जब इनएविटेबल सामने होता है तो व्यक्ति अपने मानसिक संतुलन पर सबसे पहले हमला बोलता है। उसके कारण वो जो कार्य करता है, या बोलता है, वो विशुद्ध मूर्खता की श्रेणी में रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए गाय की स्मगलिंग करता हुआ अपराधी, पुलिस बैरिकेडिंग पर पकड़े जाने के भय से पुलिस अफसर के ऊपर गाड़ी चढ़ाकर उसकी हत्या का भी अपराध कर देता है।
2013-14 का एक दौर याद कीजिए, जब नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी तय हो चुकी थी और लहर को नकारते-नकारते विपक्ष के नेता सब तमाम प्रपंच करने लगे थे। नए झूठ गढ़े जाने लगे, प्रोपेगेंडा फैलाना चरम पर था, साम्प्रदायिकता को खूब हवा दी जा रही थी। बातें फैलाई जा रही थीं कि मोदी अगर आ गया तो दंगे हो जाएँगे, समुदाय विशेष का जीना हराम हो जाएगा, हिन्दू बहुसंख्यक लोग सड़कों पर नंगी तलवारें लेकर निकलेंगे और मार-काट करेंगे।
एक माहौल गढ़ा गया जिसमें भाजपा द्वारा कॉन्ग्रेस के निकम्मेपन और दस सालों की लूट पर वोट माँगने पर अपने गढ़ में पड़ती दरारों को कॉन्ग्रेस ने भाँप लिया था और सहयोगी दलों के साथ मिलकर प्रपंच करना शुरु किया। जिस कॉन्ग्रेस के पूरे शरीर पर देश के अधिकांश दंगों का रक्त है, जो अकेली भारतीय पार्टी है, जिसने एक अल्पसंख्यक समुदाय के साथ राजनैतिक संरक्षण में ‘पेड़ गिरने’ और ‘धरती हिलने’ के नाम पर नरसंहार किए, और वो कोर्ट द्वारा बेगुनाह साबित हो चुके व्यक्ति पर ऐसे प्रोपेगेंडा फैलाती है जैसे उसके सत्ता में आते ही भारत दंगाई कोलोजियम बन जाएगा।
लेकिन बात तो वही है कि सत्ता आपको अनुभव बहुत देती है। आपको जीतने के तरीके पता होते हैं, और आपको हराने का भी हुनर आ जाता है। आप खबरें पैदा कर सकते हैं, जब सामने वाला राम मंदिर और तुष्टीकरण न करे तो आप छेड़ते हैं कि अब राम मंदिर पर बात क्यों नहीं कर रहे! आप घाघ हो जाते हैं, आपके अंदर की धूर्तता आपके बच्चों तक जेनेटिकल स्तर तक पहुँच चुकी होती है।
ये घाघपना और आपका स्थापित तंत्र एक मुद्दा बनाता है, जिसमें क्षेत्रीय पार्टियों के उदय से आपके ट्रेडिशनल अल्पसंख्यक वोट बैंक में होते छेद पर सेलो टेप मारा जा सके। ऐसे समय में ‘डर’ की रचना सबसे कारगर होती है। तब आप न उनकी शिक्षा की बात करते हैं, न उनमें व्याप्त गरीबी की, न उनके आधारभूत विकास पर ध्यान देते हैं। क्योंकि उन्हें वैसा रखने में आपने बहुत परिश्रम किया। आपने समुदाय विशेष को गरीब, पिछड़ा, अशिक्षित रखा क्योंकि आप उस मुद्दे के गन्ने को बोते रहे, बोते रहे, काटते रहे, काटते रहे, और फिर चुनाव की मशीन में इतनी बार पेरा गया कि उसकी सिट्ठी ही बची।
जब आप लगातार एक मानसिकता बना देते हैं कि तुम अल्पसंख्यक हो, और भाजपा साम्प्रदायिक है, तो उसे तीन तलाक के निरस्तीकरण से लेकर वो सारी बातें साज़िश लगने लगती हैं जो उसी के विकास के लिए है। फिर एक घाघ नेता और धूर्त पार्टी इस ‘डर’ पर खेलना शुरु करता है। पूरे समुदाय को बताया जाता है कि ‘देखो, हम चोर ही सही, हम तो तुम्हें गरीबी-लाचारी-अशिक्षा में जीने तो दे रहे हैं, वो तो तुम्हें काट देगा’।
यह डर खूब फैलाया गया ताकि अपनी लूट, भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की बात को छुपाया जा सके। लेकिन कारपेट के भीतर कूड़ा छुपाने की एक हद होती है। कॉन्ग्रेस का स्वीपिंग अंडर कारपेट इतना विशाल हो गया वो कारपेट कूड़े का पहाड़ बन गया, जो सबको दिख रहा था। ये पहाड़ सबको दूर से नज़र आ रहा था। फिर घाघ पार्टी के पास कोई चारा नहीं बचा: मोदी आ गया तो देश में दंगे होंगे!
