप-मुख्यमंत्री का पद ऑफर किया गया, जिसके लिए वो तैयार नहीं हैं। सिद्धारमैया के सीएम पद के लिए चुने जाने की अफवाह फैलने के बाद उनके समर्थकों ने खूब जश्न भी मनाया, लेकिन पार्टी ने साफ़ किया है कि अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
Siddaramaiah met Kharge
— Karthik Reddy 🇮🇳 (@bykarthikreddy) May 16, 2023
DK Shivakumar met Kharge
DK Suresh met Kharge
Party leaders met Kharge
Observers gave their verdict to Kharge
Everybody thought Kharge will decide.
But Rahul Gandhi & Sonia Gandhi who hold 'No Position' in Congress party will decide after meeting Kharge.… pic.twitter.com/MTJnYiiSyg
ये कर्नाटक का दुर्भाग्य ही होगा कि वहाँ की सत्ताधारी पार्टी कलह में व्यस्त रहे और पूर्ण बहुमत के बावजूद राज्य विकास से वंचित रह जाए। यहाँ हम उन विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जो DK शिवकुमार के पास हैं, अगर वो मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाते हैं तो। ये विकल्प कहीं और नहीं, बल्कि उनकी पार्टी में ही मौजूद हैं या रहे हैं। कुर्सी पर गाँधी परिवार से धोखा मिलने के बाद DK शिवकुमार क्या-क्या कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
या तो दो तिहाई विधायक तोड़ दें, या ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह कॉन्ग्रेस को अल्पमत में कर दें
DK शिवकुमार के पास पहला विकल्प ये हो सकता है कि अगर उनकी राजनीतिक हैसियत कॉन्ग्रेस में बहुत ज्यादा है तो वो पार्टी के दो तिहाई विधायक तोड़ कर एक अलग पार्टी बना लें, जैसा कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने किया और भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। या फिर, वो इतना विधायक तोड़ दें कि कॉन्ग्रेस सरकार अल्पमत में चली जाए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनकी पार्टी में ही रहे हैं। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर के मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिरा दी थी।
मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की जीत के बाद गाँधी परिवार के पुराने सिपहसालार कमलनाथ को तरजीह दी गई थी और युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ धोखा हुआ। उन्होंने 22 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी। वो भाजपा में शामिल हुए। उप-चुनाव में भाजपा के ज़्यादा विधायक जीते और कमलनाथ की सरकार चली गई। ‘महाराज’ की तरह बगावत के लिए DK शिवकुमार के पास वैसा ही करिश्मा और जनस्वीकार्यता होनी चाहिए। क्या वो इस रिस्की रास्ते पर जाना पसंद करेंगे?
सचिन पायलट की तरह अपनी ही सरकार का विपक्ष बन जाएँ
राजस्थान में कुछ ऐसा ही हो रहा है। सचिन पायलट को राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री का पद मिला था। 2020 में उन्होंने बगावत तो की, लेकिन उलटे उनके दोनों पद चले गए और कॉन्ग्रेस में कद भी घटा दिया गया। सचिन पायलट फ़िलहाल शांति प्रदर्शन कर रहे हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत अपने विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब रहे। सचिन पायलट की हालिया ‘जन संघर्ष पदयात्रा’ खत्म हो गई है, लेकिन उन्होंने अपनी ही सरकार पर जम कर हमला बोला और भीड़ जुटाई। पायलट तो कह भी चुके हैं कि बाद में CM बनाने के वादे से कुछ नहीं होता।
पूरे 5 वर्षों तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जुबानी जंग चलती रही। गहलोत ने तो उन्हें ‘नालायक’ तक बता दिया। उन्होंने अशोक गहलोत और भाजपा नेता वसुंधरा राजे की मिलीभगत का आरोप लगाया। अब वो जनता के बीच जाकर अपना अगला रुख तय करेंगे। क्या DK शिवकुमार भी अगले 5 साल अपनी ही सरकार का विपक्ष बन कर बिताएँगे? जन-समर्थन से ऐसा संभव तो है। अगर विधायक उनके साथ नहीं हैं तो उनके लिए ये रास्ता हो सकता है, क्योंकि इससे वो खबरों में बने रहेंगे और सक्रिय रहेंगे।
बाबा की तरह मंत्रिमंडल में रह कर कुढ़ते रहें
छत्तीसगढ़ में जीत के बाद कॉन्ग्रेस ने भूपेश बघेल को CM बनाया था। TS सिंह देव, जो सरगुजा राजघराने से आते हैं, उन्हें ढाई साल बाद ये पद देने का आश्वासन मिला। हालाँकि, भूपेश बघेल पद पर बने रहे। टीएस सिंह देव कभी गुस्सा कर विधानसभा से लौट गए तो कभी कुढ़न में बयान देते रहे। अब उन्होंने कह दिया है कि चुनाव लड़ने की उनकी कोई इच्छा नहीं है। उन्होंने हार मान ली है या फिर ये उनकी राजनीति है, भगवान जाने।
अगर DK शिवकुमार भी TS सिंह देव के रास्ते जाते हैं तो उनके पास विकल्प होगा कि वो उप-मुख्यमंत्री का पद और कुछ मलाईदार विभाग ले लें और खुद को सरकार में नंबर-2 मान ही लें। हाँ, बीच-बीच में मीडिया के बयानों में उनकी चिढ़न सामने आ सकती है। सिंह देव को दो मंत्रालय दिए गए थे, लेकिन उन्होंने अचानक से पंचायती राज मंत्री से त्याग-पत्र दे दिया। वो स्वाथ्य मंत्री बने रहे। क्या डीके शिवकुमार इस रास्ते जाएँगे और सिद्धारमैया के सामने हार मानते हुए जो मिला उसी में खुश रहेंगे?
हिमाचल प्रदेश की प्रतिभा सिंह की तरह परिवार को आगे बढ़ाएँ
भाजपा ने 2022 में हिमाचल प्रदेश में बड़ी जीत दर्ज की। प्रदेश अध्यक्ष थीं प्रतिभा सिंह, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में सुखविंदर सिंह सुक्खू को चुना गया। प्रतिभा सिंह का नाम भी चर्चा में था, लेकिन CM पद छोड़ने की एवज में उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को मंत्री बनाने का सौदा तय हुआ। विक्रमंदितया को पब्लिक वर्क्स विभाग दिया गया है। वो 33 वर्ष के हैं, ऐसे में प्रतिभा सिंह ने अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य के लिए समझौता कर लिया।
अगर DK शिवकुमार अपनी प्रतिष्ठा भी बचाना चाहते हैं और खुद को नंबर-2 नहीं बनाना चाहते, तो उनके पास विकल्प है कि अपने परिवार के किसी सदस्य को मंत्री बनवा दें, या फिर अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाएँ। आज भी प्रतिभा सिंह गाहे-बगाहे चर्चा करती रहती हैं कि हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नाम पर आज भी वोट पड़ते हैं। अब उन्हें अध्यक्ष पद से हटाए जाने की भी खबरें घूम रही हैं। भले ही वो इसमें कुछ न कर पाएँ, उनके बेटे के राजनीतिक भविष्य सुरक्षित ही दिख रहा।
सिद्धू की तरह बन जाएँ: कॉन्ग्रेस के लिए न उगलते बने, न निगलते
DK शिवकुमार के पास एक और अजीब सा विकल्प है और वो है नवजोत सिंह सिद्धू जैसा। ये वो नाम है, जो कॉन्ग्रेस को न उगलते बनता है और न निगलते। उन्हें भी उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया था पंजाब में। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बाद में कैप्टन सीएम पद से हटाए गए और चरणजीत सिंह चन्नी पर कॉन्ग्रेस ने भरोसा जताया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष रहे सिद्धू के तेवर ढीले नहीं पड़े।
नवजोत सिंह सिद्धू एक पुराने मामले में एक वर्ष के लिए जेल गए। फ़िलहाल वो जेल से बाहर आ चुके हैं और पंजाब कॉन्ग्रेस में फिर राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो रही है। एक तरफ वो बगवात करते हैं, दूसरी तरफ सोनिया-राहुल-प्रियंका की शान में कसीदे पढ़ते हैं। DK शिवकुमार के पास ये सबसे अजीब विकल्प है, जिस पर वो शायद ही विचार करें। लेकिन हाँ, ऐसा रुख अपनाने से अगले चुनाव में कॉन्ग्रेस की बुरी हार तय हो जाएगी।