मोदी तो मोदी, योगी भी मुख्यमंत्री बनकर आ गया और उत्तर प्रदेश अपने प्रशासन और अपराधियों पर लगाम कसने में नई मिसाल क़ायम कर रहा है जहाँ अपराधी खुद ही जेल में सरेंडर करने पहुँच रहे हैं। योगी को लेकर भी यही आशंका जताई गई थी कि यूपी समुदाय विशेष के लिए रहने योग्य नहीं रहेगा और दंगे होंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। दंगाइयों को सजा मिल रही है, अपराधियों को पकड़ा जा रहा है और यूपी सरकार भी बेहतरी की ओर बढ़ रही है।
मोदी पूर्ण बहुमत की सरकार लेकर आ गए, कुशलता से पाँच सालों में जितना हो सकता था (पिछली सरकारों के मुक़ाबले) उससे ज़्यादा ही काम किया। बिजली, सड़क, स्वच्छता जैसे छोटे लेकिन जीवन बदलने वाले मुद्दों से लेकर वित्तीय समावेशन, विदेश नीति, जीडीपी, टैक्सेशन जैसे मुद्दों पर लगातार बेहतरी की है। लगातार भाजपा समर्थित पार्टियों की जीत यही बताती है कि मोदी और पार्टी की छवि सुधरी है, न कि उन्हें एक हिन्दुत्ववादी सरकार की तरह देखा जा रहा है जहाँ हिन्दुओं को मार-काट की खुली छूट हो।
यही कारण है कि सत्ता से दूर, चौवालीस तक सिमट चुके, छोटे दलों द्वारा सीटों के लिए लगातार नकारे जा रहे कॉन्ग्रेस और उनके नेताओं को नए झूठ की ज़रूरत महसूस हो रही है। कॉन्ग्रेस के लिए दुर्भाग्य कई स्तर का है। पहला तो यही है कि राहुल गाँधी पार्टी के अध्यक्ष हैं। दूसरा यह है कि पाँच सालों में इन्होंने जो-जो मुद्दे उठाए, सब फट के हवा हो चुके हैं, चाहे वो राफेल हो या रोजगार की बात। तीसरा यह है कि ये लोग अपनी योजना या विजन को लोगों तक पहुँचाने की बजाय मीम बनाकर मोदी की छवि बिगाड़ने में लगे हुए हैं।
चौथी बात, जो इस लेख का आधा हिस्सा है, वो यह है कि ये अब झूठ भी अपना नहीं बना पा रहे। इन्होंने कहीं सुना कि मोदी के खिलाफ कुछ कहा जा रहा है, तो चोरी-चोरी चुपके-चुपके, एक टुटपुँजिया कॉमेडियन की तरह, जो किसी कम प्रसिद्ध व्यक्ति के चुटकुले चुराकर हिट होने की फ़िराक़ में रहता है, अशोक गहलोत ने कह दिया कि अगर मोदी दोबारा आ गया तो चुनाव ही नहीं होने देगा।
ये बात गहलोत की ऑरिजिनेलिटी नहीं है, ये विशुद्ध चिरकुटों वाली हरकत है जो कि सत्तर साल के बुजुर्ग व्यक्ति को शोभा नहीं देती। इतना अनुभव गहलोत साहब कहाँ ले जाएँगे, पता नहीं चल रहा कि ऐसे मामलों में तो दिमाग लगा लें थोड़ा कि कह क्या रहे हैं! ‘हिन्दू तलवार लेकर दौड़ जाएगा’ वाली बात ही कह देते, कुछ दुसरे समुदाय वाले लोग डर के मारे वोट दे देते, लेकिन ये वाली बात अलग स्तर पर जा चुकी है!
‘चुनाव ही नहीं होने देगा’ कहकर शायद ये पूरी भारत की जनता में डर व्याप्त करना चाह रहे हैं। लेकिन कहीं ये डर बैकफायर न कर जाए! वैसे भी भारत में आदमी वोट देने से पक चुका है, और कॉन्ग्रेस के इस झूठ को सच मानकर कहीं मोदी को 60% वोट देकर अनंतकाल के लिए पीएम न बना दे! फिर ईवीएम और वीवीपैट हैक्ड है कि नौटंकी करते रहिएगा!
गहलोत ने गम्भीरता से अपनी बात रखते हुए कहा कि अगर मोदी दोबारा जीत जाता है तो या तो यहाँ चुनाव ही नहीं होंगे या भारत में रूस या चीन जैसी स्थिति हो जाएगी। गहलोत ने आगे बताया कि मोदी चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
सही बात है, चुनाव जीतने के लिए ‘किसी भी हद तक’ जाने की बात कॉन्ग्रेस से बेहतर और कौन जान सकता है! चाहे राफेल को पीटकर चुनाव में फर्जी मुद्दा बनाने की बात हो, या फिर लगातार झूठ बोलकर जनता को तमाम मुद्दों पर बरगलाने की बात हो, कॉन्ग्रेस ने अपनी कल्पनाशीलता का खूब परिचय दिया है। एक ही बात को सतहत्तर बार बोलकर, सत्य को झूठ बनाने की तकनीक भी इन्होंने अपना ली, लेकिन इनके झूठ का खोटा सिक्का चल नहीं पा रहा।
पाँच साल ही सत्ता से दूर रहने पर गहलोत शायद थोड़े ढीले भी हो गए हैं। उन्हें ये पता नहीं है कि प्रपंच को कसकर पकड़ना चाहिए ताकि लोग उनको गम्भीरता से लें। उन्होंने मोदी को पहले चुनाव नहीं होने देने की बात को लेकर घेरा, फिर अगली ही लाइन में उन्हें ‘बॉलीवुड में होते तो अपने लटके-झटकों एवं अदाओं से देश तथा दुनिया में अलग छाप छोड़ते’ कहकर दाँत निपोड़ दिया।
वैसे, दो लाइन में गम्भीरता से भाषाई और शारीरिक चिरकुटई पर उतरना कॉन्ग्रेस में ऊपर से ही नीचे बहता आ रहा है। इनके अध्यक्ष पहले प्यार से मोदी के गले पड़ने जाते हैं, फिर ‘आँख मारे वो लड़का आँख मारे’ करते नज़र आते हैं। कॉन्ग्रेस के एकमेव पैदाइशी मालिक राफेल जैसे गम्भीर मसले पर चर्चा करने की बात करने आए, उनके नुमाइंदों ने संसद में पेपर प्लेन चलाकर अपनी गम्भीरता की माचिस जलाकर छोड़ दी।
किसी भी हद तक कौन जा रहा है, ये जनता को दिखता है। प्रपंच के नए कीर्तिमान कॉन्ग्रेस रच रही है। अल्पसंख्यकों में डर फैलाने की बातें कॉन्ग्रेस कर रही है। भाषाई मर्यादाओं को कॉन्ग्रेस तोड़ रही है। लगातार छोटे दलों के पीछे पड़कर समर्थन देने की बात कॉन्ग्रेस कर रही है। क्षेत्रीय दलों द्वारा ‘दो और पाँच सीटें लो या निकल लो’ टाइप की धमकियाँ झेलकर भी कुछ न कह पाने के लिए मजबूर कॉन्ग्रेस हो रही है।
और, किसी भी हद तक कौन जा सकता है? मोदी! अरे भैया, वो जा सकता है, तुम जा चुके हो। रमाधीर सिंह की कालजयी पंक्ति ही बची है याद करने को अब, “और कितना बेइज्जत कराओगे बाप को?”